असम के उदलगुरी ज़िले में बसे एक गांव में हैं Tenzing Bodosa के हरे-भरे चाय के बागान. यहां आपको जंगली सूअर, हिरण, मोर जैसे तमाम जानवर मिल जायेंगे. ये ही नहीं, यहां 70 से ज़्यादा हाथी भी मौजूद हैं. ये दुनिया का पहला Elephant-Friendly बागान है.
अब ये व्यवसाय Tenzing को 60–70 लाख रुपये की कमाई देने लगा है. हालांकि, ये सफ़लता उन्हें रातो-रात नहीं मिली. जब वो दस साल के थे, तब उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी. इसके बाद वो अपने बागानों की देख-रेख करने लगे.
वो बताते हैं कि 13 सालों में उन्होंने ड्राइविंग, मैकेनिक के काम से लेकर फैक्ट्री बनाने तक सबकुछ सीखा. ये सब काम सीखते-सीखते उनमें आत्मविश्वास आ गया.
उनके पुश्तैनी खेत में पहले सब्ज़ियां और धान ही उगा करता था. धीरे-धीरे उन्होंने यहां चाय की खेती करना शरू किया. वो चाय की खेती के बारे में जानने के लिए कई किसानों से मिले. ज़्यादातर ने कीटनाशक और फ़र्टिलाइज़र इस्तेमाल करने की सलाह दी. जब उनके परिवार को स्वास्थ्य सम्बंधित परेशानियां होने लगीं, तो उन्होंने ऑर्गनिक खेती करना शुरू किया.
अब वो गोबर और गौमूत्र से बनी खाद का इस्तेमाल करते हैं. उनका कहना है कि फ़र्टिलाइज़र ज़हर जैसे होते हैं. हर कोई अपने दिन की शुरुआत चाय से करता है, वो नहीं चाहते कि लोग सुबह-सुबह ज़हर लें.
2007 में जब उन्होंने ऑर्गनिक खेती की शुरुआत की थी, तब ऐसा करने वाले वो 12,000 किसानों में अकेले थे. अब वो 30,000 अन्य किसानों को ट्रेनिंग दे रहे हैं. अब कनाडा, जर्मनी, US और UK से भी उनकी चाय की डिमांड आने लगी है. उनके बागान की ख़ासियत है इसके पास स्थित जंगल, जहां उन्होंने हाथियों के खाने के लिए बांस लगाये हैं.