ज्ञान स्वरूप सानंद, पूर्व प्रोफ़ेसर जी.डी. अग्रवाल नहीं रहे.
111 दिन के उपवास के बाद उन्होंने अस्पताल के रास्ते में ही दम तोड़ दिया. ये उपवास किसी मंदिर, मस्जिद, आरक्षण, किसी क़ानून को लेकर या किसी की मूर्ति की स्थापना को लेकर नहीं था. उनकी सिर्फ़ एक मांग थी, ‘गंगा को बचाना’.
गंगा पर बन रहे Hydal Projects से पर्यावरण को ख़तरा था और इसी को रोकने की मांग को लेकर प्रोफ़ेसर अग्रवाल अनशन पर बैठे थे.
पिछले हफ़्ते उन्होंने घोषणा की थी कि अगर उनकी बात नहीं सुनी गई, तो 9 अक्टूबर से वो जल भी त्याग देंगे और उन्होंने यही किया. ज्ञान स्वरूप सानंद IIT में प्रोफ़ेसर और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य भी रह चुके थे.
गंगा के तटों पर अवैध खनन, उस पर बनने वाले अवैध बांध को रोकना चाहते थे सानंद. इस संबंध में केन्द्र सरकार को तीन चिट्ठियां भी लिख चुके थे. वे चाहते थे कि गंगा की सफ़ाई की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ अधिकारियों को ही न दी जाए और इसमें जनता की भी सहभागिता हो.
22 जून से वे अनशन पर बैठे थे. बीबीसी के अनुसार, अनशन के 19वें दिन उन्हें पुलिस ने अनशन की जगह से ज़बरदस्ती हटा दिया था. अनशन करने से पहले उन्होंने प्रधामंत्री मोदी को दो बार चिट्ठी भी लिखी थी. अनशन के दौरान एक ख़त और भी लिखा था. उसी के कुछ अंश:
श्री नरेंद्र भाई मोदी जी
माननीय प्रधानमंत्री,
मैंने आपको गंगा जी से जुड़े मुद्दे पर कुछ चिट्ठियां लिखी थी लेकिन मुझे कोई उत्तर नहीं मिला. मुझे विश्वास था कि आपके प्रधानमंत्री बनने के बाद गंगा जी के विषय पर गंभीरता से विचार किया जाएगा क्योंकि बनारस में चुनाव प्रचार के दौरान आपने कहा था- ‘मां गंगा ने मुझे बुलाया है.’
उसी पल मुझे विश्वास हो गया कि आप गंगा के लिए कुछ करेंगे. उसी विश्वास के दम पर मैं पिछले 4.5 वर्षों से इंतज़ार कर रहा हूं. आपको मेरे पिछले अनशनों के बारे मे पता ही होगा. मेरे अनशन के कारण पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ‘लोहारी नगपाला’ प्रोजेक्ट बंद करवा दिया था. ये प्रोजेक्ट 90% पूरा हो गया था और सरकार को हज़ारों करोड़ का नुकसान हुआ था लेकिन गंगा के लिए मनमोहन सिंह ने ये कड़ा निर्णय लिया था. उन्होंने भागीरथी के गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक के प्रवाह को Eco-Sensitive Zone घोषित कर दिया था और ये सुनिश्चित किया था कि गंगा को किसी भी विकास कार्य से क्षति नहीं पहुंचे.
मुझे आशा था कि आप उनसे दो कदम आगे चलेंगे और गंगा के बचाव के लिए कुछ करेंगे लेकिन पिछले 4 वर्षों में सरकार द्वारा उठाया गया एक भी कदम गंगा के लिए लाभदायक सिद्ध नहीं हुआ है. उनके स्थान पर सिर्फ़ Corporate Sector और Businesses को ही लाभ हुआ है. अभी तक आपने सिर्फ़ गंगा जी से कैसे लाभ होगा यही सोचा है. आपने गंगा जी को कुछ नहीं दिया.
3 अगस्त 2018 को केन्द्रिय मंत्री साधवी उमा भारती मुझसे मिलने आईं. उन्होंने फ़ोन पर मेरी नितिन गडकरी से बात भी करवाई लेकिन मुझे आपसे उत्तर की अपेक्षा है. इसलिए मैं उमा जी को कोई जवाब नहीं दे पाया. मेरी आपसे विनती है कि आप मेरी 4 मांगें मान लें, जो मैंने 13 जून 2018 की चिट्ठी में लिखी थी.
ये है मेरी चार विनतियां जिन पर मैं उचित कार्रवाई चाहता हूं:
गंगा महासभा द्वारा 2012 में बनाए गए Draft Bill [Draft of National River Gangaji (Conservation&Management) Act – 2012: http://www.gangamahasabha.org/gm%20docs/Draft%20Proposal%20%20of%20Ganga%20Mahasabha.pdf ] पर संसद में विचार हो और उसे पारित किया जाए.
अलकनंदा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंदार और मंदाकिनी पर चल रहे सारे Hydal Power Projects रद्द किए जाए. इसी के साथ गंगा और उनसे जुड़ी नदियों पर प्रस्तावित सारे प्रोजेक्ट्स रद्द किए जाए.
हरिद्वार कुंभ क्षेत्र के आस-पास पेड़ों के काटे जाने, जीव-जंतुओं को मारने पर रोक लगाई जाए.
जून 2019 तक एक गंगा भक्त परिषद बनाया जाए जिसमें आपके द्वारा 20 मेंबर होंगे जो गंगा में खड़े होकर गंगा के लिए काम करने की शपथ लेंगे.
क्योंकि मुझे 13 जून 2018 की अपनी चिट्ठी का कोई उत्तर नहीं मिला मैंने 22 जून 2018 से अनशन शुरू कर दिया था. उम्मीद है आप जल्द कोई कार्रवाई करेंगे.
आपका,
स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद
(पूर्व प्रोफ़ेसर जी.डी.अग्रवाल)
प्रधानमंत्री मोदी जी ने सानंद जी की मृत्यु पर शोक़ भी जताया:
Saddened by the demise of Shri GD Agarwal Ji. His passion towards learning, education, saving the environment, particularly Ganga cleaning will always be remembered. My condolences.
— Narendra Modi (@narendramodi) October 11, 2018
गंगा की हालत के ज़िम्मेदार हम सभी हैं. यही नहीं, सानंद जी की मृत्यु के ज़िम्मेदार भी हम सभी हैं. केन्द्र सरकार चाहती तो गंगा को बचाने के लिए कदम उठा सकती थी. कदम उठाना तो दूर, वक़्त निकालकर मोदी उनसे मिलने भी नहीं गए.
गंगा को मां कहने वालों के इस देश में मां का ही सम्मान नहीं है और न ही मां के लिए लड़ने वालों का सम्मान है.
अफ़सोस गंगा के सम्म्मान के लिए लड़ते-लड़ते ऐसे ही एक पर्यावरणविद के अपनी जान गंवा दी.