हमारे ग्रंथ और पुराणों में कई कहानियां हैं, जिसमें हर बार धर्म, सच्चाई और ईमानदारी जीतती है. लेकिन इस सब कथाओं और ग्रथों की कहानियों में एक बार गौर करने वाली ये होती है कि जितने भी बुरे लोग इसमें दिखाए जाते हैं, वो सारे अतिबलशाली होते थे.

उदाहरण के लिए सतयुग से शुरुआत करते हैं, जब देवों और असुरों में दुनिया की सत्ता हासिल करने के लिए युद्ध हो रहे थे. कई असुरों की ताकत, देवताओं की ताकत की तुलना में कहीं ज़्यादा थी. जिस कारण देवताओं को भगवान विष्णु की मदद की ज़रूरत पड़ती थी. खुद भगवान होने के बावजूद भगवान विष्णु को लीलाओं के ज़रिए राक्षसों का संहार करना पड़ता था. देवताओं से कहीं ज़्यादा ताकतवर राक्षस उनके झांसे में आ जाते और उनका खातमां हो जाता.

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इसके बाद शुरू हुआ त्रेता युग, इस युग का सबसे शक्तिशाली शख़्स था रावण. जाति से ब्राह्मण और सोच से राक्षस, रावण को मारने के लिए भगवान विष्णु को आम इंसान रूप में जन्म लेना पड़ा. रावण की ताकत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता था कि उसने भगवान शिव तक को लंका ले जाने के लिए विवश कर दिया था. खुद ब्रह्मा जी का वरदान उसे मिला हुआ था, लेकिन फिर भी आम इंसान के रूप में जन्में और बिना किसी दैवीय शक्ति के बिना भगवान राम ने रावण का अंत कर दिया था.

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अब बात करते हैं द्वापर युग की. इस युग ने हमें बहुत कुछ दिया है. गीता के प्रवचन इसी युग की देन हैं. ये युग मानव इतिहास के सबसे बड़े युद्ध का गवाह बना, जिसे हम सब महाभारत के नाम से जानते हैं. इस युग में अधर्म से धर्म की लड़ाई हुई थी. अधर्म का साथ देने वालों की तादाद और ताकत दोनों ही कहीं ज़्यादा थीं. दुर्योधन का साथ देने वालों में थे कर्ण, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और पूरे कौरव भाई, जिनकी कुल संख्या सौ थी. लेकिन धर्म ध्वज के नीचे पांच भाई पांडव और उनके मार्ग दर्शक श्री कृष्ण थे, जिन्होंने इस युद्ध में हथियार उठाने से मना कर दिया था. फिर भी जीत सत्य और धर्म की हुई. अधर्म का साथ देने वालों में से कोई भी इस युद्ध के बाद ज़िंदा नहीं रहा.

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इन युगों के बीतने के बाद अब बारी आई कलयुग की. पुराणों के हिसाब से हम इस युग में जी रहे हैं. हमें बीते युगों और पुराणों से जो सीख मिली है, उसको हमने भुला दिया है. इतिहास से अच्छा शिक्षक शायद कोई नहीं होता. कलयुग में जीने वाले हम लोगों ने इससे कुछ नहीं सीखा. गौर करें, तो हर युग के दुश्मन राक्षस, रावण या दुर्योधन नहीं, बल्कि अहंकार, ईष्या और द्वेश ही रहे हैं और ये भाव जिनके भी अंदर आया है उनका पतन निश्चित हो गया है. कलयुग के इस दौर में जहां भाई-भाई का दुश्मन है, हर कोई खुद को बड़ा बनाने के लिए दूसरों को नीचे धकेल रहा है, ये हमारे अंत की शुरुआत सी दिख रही है. क्योंकि अहंकार आज के वक़्त का सबसे बड़ा भाव बन गया है.

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हमें अपने इतिहास से सीख लेनी चाहिए और ऐसे भावों से दूरी बनानी चाहिए. तभी हम आने वाली पीढ़ी को एक बेहतर कल दे पाएंगे. हम इसे किसी ज्ञान की तरह नहीं बांटना चाह रहे हैं, हमारा मकसद बस इतना सा ही है कि एक बार हम सब इस बारे में ज़रूर सोचें.