चंगेज़ ख़ान को विश्व इतिहास में ऐसे योद्धा के तौर पर जाना जाता है, जो अपनी बर्बरता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था. वो किसी प्राकृतिक आपदा जैसा था जिसके सामने इंसान भी कुछ नहीं कर पाते थे. वो तूफ़ान की तरह आता था और चंद मिनटों में शहर के शहर तबाह कर देता था.
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इतिहासकार आज भी चंगेज़ ख़ान को दुनिया का सबसे ख़ूंखार सेनापति मानते हैं. विश्व इतिहास में 13वीं सदी शायद सबसे ज़्यादा ख़ूनी सदी रही होगी. ये वो सदी थी जिसमे मंगोलों का कहर चीन से लेकर रूस तक फिर बगदाद से लेकर पोलैंड तक बरपा.
आज हम आपको मंगोलों के सबसे बड़े चेहरे चंगेज़ ख़ान के बारे में बताने जा रहे हैं-
तिमुचिन कैसे बना चंगेज़ ख़ान?
तिमुचिन (चंगेज़ ख़ान) तब कोई 11 बरस का रहा होगा जब उसके बाप येसुगेई बगातुर को तर्तारों ने ज़हर देकर मार दिया डाला था. समय बीतने के साथ तिमुचिन समझ चुका था कि अगर उसे और उसकी मां को ज़िंदा रहना है तो बाकी की मंगोल ख़ानाबदोश जातियों से गठजोड़ करके रहने में ही फ़ायदा है.
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चंगेज़ ख़ान जब जवान हुआ तो उसने कई अन्य जनजातियों को भी इकट्ठा करना शुरू कर दिया. इसके बाद उसने तर्तारों का विनाश कर अपने बाप की मौत का बदला लिया. धीरे-धीरे तिमुचिन की ताक़त बढ़ने लगी. ये देख जम्कुआ और केरियित समुदाय के मंगोल उसके दुश्मन बन गए. लेकिन तिमुचिन ने अपनी क़ाबिलियत और शौर्य के दम पर इन्हें भी ख़त्म कर डाला. सन 1206 में मंगोलों ने तिमुचिन को अपना सरदार (कैगन) घोषित कर दिया.
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मंगोलों के इतिहास पर आधारित किताब ‘अ सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ़ मंगोल’ में भी इस घटना का ज़िक्र किया गया है. तिमुचिन को अपना सरदार बनाते ही तंबुओं में रहने वाली सारी जनजातियां एकजुट व ताक़तवर होने लगीं. इस दौरान उनके चाहने वाले उन्हें चंगेज़ कहने लगे जबकि कैगन शब्द ख़ान बन गया. इस प्रकार से तिमुचिन बन गया चंगेज़ ख़ान.
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हालांकि, चंगेज़ के शासक बनने की उम्र को लेकर इतिहासकारों में भी कुछ मतभेद है. 51 की उम्र में चंगेज़ ने दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया जो इंग्लैंड की महारानी के साम्राज्य से थोड़ा ही कम था.
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के मुताबिक़ मंगोल खानाबदोश हुआ करते थे, उन्हें शहरी जीवन से नफ़रत थी. उनकी शानदार जीत के पीछे संख्या नहीं बल्कि अनुशासन और संगठन की क़ाबिलियत थी और इन सबके ऊपर चंगेज़ ख़ान का उनका सेनापति होना था. यकीनन वो दुनिया का सबसे महान सेनापति था.
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चंगेज़ ख़ान के कहर से बच गया था हिंदुस्तान
जवाहर लाल नेहरू ‘ग्लिंप्सेज ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ में लिखते हैं, ‘ये इत्तेफ़ाक ही रहा कि हिंदुस्तान चंगेज़ ख़ान के कहर से बच गया. ये वो वक़्त था जब चंगेज़ ख़ान के घोड़े पूरे एशिया और यूरोप के ज़्यादातर भाग को रौंद रहे थे. सबसे पहले वो मंगोल के पूर्व में गया जहां उनसे चीन के किन साम्राज्य को ख़त्म किया. फिर उसने कोरिया पर जीत हासिल की. फिर उसने दक्षिण के सुंग साम्राज्य, जिसने उसकी इन जंगों में मदद की थी, उसको भी उसने तहस-नहस कर डाला. इसके बाद चंगेज़ ख़ान ने तिब्बत के तन्गुतों को भी हराया.
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इस दौरान मंगोलिया के पश्चिम में उस वक़्त कारा खितई नाम का एक राज्य चंगेज़ ख़ान के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा था. इस लिहाज़ से उसने पश्चिम का रुख कर किया. यहीं से पश्चिम एशिया की तकदीर हमेशा के लिए बदल गयी.
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मंगोल इतिहास की सबसे बर्बर जंग
सन 1219 चंगेज़ ख़ान ने ख्वारिज्म के शासक मुहम्मद शाह के साथ एक ऐतिहासिक जंग लड़ी गयी थी. इससे पहले चंगेज़ ख्वारिज्म शासक शाह से एक जंग हार चुका था. इस बार उसने उत्तर की तरफ़ से हमला कर ओर्तार के उसी गवर्नर को मार दिया जिसे वो अपने साथ करना चाह रहा था. बुखारा के साथ-साथ बल्ख, निशापुर, हेरात और समरकंद को तहस-नहस कर चंगेज़ ने शानदार जीत हासिल की. इस जंग के बाद इतिहासकारों ने चंगेज़ ख़ान को ‘शैतान की औलाद’ तक कह डाला था.
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चंगेज़ ख़ान की बर्बरता का इतिहास
इतिहासकार माइक एडवर्ड्स के मुताबिक़ चंगेज़ ख़ान किसी राज्य को जीतकर उसकी सेना को अपने में मिलाने का प्रयास करता जससे उसके पास हमेशा ताज़ा सैनिकों की भरमार रहती. चंगेज़ जहां भी गया वहां उसने तबाही का ऐसा मंज़र खड़ा किया कि बाद के राजा उसके ख़िलाफ़ सिर तक नहीं उठा सके. वो ख़ानाबदोश ज़िंदगी जीना पसंद करता था. उसे शहरों की ज़िंदगी से कोई लगाव नहीं था. इसलिए उसने शहर के शहर तबाह कर डाले थे.
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आख़िर चंगेज़ ख़ान किस मजहब का था?
चंगेज़ नाम के पीछे ख़ान का मतलब ये नहीं था कि वो मुसलमान था. चंगेज शमिनिस्म धर्म का अनुयायी था. यह धर्म मंगोलिया, साइबेरिया आदि इलाकों में प्रचलित है. चंगेज़ का मजहबों के प्रति रवैया एक जैसा था. उसने किसी एक महज़ब को नहीं अपनाया. उसकी सेना में मंगोल, बौद्ध और मुस्लिम धर्म को मानने वाले सैनिक थे.
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चंगेज़ ख़ान की किसी एक ख़ास मज़हब की इंसानियत के प्रति दुश्मनी नहीं थी. उसकी बर्बरता मज़हबी नहीं बल्कि सियासी थी. शायद यही कारण है कि आज भी मंगोलियाई लोग चंगेज़ ख़ान को ‘शैतान की औलाद’ नहीं बल्कि एक महान शासक मानते हैं.
चंगेज़ ख़ान की मौत 18 अगस्त 1227 को हुई थी. चंगेज़ के आख़िरी शब्द कुछ इस प्रकार थे, ‘मैं पूरी दुनिया पर फ़तह करना चाहता था, लेकिन एक उम्र इसके लिए बहुत कम है’.
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चंगेज़ ख़ान के बारे में कहा जाता है कि उसकी अंतिम इच्छा के मुताबिक़ उसे ऐसी जगह दफ़नाया गया जिसके बारे में किसी को पता न चल सके. इसलिए उसे दफ़नाने गए सभी सैनिकों को मार दिया गया था. आज भी चंगेज़ ख़ान की कब्र ढूंढने की कोशिशें जारी हैं.