मेरा एक दोस्त है. वो सुबह उठ कर नाश्ते के लिए अंडा, ब्रेड ये सब लेकर आता है. कई बार तो ऐसा भी होता है जब उसकी मम्मी का नाश्ता बनाने का मन नहीं करता है, तो वो उस दिन ख़ुद सारे घर का नाश्ता भी बनाता है. सब्जी भी लेकर आता है. अपने ही नहीं, पूरे घर के कपड़े धो लेता है.
एक बार मैं उससे फ़ोन पर बात कर रही थी. तभी उसकी मम्मी पीछे से बोलीं कि बाथरूम कितनी देर में साफ़ करेगा. सच बोलूं तो ये सुनकर मैं भी थोड़ा सा चौंक गई थी कि ये अपने घर का बाथरूम भी साफ़ करता है!
अब इतनी देर में आप भी कुछ बातें सोचने लगे होंगे. वाह कितना अच्छा लड़का है. कितना काम करता है. इसकी कितनी तारीफ़ होती होगी.
लेकिन ऐसा भी नहीं है.
पता है, जब कभी हमारा पूरा ग्रुप मिलने का प्लान बनाता है और वो नहीं आता है, तो बाकि के लोग उसका मज़ाक उड़ाते हैं. वो कहते हैं, ‘अरे, घर की लड़की है बर्तन धो रही होगी.’
बहुत बार ऐसा होता है कि मैं उसके घर जाती हूं, तो मैं देखती हूं कि कैसे वो घर का एक-एक काम संभालता है. एक बार उसके दादा जी उसकी मम्मी को ताने देते हुए बोल रहे थे, ‘अच्छे भले लड़के को घर के कामों में उलझा रखती हो.’ इस पर उसकी मम्मी बोलती हैं, ‘पापा तो इसमें बुराई क्या है. घर इसका भी तो है.’ फिर वो ख़ुद भी अपने दादू को समझाता है.
अच्छा, कई बार ऐसा भी होता है हम सभी दोस्त साथ होते हैं तो उसकी मम्मी का फ़ोन आते ही सब उसको चिढ़ाना शुरू कर देते हैं कि, ‘जा घर से बुलावा आया है, काम कर.’
सोचिए कि हमारे समाज के बच्चों के मन में तक हमने लड़का और लड़की के बीच में अंतर की कितनी बातें भर दी हैं. हमको लगता है कि घर के बूढ़े बुज़ुर्ग पुरानी और पुरातन( स्टीरियोटाइप) बातें करते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. सोचिए हमारे समाज के बच्चे आपस में ये सब अंतर करते हैं, क्योंकि वो अपने आसपास के लोगों को उसी तरह देखते हैं.
ख़ैर, अब तो हम बड़े हो गए हैं और अलग-अलग शहर हो गया है. मगर फिर भी वो आज भी कभी मेरे से मिलने घर आता है तो सारा काम करता है. बर्तन मांजने से लेकर डिनर बनाने तक.