महाराष्ट्र के औंध में पिछले 50 सालों से बेड़ियों में जकड़े, हाथी गजराज को आख़िरकार आज़ादी मिल गई. गजराज करीब पिछले 70 सालों से महाराष्ट्र के ‘यामी देवी हिंदू मंदिर’ की सेवा में कार्यरत था. गजराज मंदिर में आने वाले पर्यटकों के लिए मुख़्य आकर्षण था.
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गजराज देखने में भले ही नॉर्मल हाथियों की तरह लग रहा हो, लेकिन इसकी हकीकत दिल दहला देने वाली है. मंदिर से गजराज को ये आज़ादी यूं ही नहीं मिल गई, बल्कि गजराज को बंधन मुक्त कराने के लिए, कई लोगों को काफ़ी संघर्ष करना पड़ा. गजराज का इस्तेमाल मंदिर के जुलूस के लिए किया जाता था. बढ़ती उम्र के साथ गजराज की शारीरिक परेशानियां भी बढ़ती जा रही थी. गजराज के पैरों में फोड़े और आख़ों की रौशनी लगभग जा चुकी है.
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गजराज की हालत बेहद दयनीय है, सालों से सड़ा-गला खाना खाकर उसे अपनी ज़िंदगी व्यतीत करनी पड़ रही थी. इतने सालों में इस बेज़ुबान जानवर ने कितनी तकलीफ़े झेली होंगी, इसका अंदाज़ा लगा पाना काफ़ी मुश्किल है. गजराज बुरी तरह से घायल है, उसके पैर जंजीर से जकड़े हुए हैं.
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Wildlife SOS ने हाथी को मंदिर प्रशासन से रिहा कराने के लिए एक अभियान चलाया था. हाथी को रिहा कराने के लिए, हाथी की मालकिन और औंध की महारानी को काफ़ी समझाना पड़ा था. बीते बुधार को SOS की टीम गजराज को रिहा कराने के लिए पहुंची. हाथी को फेयरवल देने पहुंचे करीब 500 ग्रामीणों ने SOS की टीम का विरोध कर, उन पर पथराव भी किया. लेकिन SOS की टीम ने विपरीत स्थिति में संयम बनाए रखा और आख़िरकार गजराज को आज़ादी दिलाने में कामयाब रही.
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1500 किमी लंबे सफ़र को तीन दिन में पूरा कर, गजराज बीते शनिवार दोपहर चुरमुरा स्थित एलीफे़ंट कंजर्वेशन एंड केयर सेंटर पहुंचा. केयर सेंटर पहुंचते ही गजराज ने अनोख़े अंदाज़ में आज़ादी का जश्न मनाया. गजराज अपनी बाकी की ज़िंदगी यहीं गुजारेगा. हाथी के इलाज और अन्य चीज़ों पर होने वाला पूरा खर्चा Wildlife SOS उठाएगा.