‘अगर आपको ये जानना है कि कोई सभ्यता कितनी सुसंस्कृत है तो ये देखिये कि वो अपनी औरतों के साथ किस तरह पेश आते हैं.’


ये लफ़्ज़ हैं, सीमांत गांधी या ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान के हैं.  

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कौन थे सीमांत गांधी? 


6 फरवरी 1890 को पेशावर की घाटी के एक पशतून परिवार में पैदा हुए ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान. ख़ान, 1911 में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े. ख़ान जहां से आते थे उस स्थान ने अंग्रेज़ी हुकुमत की बहुत मार झेली थी. पश्तून महिलाओं और पुरुषों के उत्थान के लिए ख़ान ने बहुत काम किया. गांधी के सत्य और अहिंसा के हथियारों को लेकर ख़ान ने ‘ख़ुदाई ख़िदमतगार’ आंदोलन की शुरुआत की थी. ख़ुदाई ख़िदमतगारों को ‘सुर्ख़ पोश’ भी कहा जाता था. ख़ान की अहिंसावादी एक भारत की सोच, लाखों लग उन तक खिंचे चले आये. 

ख़िदमतगारों ने गांधी के सत्याग्रहों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. 

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1942 के विश्व युद्ध 2 में भाग लेना है या नहीं इस बात पर ख़ान ने 1939 में कांग्रेस पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया. भारत विभाजन के बाद ख़ान बुरी तरह टूट गये. एक भारत का उनका सपना टूट गया था. जब ख़ान की जन्मभूमि पाकिस्तान बन गई तब ख़ान ने पार्टी के बड़े अधिकारियों को कहा था ‘आपने हमें भेड़ियों के आगे के डाल दिया.’


पाकिस्तान ने ख़ुदाई खिदमतगारों को गद्दार घोषित कर दिया. इसके बाद उन्हें कई मर्तबा बंदी बनाया गया.  

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भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी 


भारत रत्न पाने वाले पहले विदेशी थे ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान. आज़ादी संग्राम के दौरान ख़ान ने ‘ख़ुदाई ख़िदमतगार’ आंदोलन की शुरुआत की थी. ख़ान, गांधी के बेहद नज़दीकी मित्र थे रत्न. 
1987 में उन्हें भारत रत्न से नवाज़ा गया था.   

भारत रत्न पाने एक साल बाद ही उनकी मृत्यु हो गई.