दुनिया में मौजूद सभी धर्मों में सनातन धर्म का एक अलग ही प्रभाव और चरित्र है. इसमें कालक्रम के हिसाब से अनेक देवी-देवता रहे हैं. इन सभी में अगर किसी को सबसे ज़्यादा प्रैक्टिकल समझा जाता है, तो वो हैं भगवान वासुदेव श्री कृष्ण. एक गृहस्थ जीवन के लिए इनकी शिक्षाएं सबसे ज़्यादा व्यवहारिक हैं. आज हमारे देश में हर कस्बे और शहर में इनके अनेक मन्दिर मिल जायेंगे. पर क्या आप जानते हैं कि आधुनिक समय में मौजूद ज्ञात स्रोतों के अनुसार भगवान कृष्ण के शुरुआती मन्दिर देश में कहां पाये गये थे?

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महाभारत में कृष्ण के दिव्य स्वरुप का जिक्र मिलता है. शुरुआती दौर में कृष्ण के साथ-साथ बलराम का भी काफ़ी महत्व था. यूनानी यात्री मैग्सथनीज़ सम्राट चन्द्रगुप्त के शासनकाल में भारत आया था. ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में उसने अपनी पुस्तक इंडिका में कृष्ण के बारे में उल्लेख किया है.

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चन्द्रगुप्त के दरबार में मौजूद इतिहास के सबसे बड़े ज्ञानी पुरुषों में से एक चाणक्य ने भी अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में तत्कालीन समय में समाज में आध्यात्मिक रूप से कृष्ण और बलराम की महत्ता के बारे में लिखा है.

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धीरे-धीरे समय के साथ देश में पूजा-पाठ के लिए इन दोनों देवताओं के मन्दिर बनने लगे. राजस्थान में चित्तौड़गढ़ जिले के पास स्थित Ghosundi नामक स्थान पर कुछ शिला लेख मिले हैं. ये लेख नारायण वाटिका मन्दिर के बाहर स्थित थे. यहां कृष्ण और बलराम की आराधना मन्दिर में किये जाने के शुरुआती प्रमाण मिले हैं.

मथुरा के पश्चिमी इलाके में मोरा नामक स्थान पर भी एक शिला लेख मिला है. महाक्षत्रप सोदासा के समय शैला देवगृह नामक मन्दिर के प्रमाण है. इस मन्दिर में भी कृष्ण की पूजा की जाती थी.

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ईसा से 1 शताब्दी पूर्व के समय के मथुरा में मिले एक और शिला लेख में श्री कृष्ण का एक भव्य मन्दिर होने का जिक्र किया गया है. वर्तमान में मथुरा में मौजूद कृष्ण जन्मभूमि मन्दिर परिसर का इसे शुरुआती रूप बताया जाता है.

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शुंग राजा कौस्तिपुत्र भाघबद्र के समय आये यूनानी राजदूत हेलिओडोरस ने भी ईसा से 126 वर्ष पूर्व विदिशा में एक मन्दिर का जिक्र किया है, जो भगवान कृष्ण को समर्पित था. यहां गरुड़ स्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि में महाभारत के श्लोक लिखे हुए हैं.

इन सभी प्रमाणों से यह साबित होता है कि हमारे देश में ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी के समय से भगवान कृष्ण के मन्दिर बनते आ रहे हैं.

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भगवान श्री कृष्ण एक अच्छे मार्गदर्शक, एक अच्छे दोस्त, सच्चे प्रेमी और माता -पिता के दुलारे थे. प्रतियोगिता के दौर में गीता में लिखे उनके मंत्र बहुत ज़्यादा प्रासंगिक हो जाते हैं. तो कभी मन्दिर जाये या न जाये लेकिन गीता के ज्ञान को पढ़कर अपना जीवन आसान बनाने का प्रयास ज़रूर करें.