पर्यावरण दिवस आते ही हमारे देश में सफ़ाई के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित होने लगते हैं. मीडिया, अख़बार सब जगह सफ़ाई के नाम का ढोल बजने लगते हैं. नेता लोग भी चार दिन बढ़-चढ़ के हिस्सा लेते नज़र आने लगते हैं और जैसे ही पर्यावरण समाप्त होता है, वैसे ही ये ढोल भी धीरे-धीरे बजना बंद हो जाता है. फिर अगले साल का इंतज़ार किया जाता है और सुधार के नाम पर दो चार पोस्टर लगा दिए जाते हैं. लेकिन पर्यावरण सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते. हम सभी जानतें हैं कि पर्यावरण प्रदूषण हमारे लिए बेहद ख़तरनाक साबित हो रहा है, लेकिन उससे भी ख़तरनाक है, ई-कचरा या इलेक्ट्रॉनिक कचरे से होने वाला प्रदूषण. अगर इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले कुछ ही सालों में ये विकराल रूप धारण कर लेगा. दुर्भाग्य की बात ये है कि, आज भारत में अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है कि ई-कचरा होता क्या है. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और मशीनों का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. दुनिया भर में 75 से 80 प्रतिशत ई-कचरा चीन, पाकिस्तान और भारत में पैदा होता है और दुर्भाग्य है कि ई-कचरा के निपटान के लिए सबसे कम जागरूकता इन्हीं देशों में देखने को मिलती है.
क्या है ई-कचरा?
बिजली से चलने वाली चीज़ें जब बहुत पुरानी या ख़राब हो जाती हैं और उन्हें बेकार समझकर फेंक दिया जाता है या कबाड़ी को बेच दिया जाता है, तो उन्हें ई-कचरा कहा जाता है. डेटा प्रोसेसिंग, टेलिकम्युनिकेशन, कूलिंग या एंटरटेनमेंट के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले आइटम इस कैटेगरी में आते हैं, जैसे कि कंप्यूटर, एसी, फ्रिज, सीडी, मोबाइल, टीवी, अवन आदि. आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका में एक कम्प्यूटर को फिर से बनाने में करीब 20 डॉलर का ख़र्च आता है. जबकि भारत में इसे महज 2 डॉलर में दोबारा विकसित कर दिया जाता है. जिसकी मुख्य वजह है की भारत अमेरिका का सबसे बड़ा ई-कचरा आयात देश है.
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देश में बढ़ता ई-कचरा
एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में हर साल करीब 3,30,000 टन ई-कचरा फेंका जाता है, जिसमें अवैध आयात शामिल नहीं है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नई दिल्ली द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2005 में भारत में पैदा ई-कचरा की कुल मात्रा 1.47 लाख मी. टन थी. जो वर्ष 2012 में बढ़कर लगभग 8 लाख मी. टन हो गई है, जिससे पता चलता है कि भारत में पैदा ई-कचरा की मात्रा विगत 6 वर्षों में लगभग 5 गुनी हो गई है और इसमें निरंतर बढ़ोतरी हो रही है.
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भारत में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का अन्धाधुन्द प्रयोग
देश में अभी करीब 8 करोड़ कंप्यूटर हैं और बताया जा रहा है कि अगले पांच साल में इनकी संख्या बढ़कर दोगुनी से भी ज़्यादा हो जाएगी. जहां पहले एक कंप्यूटर की उम्र 7 से 8 साल हुआ करती थी, वहीं आज घटकर 3 से 4 साल हो गई है. टेलीविज़न की आबादी भी 2015 में बढ़कर, 24 करोड़ के आसपास पहुंच गई है. वहीं अगर मोबाइल्स कि बात की जाए, तो भारत में इसके यूज़र भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं. हालांकि इलेक्ट्रोनिक उपकरणों से निकलने वाले ई-कचरे के निपटान को ले कर, भारत में कोई कड़ा प्रावधान नहीं है.
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ई-कचरे से होने वाले बीमारी और हानिकारक तत्व
ई-कचरे में, कुछ ख़तरनाक रासायनिक तत्व भी पाए जातें हैं, जैसे पारा, क्रोमियम, कैडमियम, सीसा, सिलिकॉन, निकेल, जिंक, मैंगनीज़, कॉपर, आदि. कचरे से निकलने वाले रासायनिक तत्व लीवर, किडनी को प्रभावित करने के अलावा कैंसर, लकवा जैसी भयानक बीमारियों का कारण बन रहे हैं. ख़ास तौर से उन इलाकों में रोग बढ़ने के आसार ज़्यादा हैं, जहां अवैज्ञानिक तरीक़े से ई-कचरे की रीसाइक्लिंग की जा रही है. ई-कचरे से निकलने वाले ज़हरीले तत्व और गैस, मिट्टी व पानी में मिलकर उन्हें बंजर और ज़हरीला बना देते हैं. फ़सलों और पानी के ज़रिये ये तत्व हमारे शरीर में पहुंचकर घातक बीमारियों को जन्म देते हैं. ई-कचरे को जलाने से कार्सेनोजेन्स- डाईबेंजो पैरा डायोक्सिन (टीसीडीडी) एवं न्यूरोटॉक्सिन्स जैसी विषैली गैस उत्पन्न होती हैं. इन गैसों से मानव शरीर में प्रजनन क्षमता, शारीरिक विकास एवं प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है. साथ ही हार्मोनल असंतुलन व कैंसर होने की संभावनायें बढ़ जाती हैं. इसके अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, तथा क्लोरो-फ्लोरो कार्बन भी निकलती हैं. जो वायुमण्डल व ओज़ोन परत के लिए बेहद हानिकारक है.
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भारत में ई-कचरे का बढ़ता आयात
विकासशील देशों को सर्वाधिक सुरक्षित डंपिंग ग्राउंड माने जाने के कारण भारत, चीन और पाकिस्तान सरीखे एशियाई देश ऐसे कचरे के बढ़ते आयात से चिंतित हैं. देश और दुनिया के पर्यावरण संगठन इसके संभावित खतरों पर एक दशक से भी ज़्यादा समय से चिंता प्रकट कर रहे हैं. ऐसे कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगाने के लिए भारत में 14 साल पहले बने कचरा प्रबंधन और निगरानी कानून 1989 को धता बताकर औद्योगिक घरानों नें इसका आयात जारी रखा है. अमेरिका, जापान, चीन और ताइवान जैसे देश तकनीकी उपकरणें में फैक्स, मोबाइल, फोटोकॉपी मशीन, कम्प्यूटर, लैप-टॉप, टी.वी, माइक्रो चिप्स, सी.डी. और फ्लॉपी आदि का कबाड़ होते ही इन्हें ये दक्षिण पूर्व एशिया के जिन कुछ देशों में ठिकाने लगाते हैं, उनमें भारत का नाम सबसे ऊपर है.
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ई-कचरा देगा नए रोज़गार को जन्म
ई-कचरे के बढ़ते इस्तेमाल ने बाज़ार को एक नया कारोबार खोलने के लिए भी प्रेरित किया है. इलेक्ट्रॉनिक साधनों के बढ़ते इस्तेमाल और उसके बाद उससे होने वाले ख़तरों को देखते हुए विशेषज्ञों ने वेस्ट मैनेजमेंट का रास्ता सबके सामने रखा. इलेक्ट्रॉनिक कचरे को फिर से इस्तेमाल करने का तरीका है वेस्ट मैनेजमेंट. इसमें कचरे को नष्ट करने के बजाए, उसे रीसायकल किया जाता है.
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ई-कचरा प्रबंधन नियम 2011 और अधिसूचना 2016:
ई-कचरा से निपटने के लिए भारत में पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ई-कचरा (प्रबंधन तथा निपटान) नियम, 2011 बनाया था. लेकिन उस नियम के तहत ना तो ई-कचरे में कमी आई और ना ही उस दिशा में कोई सुधार नज़र आ रहा था . इसलिए नियम 2011 के अधिक्रमण में ई- कचरा प्रबंधन नियम 2016 अधिसूचित किया गया है. इस नियम के तहत निम्लिखित सुधार की बात कही गई है.
- ये नियम विस्तारित उत्पादक उत्तरदायीत्व(ईपीआर) के अंतर्गत उत्पादकों को लगायेंगे और उनके लिए लक्ष्य भी तय करेंगे.
- ई-कचरा नियमों में कॉम्पैक्ट फ्लोरेसेंट लैम्प तथा मरकरी वाले अन्य लैम्प एवं ऐसे उपकरण शामिल किए जाएंगे.
- ई-कचरा नियमों के तहत उत्पादकों को ई-कचरा इकट्ठा करने और आदान-प्रदान करने के लिए ज़िम्मेदार बनाया जायेगा.
- बड़े उपभोक्ताओं को कचरा इकट्ठा करना होगा और अधिकृत रूप से रीसाइक्लिंग करने वालों को देना होगा. नष्ट करने तथा रीसाइक्लिंग करने के काम में शामिल शमिकों के सुरक्षा, स्वास्थ और कौशल विकास सुनिश्चित करने की भूमिका राज्य सरकार की है. नियमों के उलंघन करने पर कड़े प्रावधान भी है.
- ई-कचरे को नष्ट और रीसयक्लिंग करने की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है. ये प्रक्रिया एक प्राधिकरण केंद्र प्रणाली द्वारा सरल बनाई गई है. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पूरे देश में एकल प्राधिकार देगा.
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दूसरे देशों में ई- कचरे के लिए कड़े नियम
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर Basel कन्वेंशन के अन्तर्गत, इलेक्ट्रॉनिक कचरे सम्बन्धी नियमों का पालन होता है. चीन ने अपने यहां ई-कचरे के आयात पर रोक लगा दी है. Hong-Kong में बैटरियां व केथोड़ रे ट्यूब का आयात नहीं किया जाता है . इसके अलावा दक्षिण कोरिया, जापान व ताईवान में यह नियम है कि जो भी कम्पनियां इलेक्ट्रोनिक उत्पाद बनाती हैं, वे अपने वार्षिक उत्पादन का 75 प्रतिशत रिसाइकल करेंगी. वहीं भारत की बात की जाए तो अभी ई-कचरे के निपटान व रिसाइकलिंग के लिये कोई प्रयास शुरू ही नहीं हुए हैं .
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ई-कचरा के निपटान के तरीके
1. सिक्योर्ड लैण्डफिलिंग (सुरक्षित विधि से भूमि में दबाना)
2. इन्सिनेरेशन (भस्मीकरण)
3. रिसाइकिलिंग (पुन: चक्रण)
4. एसिड के द्वारा मेटल की रिकवरी
5.री-यूज (पुन: उपयोग)
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अगर इसी तरह से इलेक्ट्रोनिक उपकरणों का अंधाधुन्द प्रयोग होता रहा और उसके निपटान के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो वो दिन दूर नहीं की ई-कचरा ही लोगों की मौत की वजह बनेगा.