डॉक्टर बनने के बाद अधिकतर लोग शहरों या फिर बड़े-बड़े हॉस्पिटल्स का रुख कर लेते हैं. ग़रीब लोगों और इसमें भी आदिवासियों के लिए विरले डॉक्टर ही मदद के लिए सामने आते हैं. ऐसे ही एक डॉक्टर की कहानी हम आपको बताएंगे. जो पिछले 21 सालों से आदिवासियों का इलाज कर रहे हैं. इतने सालों में उन्होंने एक लाख से भी अधिक आदिवासियों का इलाज किया है. 

हम बात कर रहे है डॉक्टर आशीष सातव और उनकी पत्नी सविता की. इन्होंने अपना पूरा जीवन महाराष्ट्र के आदिवासियों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया है. आज से 21 साल पहले इन्होंने एक झोपड़ी में छोटे से अस्पताल से अपनी सेवा शुरू की थी, जो इनकी लगन और मेहनत के दम पर 30 बेड वाले एक हॉस्पिटल में तबदील हो गई है. इनकी बदौलत ही महाराष्ट्र के मेलघाट इलाके की चिकित्सा व्यवस्था कमाल का फ़र्क देखने को मिल रहा है. इनकी कहानी भी बुहत ही प्रेरणादायक है. 

कैसे हुई शुरुआत 

बात उन दिनों की है जब डॉक्टर आशीष 12वीं कक्षा में थे. इन्होंने तभी तय कर लिया था कि वो मेडिकल की पढ़ाई करेंगे और ग़रीबों की सेवा करेंगे. फिर डॉक्टर आशीष ने नागपुर के मेडिकल कालेज में दाख़िला ले लिया. 

कॉलेज के दिनों में इन्हें कई ऐसे इलाकों में जाने का मौका मिला, जहां की स्वास्थ्य व्यवस्था बहुत ही दयनीय स्थिति में थी. मेलघाट भी उन्हीं इलाकों में से एक था, जहां प्राथमिक चिकित्सा की कोई व्यवस्था नहीं थी.

डॉक्टर आशीष ने तय किया कि वो यहीं पर अपनी प्रैक्टिस करेंगे और यहां के लोगों को बेहतरीन हेल्थ केयर उपलब्ध कराएंगे. इसी उद्देश्य के साथ वो 1998 में यहां शिफ़्ट हो गए. यहां पर उन्होंने एक झोपड़ी में MAHAN (Meditation, AIDS, Health, Addiction, Nutrition) नाम की संस्था की स्थापना की. 

आदिवासियों को नहीं था आधुनिक चिकित्सा पर भरोसा

शुरुआत में उन्हें यहां पर लोगों का विश्वास पाने में बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. क्योंकि आदिवासी अपनी मान्यताओं के चलते किसी डॉक्टर से इलाज नहीं करवाते थे. लेकिन एक घटना ने यहां के लोगों को अपनी सोच बदलने को मज़बूर कर दिया. 

डॉक्टर आशीष बताते हैं कि एक दिन उनके पास एक 50 साल के व्यक्ति को बहुत ही गंभीर हालत में लेकर आया गया. उन्हें Brain Hemorrhage की शिकायत थी और अमरावती और इंदौर के डॉक्टर्स ने उन्हें जवाब दे दिया था.

आदिवासियों का जीता भरोसा 

डॉक्टर आशीष ने उन्हें ठीक करने के इरादे से उनका इलाज शुरू कर दिया. एक सप्ताह के इलाज के वो एक दम भले-चंगे हो गए और आठवें दिन तो वो ख़ुद से चलने भी लगे. उस दिन से ही आदिवासियों ने उन्हें डॉक्टर के रूप में स्वीकार कर लिया और अब उन्हें कोई भी बीमारी होती है तो वो सीधे उनके पास ही आते हैं. 

पत्नी ने खोला आंखों का अस्पताल

वहीं दूसरी तरफ उनकी पत्नी डॉक्टर सविता ने यहां पर एक आंखों के अस्पताल की शुरूआत की. उन्होंने पाया की यहां के अधिकतर लोग आंखों की हेल्थ के प्रति जागरुक नहीं हैं. बहुत से लोग कैटरैक्ट के शिकार थे. 

इसीलिए उन्होंने यहां पर एक आंखों का अस्पताल खोलने की ठानी. उनका सफ़र भी आसान नही रहा. उन्हें पहले-पहल बहुत सी समस्याओं से जूझना पड़ा. जैसे बिजली, मेडिकल इक्विपमेंट्स आदि. सबसे बड़ी समस्या थी पैसे. 

1200 लोगों की आंखों का किया इलाज 

लेकिन डॉक्टर सविता ने अपने दम पर कई Health Societies और Social Srganisations से चंदा इकट्ठा करने में कामयाब हुईं. अभी तक सविता करीब 1200 लोगों को उनकी आंखों की रोशनी लौटा चुकी हैं. वो भी बिलकुल मुफ़्त. 

पति-पत्नी दोनों मिलकर यहां के गांव में जाकर लोगों को स्वास्थ के प्रति जागरुक भी करते हैं. इनके 21 सालों के संघर्ष और त्याग का ही नतीजा है कि मेलघाट के आदिवासियों का सामाजिक रूप से भी उत्थान हुआ है. इन्होंने इतने सालों में 1 लाख से भी अधिक लोगों का जीवन संवार दिया है. 

ये वाकई में भारत के असली हीरो हैं. डॉक्टर आशीष और उनकी पत्नी को हमारा सलाम.