आप फ़ेसबुक यूज़ करते हैं?

आपके स्मार्टफ़ोन में एक भी गेम है?

रोज़मर्रा के काम के लिए अलग-अलग Apps का इस्तेमाल करते हैं?

स्मार्टफ़ोन में इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं?

उपर्युक्त किसी भी सवाल का जवाब ‘हां’ है, तो आपकी बेहद निजी जानकारियां ख़तरे में हैं. आप पर नज़र रखी जा रही है, आपका इस्तेमाल हो रहा है, आपको धोखा दिया जा रहा है और वर्तमान परिस्थितियों में आप ख़ुद को बचा भी नहीं सकते. क्योंकि जब आप किसी App को डाउनलोड करते हैं, तब आप ये मंज़ूरी देते हैं, कि वो App आपकी निजी जानकारी का इस्तेमाल करे. जब आप अपनी फेसबुक या जीमेल आईडी से उस App को का इस्तेमाल कर रहे होते हैं, तब दरअसल आप अपने सुरक्षा कवच को और कमज़ोर कर रहे होते हैं.

फे़सबुक अगर एक देश होता, तो दुनिया की सबसे बड़ी आबादी यहां बसती. फे़सबुक के पास ग्राहकों की इतनी बड़ी फ़ौज इसलिए है, क्योंकि ये ढेर सारी सेवाएं उपलब्ध कराता है. फे़सबुक के यूज़र्स उस पर पूरी तरह भरोसा करते हैं. अपनी कई निजी बातें अपने दोस्तों को मैसेंजर के माध्यम से साझा करते हैं. फे़सबुक भी आपके बर्ताव का विशलेषण करता है. आपके बारे में जानकारियां एकत्रित करता है. फे़सबुक पहले भी आवाज़ रिकॉर्ड करने की बात स्वीकार चुका है.

जानकारियां किस काम आती हैं?

इन जानकारियों को फे़सबुक दो तरीके से इस्तेमाल करता है. पहला, इन जानकारियों के माध्यम से फे़सबुक अपनी सेवाओं को यूज़र्स फ्रेंडली बनाता है. दूसरा, इसे दूसरी कंपनी के साथ साझा करता है. ऐसी बहुत से कंपनियां हैं, जो इन जानकारियों को ख़रीदती भी हैं. इन एकत्रित जानकारियों को कई तरीके से उपयोग में लाया जा सकता है. उनमें रिसर्च सबसे महत्वपूर्ण कार्य है. कई कंपनियां इस डेटा को बेचती भी हैं.

हालिया घटना

कैंब्रिज एनालिटिका नाम की एक ब्रिटिश कंपनी फे़सबुक के डेटा का दुर्पयोग करने की वजह से सुर्खियों में है. कैंब्रिज एनालिटिका ने बिना इजाज़त, अनैतिक तरीक से 5 करोड़ यूज़र्स की जानाकारी एकत्रित की और उनकी मदद से अमेरिका और कई अन्य देशों में चुनाव को प्रभावित किया. कंपनी का दावा है कि उसने भारत की दो मुख्य राजनैतिक पार्टियों, भाजपा और कांग्रेस को भी अपनी सेवाएं दी हैं. ये कंपनी वोटर की सोच को प्रभावित करती है. इस घटना के बाद से फे़सबुक को भी संदेह के घेरे में रखा जा रहा है. तीन दिन के भीतर फे़सबुक के शेयर में 7 फ़िसदी गिरावट दर्ज की गई.

क्या फ़र्क पड़ता है

ऑनलाइन डेटा सुरक्षा का मसला इतना बड़ा हो गया है कि इससे किसी देश के लोकतंत्र की बुनियाद हिल जाए. जहां एक नागरिक इस मुग़ालते में रहता है कि उसके वोट से सरकारें बनती और गिरती हैं, वहीं दूसरी ओर राजनैतिक पार्टियां पूरी कोशिश में रहती हैं कि कैसे इंटरनेट के माध्यम से वोटर की सोच को तोड़ा-मरोड़ा जाए. इस काम में कैंब्रिज एनालिटिका जैसी कंपनियां इनकी मदद करती हैं. ये सोशल मीडिया की मदद से आम जनता की सोच को प्रभावित करती हैं. यानि सारा खेल पैसे और संसाधन का बन जाता है. तकनीक के इस खेल में एक नागरिक यंत्र में तबदील हो जाता है, जिसे आसानी से संचालित किया जा सकता है.

एक ग्राहक के तौर पर भी ये एक विकट समस्या है. बिना आपको सूचित किए एक कंपनी दूसरी कंपनी को आपकी जानकारियां बेचती है. हो सकता है कि एक निजी कंपनी के पास आपके बारे में आपसे ज़्यादा जानकारी मौजूद हो, और वो कंपनी इन जानकारियों का दुर्पयोग कर आपको नुकसान पहुंचा दे. इससे निजी कंपनियां आपके ऊपर पूरी तरह हावी हो सकती हैं. मौजूदा दौर में हमारे लिए इसे पूरी तरह त्यागना तब तक संभव नहीं है, जब तक हम हिमालय पर जीवन बिताने की योजना न बना रहे हों. जहां हर चीज़ डिजिटल होती जा रही है वहां आप ख़ुद को इंटरनेट से काट कर नहीं रख सकते. एक हद तक विरोध के बाद सभी को इंटरनेट की शरण में जाना ही पड़ेगा, जहां की व्यवस्था में पूरी तरह से अराजकता फैली हुई है. हम बस उम्मीद कर सकते हैं कि विश्व की तमाम सरकारें, ऐसी कंपनियों की धांधली पर लगाम लगाएं.