बात वीरों की हो और भारतीय सेना का नाम न आए, ऐसा हो नहीं सकता.
कौन थे सैम मानेकशॉ
एक विद्रोही, जो पिता की इच्छा के विरुद्ध भारतीय सेना से जुड़े. 3 अप्रैल 1914 को पंजाब के अमृतसर में एक पारसी परिवार में फ़ील्ड मार्शल का जन्म हुआ.
एकेडमी में दिखाई प्रतिभा
इंडियन मिलिट्री एकेडमी में ट्रेनिंग के दौरान सैम मानेकशॉ ने अपनी प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी थी. मिलिट्री एकेडमी से ट्रेनिंग ख़त्म होने के बाद सबसे पहले उन्होंने 2nd Battalion, The Royal Scotts Join की. इसके बाद 54th Sikh Regiment, बर्मा में उनकी पोस्टिंग हुई.
कई भाषआओं के जानकार
सैम मानेकशॉ की भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी. उन्हें पंजाबी, हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी और गुजराती तो बोलनी आती ही थी, पश्तो में भी उन्हें महारत हासिल थी. अक्टूबर 1938 में उन्हें पश्तो में Higher Standard Army Interpreter बनाया गया.
द्वितीय विश्व युद्ध समेत 5 युद्ध में लिया हिस्सा
1942 में चल रहे द्वितीय विश्व युद्ध में उन्होंने जापानियों से Sittang नदी क्षेत्र जीत लिया.
‘एक खच्चर ने लात मार दी थी.’
-सैम मानेकशॉ
1971 के युद्ध में विजय
सेना में उनके कार्यकाल का एक अहम हिस्सा था 1971 का युद्ध. 1971 में भारतीय सेना की पूर्व पाकिस्तान में विजय का पूरा श्रेय मानेकशॉ को जाता है. मानेकशॉ और आघा मुहम्मद ख़ान (1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान के सेना प्रमुख) अविभाजित भारत में Field Marshal Sir Claude Auchinleck के अंडर साथ काम किया था. आघा ख़ान को मानेकशॉ की लाल जेम्स मोटरसाइकिल काफ़ी पसंद थी, जिसे उसने मानेकशॉ से 1000 रुपए देने के वादे पर विभाजन के समय ख़रीदा था. भारतीय सेना ने बांग्लादेश की आज़ादी में सहायता की और मानेकशॉ ने जनरल पर चुटकी लेते हुए कहा,
‘उसने मेरी बाइक के लिए 1000 रुपए कभी नहीं दिए, अब देखो आधा देश देकर क़ीमत चुकानी पड़ी है.’
-सैम मानेकशॉ
इंदिरा गांधी से थी दिलचस्प दोस्ती
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से सैम मानेकशॉ की दोस्ती बड़ी दिलचस्प थी. इंदिरा गांधी को वे ‘Sweety’ कहकर बुलाते थे. 1971 के दौर में इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा कि क्या वो युद्ध के लिए तैयार हैं, जिसके जवाब में मानेकशॉ ने कहा,
‘Sweety! मैं हमेशा तैयार रहता हूं.’
-सैम मानेकशॉ
नेताओं के आगे नहीं झुके
राजनेताओं से उनकी नहीं पटती थी क्योंकि वो उनके आगे नहीं झुकते थे. जिस वजह से रिटायरमेंट के बाद उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला. रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्हें कई Allowances नहीं मिले थे और सेवानिवृत्त होने के कई साल बाद राष्ट्रपति कलाम ने उनके नाम 2003 में 1.3 करोड़ का चेक दिया.
भारत के इस बहादुर सपूत को दिल से सलाम.