गंगा तेरा पानी निर्मल, बहता जाए… गंगा के पाप धोने या न धोने वाले भाषण पर न जाते हुए, सच का सामना करते हैं. गंगा का पानी मैदानी क्षेत्र के लोगों के लिए जीवन देने वाला है. न जाने कितने ही लोगों का भरण-पोषण करती है ये नदी और न जाने कितनी ही फैक्ट्री और कारखानों का ज़हर भी पी लेती है.

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हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, पतित पावन गंगा की कहानी भी काफ़ी दिलचस्प है. गंगा, पर्वत राज हिमावन की सुपुत्री है. कुछ धार्मिक ग्रंथों के जानकारों का मानना है कि गंगा भी कभी देवों के देव, महादेव के प्रेम में पड़ गईं थी. पर गंगा को स्वर्ग में बहने का आदेश दिया गया था, तो वे स्वर्ग में ही बहती थी. इधर पृथ्वी पर अधर्मियों और पापियों की तादाद बढ़ने लगी और गंगा की ज़रूरत पृथ्वीवासियों को भी होने लगी. राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए कठिन तपस्या कर, गंगा को धरती पर अवतरित होने के लिए मनाया. धरती, गंगा का वेग सहने में असमर्थ थी. इस समस्या का समाधान महादेव ने निकाला. महादेव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया. महादेव की जटाओं से होकर ही गंगा धरती पर अवतरित हुईं और मनुष्यों का उद्धार किया.

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कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंगा को भी महादेव से स्नेह था. इन सबकी कोई पुष्टि नहीं की जा सकती.

ये तो हो गई धार्मिक बात. पर गंगा नदी का उद्गम स्थल हिमालय पर्वत का गंगोत्री ग्लेशियर ही है. धार्मिक महत्ता के कारण हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए ये स्थान पूज्य है. हर साल हज़ारों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं. बंगाल की खाड़ी से मिलने से पहले गंगा नदी की ख़ूबसूरत यात्रा की शुरुआत यहीं से होती है.

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गंगोत्री के पास ही है गौमुख पर्वत. आश्चर्यचकित करने वाली बात ये है कि, नाम के अनुसार ही इस पर्वत का आकार गौ के मुख जैसा है. इस पर्वत के कारण ही गंगा तीव्रता के साथ, पर शांत स्वभाव से बहती है. गौमुख पर्वत के बिना गंगा का वेग तबाही मचा सकता है.

गंगोत्री की यात्रा सिर्फ़ मंदिर के लिए ही नहीं, प्रकृति के लिए भी करें.

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गंगोत्री ग्लेशियर

गंगोत्री ही भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है. 30 किमी लंबा ये ग्लेशियर उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में है, जो कि चीन की सीमा से ही सटा हुआ है. तीर्थयात्रियों के अलावा देश-विदेश से कई सैलानी और Trekking के शौक़ीन लोग यहां आते हैं. Global Warming के कारण इस ग्लेशियर की बर्फ़ पिघल रही है, ऐसे में गंगा का भविष्य भी संकट में है. यहां तक पहुंचना जितना मुश्किल है, यहां पहुंचकर होने वाले एहसासों को शब्दों में बयां करना, और भी मुश्किल है.

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गौमुख

भागीरथी नदी के वेग को नियंत्रित करता है. गौ के आकार के इस पर्वत के आस-पास के नज़ारे किसी के भी चिंताओं और ग़मों को कुछ पलों के लिए भुला देंगे. प्रकृति ने इस जगह को बड़ी शिद्दत से बनाया है.

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गंगोत्री मंदिर

18वीं शताब्दी में गोरखा रेजिमेंट के कमांडर, अमर सिंह थापा ने इस मंदिर को बनाया था. संगमरमर से बना है गंगोत्री मंदिर. सर्दियों में मंदिर की मूर्ति को मुखीमठ गांव में ले जाया जाता है और वहां तकरीबन 6 महीनों के लिए मूर्ति को रखा जाता है. मंदिर के पास के एक पत्थर को स्वर्ग से गंगा के अवतरण का असल स्थान माना जाता है.

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जलमग्न शिवलिंग

गंगोत्री के पास एक आधा डूबा हुआ शिवलिंग है. ये सिर्फ़ सर्दियों में ही दिखाई देता है, जब पानी की मात्रा बहुत कम होती है. शिव की जटाओं से अल्हड़ नदी यहीं आकर स्थिर हुई थी.

यहां एक सवाल उठता है, अगर गंगोत्री धार्मिक महत्ता का स्थान नहीं होता तो क्या ये दुर्गम ग्लेशियर इतना मश्हूर होता? शायद नहीं. ऐसे कई प्राकृतिक स्थल हैं जो बहुत ख़ूबसूरत हैं, पर दुर्गम होने के कारण लोग उनके बारे में नहीं जानते. बात जब प्रकृति की हो तब धर्म से ऊपर उठकर सोचने की ज़रूरत है. पर कई बार हम धर्म के नाम पर प्रकृति की अवहेलना करते हैं.