हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड(सीपीसीबी) ने एक रिपोर्ट जारी की ही, जिसके अनुसार गंगा नदी के रास्ते में पड़ी 86 जगहों में से 78 जगहों के पानी को किसी हालात में पीना घातक होगा.
भारत में गंगा नदी अपने भुगोल के साथ-साथ धार्मिक मान्यताओं की वजह से बहुत महत्व रखती है. बावजूद इसके गंगा की बदहाली थमने का नाम नहीं ले रही. इसके पानी के पीने को तो छोड़िए, नहाने के लायक भी नहीं छोड़ा हमने.
सीपीसीबी के नए आंकडो़ं के हिसाब से Coliform जिवाणु गंगा नदी में उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल में फैले हुए हैं.
सीपीसीबी ने लाइव मॉनेटरिंग स्टेशनों द्वारा 86 जगहों पर गंगा के पानी की जांच की. जिसमें से केवल 18 जगह पर पानी नहाने लायक और 7 जगहों पर विशुद्धिकरण के बाद पीने लायक पाया गया.
FOR 1ST TIME EVER #CPCB puts real time map of #Ganga river on its website based on #Water Quality Monitoring resultS : http://125.19.52.219/wqi/ @Ganga_Today @IndiaRiverForum @RiverToday @MallikaBG @yamunajiye @veditum @riverine_people @indiawater @amsharma9 @Vimalgeo pic.twitter.com/N1XDqaOmXi
— SANDRP (@Indian_Rivers) August 14, 2018
हालांकि सालों से सरकारें गंगा को साफ़ करने का दावा कर रही हैं और पैसे ख़र्च कर रही हैं लेकिन ज़मीन पर उनका असर ज़ीरो बटा सन्नाटा है.
साल 2011 में National Misson For Clean Ganga की शुरुआत की गई, साल 2014 में नमामी गंगे प्रोग्राम की शुरुआत भी की गई. इसके बावजूद Coliform जिवाणु का स्तर 50,000 के ऊपर पहुंच चुका है. सामान्यतौर पर Coliform जिवाणु गर्म खून वाले जानवरों के आंत में पाए जाते हैं.
अक्टूबर 2018 को गंगा को साफ़ करने के लिए 5,523 करोड़ रुपये का बजट तैयार किया गया. फिर भी Biochemical Oxygen Demand का स्तर गिरा नहीं.