दुनियाभर की न्याय व्यवस्था की आज की किताबें खंगालने पर पता चलेगा कि न्याय की किताबें आतंकवादियों को भी अपना पक्ष रखने का मौक़ा देती हैं. जुर्म छोटा हो या बड़ा सभी को वक़ील मिलता है, अदालत में सभी को समान अधिकार मिले हुए हैं.


सज़ा का प्रावधान भी कुछ ऐसा है कि लोगों को उम्रक़ैद तो मिल जाती है पर सज़ा-ए-मौत रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर केस में मिलती है. इंसानों के इतिहास में एक दौर ऐसा भी था जब महज़ शरीर के रंग के आधार पर किसी को सज़ा-ए-मौत दे दी जाती थी. शरीर के रंग के आधार पर कोई दोषी और कोई निर्दोष क़रार दिया जाता था. 

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सबसे कम उम्र में सज़ा-ए-मौत पाने वाला इंसान 


मौत की सज़ा को कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता सबसे जघन्य सज़ा मानते हैं. इसी दुनिया में एक ऐसे इंसान को मौत की सज़ा दी गई, जिसकी उम्र सिर्फ़ 14 साल की थी. 

1944 के मार्च में साउथ कैलीफ़ॉर्निया के अल्कोलू क्षेत्र में पुलिस जॉर्ज को गिरफ़्तार करने आई. उस समय उसके माता-पिता घर पर नहीं थे. जॉर्ज की छोटी बहन मुर्गियों के बाड़े के पास छिपी थी और पुलिस जॉर्ज और उसके बड़े भाई जॉनी को हथकड़ियां लगाकर ले गए. 

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इसलिए हुई थी गिरफ़्तारी 


7 और 11 साल की दो श्वेत लड़कियों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. Railroad Spike से उनके सिर पर वार किया गया था और उनके शरीर को झाड़ियों में फेंक दिया गया था. जॉर्ज और उसकी छोटी बहन उन लड़कियों को जीवित देखने वाले आख़िरी इंसान थे. 

ग़ौरतलब है कि जॉर्ज के पिता भी लड़कियों को ढूंढने गई सर्च टीम का हिस्सा थे. 

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न सबूत थे न गवाह फिर भी मिली सज़ा 


जॉर्ज का ट्रायल सिर्फ़ 3 घंटे चला था. उसके ख़िलाफ़ न तो कोई सुबूत थे और न ही कोई गवाह. रिपोर्ट्स के अनुसार, पुलिस को हत्या का दोष किसी पर डालना था और उन्होंने जॉर्ज को बलि का बकरा बनाया. पुलिस का कहना था कि जॉर्ज ने अपना गुनाह क़ुबूल कर लिया है और उसने कहा है कि वो 11 साल की Betty के साथ सेक्स करना चाहता था, जब उसने मना किया तो जॉर्ज ने दोनों की हत्या कर दी. 

जॉर्ज को सज़ा-ए-मौत मिलनी है ये सिर्फ़ 10 मिनट में तय किया गया. 3 महीने के अंदर ही इलेक्ट्रिक चेयर से उसे मौत दे दी गई. जल्लाद के अनुसार वो इलेक्ट्रिक चेयर के लिए काफ़ी छोटा था, उसके स्ट्रैप्स फ़िट नहीं हो रहे थे, उसमें लगा इलेक्ट्रोड उसके पैरों के लिए बहुत बड़ा था और उसे कुर्सी में फ़िट करने के लिए बाइबल के ऊपर बिठाया गया था. 

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न माता-पिता से मिलने दिया गया और न ही डिफ़ेंस लेने दिया गया 


जॉर्ज को उसके माता-पिता से मिलने की इजाज़त नहीं दी गई. जब उससे पूछताछ चल रही थी तब उसके पास कोई लीगल काउंसिल भी नहीं था. जॉर्ज के समर्थकों का कहना है कि पूछताथ के दौरान वो इतना डरा हुआ था कि वो पुलिस को ख़ुश करने के लिए कुछ भी कहने को तैयार थे. जबकि पुलिस को भी ये पता था कि जॉर्ज के ख़िलाफ़ एक भी सुबूत नहीं था. 

जनवरी 2014 में, जॉर्ज की मृत्यु के 70 साल बाद उसके परिवार ने उसके नाम से हत्यारे का टैग हटाने का निर्णय लिया. जॉर्ज के केस का फिर से ट्रायल हुआ और इस बार ये 2 दिन तक चला. जज ने कहा कि ‘जॉर्ज के साथ जो हुआ उससे बड़ा अन्याय नहीं हो सकता.’ 

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जॉर्ज स्टिनी जूनियर की ‘ग़लती’ शायद बस इतनी थी कि वो अश्वेत पैदा हुआ था और वो भी एक ऐसे दौर में जब अमेरिका में अश्वेत लोगों के ख़िलाफ़ बहुत ही घटिया, मानवताहीन, भेदभाव करने वाले क़ानून थे.