ग्लोबल वार्मिंग का असर दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एवरेस्ट पर भी दिखाई देने लगा है. वहां के ग्लेशियर पिघलने से वर्षों पुराने बर्फ़ में दबे पर्वतारोहिंयों के शव और कूड़ा बाहर आने लगे हैं. लेकिन इसे लेकर नेपाली सरकार कुछ नहीं कर रही है.
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में मदद करने वाले शेरपा इस बात से चिंतित हैं. उनका कहना है कि सरकार को इस संदर्भ में कोई ठोस कदम उठाना चाहिए. ऐसे ही एक शेरपा हैं Mingma.
शवों को निशान के तौर पर इस्तेमाल करने लगे हैं पर्वतारोही
Mingma पिछले कई वर्षों से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने में पर्वतारोहियों की मदद करते हैं. जब वो 20 साल के थे तभी से ही उन्हें पता है कि पर्वत पर चढ़ाई करने वाले रास्ते में क़रीब 200 शव दफ़न हैं. अन्य पर्वतारोही उसे ऊंचाई और दूरी जानने के लिए निशान के रूप में इस्तेमाल करते हैं.
पर Mingma को ये सब सही नहीं लगता है. वो इसे बहुत ही दुखद घटना बताते हैं. कई बार उन्होंने ऐसे पर्वतारोहियों को देखा है जो मरने वाले थे मगर वो चाहकर भी उनकी मदद नहीं कर पाए. शायद यही कारण है कि अब माउंट एवरेस्ट को डेथ ज़ोन भी कहा जाने लगा है.
Mingma ने एक साल 2015 में एक डॉक्यूमेंटरी में इस बात का ज़िक्र किया था. Mingma और एक ऑस्ट्रेलियन टीवी प्रोड्यूसर ने मिलकर एक टीम बनाई थी. उन्होंने इस डॉक्यूमेंटरी को बनाने के दौरान 52 शवों को माउंट एवरेस्ट और उसके पास के पर्वत से रेस्क्यू किया था.
ग्लोबल वार्मिंग के चलते यहां के ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इनमें से शवों के अलावा पर्वातारोहियों द्वारा फेंका गया कूड़ा भी निकलकर बाहर आने लगा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप पर क़रीब 5000 टन कचरा मौजूद है. ये कई दशकों में यहां जमा हुआ है, जो पर्वतारोहियों द्वारा वहां फेंका गया है.
Center For Integrated Mountain Development (ICIMOD) की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर आने वाले पांच वर्षों में कार्बन उत्सर्जन कम नहीं किया गया तो हिमालय और हिंदुकुश पर्वत के लगभग एक तिहाई ग्लेशियर पिघल जाएंगे.
इस साल जाम जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी एवरेस्ट पर
इसी साल एवरेस्ट पर ट्रैफ़िक जाम जैसी समस्या उत्पन्न हो गई थी. तब वहां फंसे 200 पर्वतारोहियों की तस्वीर इंटरनेट पर वायरल हो गई थी. नेपाल की सरकार ने तब 383 पर्वतारोहियों को एवरेस्ट पर जाने की परमिशन दी थी. ये इस पर्वत के इकोसिस्टम से खिलवाड़ करने से कम नहीं.
पर नेपाल सरकार की कमाई का मुख्य ज़रिया ही पर्वतारोहियों के आगमन से होता. शायद इसीलिए वहां कि सरकार इस बात को नज़रअंदाज़ कर रही है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस साल तक नेपाल ने पर्वतारोहियों से 4 मिलियन डॉलर की कमाई कर ली है.
सरकार भले ही इस पर्वत के बारे में न सोचती हो, लेकिन कई गैर सरकारी संगठन और शेरपा इसे साफ़ करने में लगे हुए हैं. Ang Tshering शेरपा भी उन्हीं में से एक हैं. उनका कहना है कि एवरेस्ट की सफ़ाई करने से न सिर्फ़ उनकी रोज़ी-रोटी चलती रहेगी, बल्कि पर्वत के आस-पास के पर्यावरण के लिए भी ये अच्छा है.
कचरे से निपटने के लिए निकाली स्कीम
उनकी ट्रैवल एजेंसी Asian Trekking Pvt. Ltd. साल 2008 से इस कार्य में लगी है. उन्होंने तब से लेकर अब तक पर्वत से 20 टन कचरा नीचे उतारा है. ऐसे ही स्वयंसेवकों से प्रभावित होकर नेपाली सरकार ने साल 2014 में एक स्कीम लॉन्च की थी. इसके तहत वो ट्रेकिंग ग्रुप्स से 4000 डॉलर पहले ही जमा करवा लेती थी, जो रिफ़ंडेबल होते थे. इसके लिए शर्त थी कि वो एवरेस्ट से अपने साथ 8 किलोग्राम कचरा वापस लेकर आएंगे.
एक संस्था Sagarmatha Pollution Control Committee (SPCC) इस साल 10 टन कचरा और 7 शव अपने साथ वापस लेकर आई थी. ये संस्था अगले पांच साल तक इस सफ़ाई अभियान को जारी रखना चाहती है. क्योंकि वहां पर अभी भी सैंकड़ों टन कचरा बाकी है.
अच्छी बात ये है कि हाल ही में नेपाल सरकार ने एवरेस्ट पर सिंगल यूज़ प्लास्टिक ले जाना बैन कर दिया है. सरकार पर्वतारोहियों की संख्या को भी कम करने के बारे में सोच रही है. एवरेस्ट नेपाल के लिए बहुत मायने रखता है. उसे बचाए रखने के लिए वहां कि सरकार और लोगों को हर संभव कदम उठाने चाहिए.
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