ट्रैफिक पर जैसे ही बत्ती लाल होती है, वैसे ही तालियां बजाते दिख जाते हैं वो यानि किन्नर. आम आदमी इनके मांगने का ज़्यादा विरोध नहीं करता और चुपचाप पैसे निकाल कर इनके हाथों में पकड़ा देता है. पर क्यों, क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की है? नहीं न, हम जिसको अच्छे से नहीं जानते, उसके बारे में एक धारणा बना लेते हैं और उनसे डरते हैं. आपको कई लोग ऐसे भी मिल जाएंगे, जो ऐसा मानते हैं कि उनकी बद्दुआ नहीं लेनी चाहिए. पर क्यों नहीं लेनी चाहिए ये कोई नहीं बताता. किसी के न बताने से हमारी इनको जानने की तलब और बढ़ती जाती है. हमारी फितरत ऐसी ही रही है कि जो चीज़ हमसे दूर होती है और जो हमसे छिपा होता है, उसके बारे में जानने के लिए उत्सुक रहते हैं.
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कई नाम होते हैं इनके हमारे यहां, किन्नर, हिजड़ा और न जाने क्या-क्या. पर जो भी नाम हम लेते हैं, वो घृणा से ही लेते हैं. अगर किसी रास्ते से कोई हिजड़ा गुज़र रहा हो, तो वहां खड़े लड़कों को उसकी ओर देख कर इशारा करके मुस्कुराते या चिढ़ाते देखा जा सकता है. कई लोग किन्नरों और समलैंगिकों में फर्क नहीं कर पाते, पर ये बेहद ज़रूरी है कि दोनों अलग हैं ये समझ लिया जाए. कई सौ सालों का इतिहास रखने के बाद 2014 से पहले तक इनको समाज में गिना भी नहीं जाता था. हमारे देश में इस समय 5 लाख किन्नर रहते हैं. मगर इनको मारे-पीटे जाने की, इनके बलात्कार की और इनको घर से निकाल देने की वारदात अकसर सामने आती रही हैं.
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आइये बताते हैं आपको किन्नरों से जुड़ी कुछ ऐसी बातें, जो आप हमेशा से जानना चाहते थे, पर कोई बता नहीं रहा था.
1. ज्योतिष के अनुसार ऐसा माना जाता है कि ‘वीर्य(Sperm) की अधिकता से बेटा होता है और रज यानि रक्त की अधिकता से बेटी. अगर रक्त और वीर्य दोनों बराबर रहें, तो किन्नर पैदा होते हैं’. ऐसा भी माना जाता है कि ब्रह्माजी की छाया से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है. दूसरी मान्यता यह है कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नरों की उत्पति हुई है.
2. इनका इतिहास बहुत पुराना है, इनका जिक्र महाभारत और उसके बाद मुगलों की कहानियों में भी हैं. महाभारत में अज्ञातवास के दौरान, अर्जुन ने विहन्न्ला नाम के एक हिजड़े का रूप धारण किया था. उन्होंने उत्तरा को नृत्य और गायन की शिक्षा भी दी थी.
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3. किन्नरों के बारे में अगर सबसे गुप्त कुछ रखा गया है, तो वो है इनका अंतिम संस्कार. जब इनकी मौत होती है, तो उसे कोई आम आदमी नहीं देख सकता. इसके पीछे की मान्यता ये है कि ऐसा करने से मरने वाला फिर अगले जन्म में किन्नर ही बन जाता है. इनकी शव यात्राएं रात में निकाली जाती है. शव यात्रा निकालने से पहले शव को जूते और चप्पलों से पीटा जाता है. इनके शवों को जलाया नहीं जाता, बल्कि दफ़नाया जाता है. किसी की मौत होने के बाद पूरा हिजड़ा समुदय एक हफ्ते तक भूखा रहता है.
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4. गुरु-शिष्य की परंपरा इस समुदाय में अभी भी चलती आ रही है. ये समुदाय ख़ुद को मंगलमुखी मानते हैं, इसलिए ही ये लोग बस शादी, जन्म समारोह जैसे मांगलिक कामों में ही भाग लेते हैं. मरने के बाद भी ये लोग मातम नहीं मनाते, बल्कि ये खुश होते हैं कि इस जन्म से पीछा छूट गया.
5. किन्नर अपने आराध्य देव अरावन से साल में एक बार विवाह करते है, ये विवाह लेकिन मात्र एक दिन के लिए ही होता है. शादी के अगले ही दिन अरावन देवता की मौत हो जाती है और इनका वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है. अरावन देवता के बारे में महाभारत में ज़िक्र किया गया है.
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6. इनके समाज में भर्ती तो कई तरीकों से होती है. अगर किसी के घर बच्चा पैदा होता है और उस बच्चे के जननांग में कोई कमजोरी पायी जाती है, तो उसे किन्नरों के हवाले कर दिया जाता है. दूसरा जो तरीका है, वो काफी खौफ़नाक है. अगर ये समुदाय किसी ऐसे आदमी या लड़के को देखता है, जिसकी चाल थोड़ी ढ़ीली हो या शरीर नाजु़क हो और खूबसूरत हो, फिर ये लोग ऐसे लड़कों से संपर्क और नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगते हैं. और मौका मिलते ही ये समुदाय उनको बधिया कर अपने साथ शामिल कर लेता है. किसी को बधिया देने का मतलब होता है – उसके शरीर के हिस्से के उस अंग को काट देना, जिसके बाद वह कभी लड़का नहीं रहता.
7. ऐसा माना जाता है कि अगर आप काफी समय से धन की कमी से जूझ रहे हों, तो किन्नरों से एक सिक्का लेकर अपने पर्स में रख लें. ऐसा करने से आपको फिर धन की कमी नहीं होगी. यदि कुंडली में बुध गृह कमजोर हो, तो किसी किन्नर को हरे रंग की चूड़ियां व साड़ी दान करनी चाहिए, इससे अवश्य फायदा होता है.
8. शर्म की बात तो ये है कि हमारे देश का कानून इनको कुछ मानता ही नहीं. आपको ये जान कर हैरानी होगी कि 2014 से इनको समाज में इनको Third Gender की श्रेणी में गिना जाने लगा. इससे पहले इनकी न तो कोई पहचान थी और न ही कोई अधिकार. अभी भी इनके बलात्कार को हमारा कानून बलात्कार नहीं मानता, इसलिए IPC सेक्शन 377 में इनका कोई ज़िक्र नहीं है.
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अपनी मजबूरियों के कारण इनके पास दो ही रास्ते होते हैं, या तो भीख मांगे या फिर सेक्स और वेश्यावृति के दलदल में उतर जायें. अब तो इनको बहुत सहूलियत दी जा रही है. ये समुदाय भी अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने लगा है. तभी तो चाहे सिंहस्थ अखाड़ा हो या फिर तृतीय लिंग का अधिकार, अब किन्नर अपने अधिकार समझ चुके हैं और उसके लिए लड़ना भी सीख चुके हैं. पर हमारा समाज अभी भी उतना ही डरता है इन किन्नरों से. तभी तो नवजात बच्चा ऐसा निकल जाए, तो उससे यूं मुंह मोड़ लेते हैं, जैसे बच्चा कोई अपराध करके आया हो. सरकार को चाहिए कि वो तृतीय लिंग को अब समाज से जोड़े, ताकि लोग इस समुदाय घृणा करने के बजाय इनके आस्तित्व को स्वीकार करना शुरू कर दें.