26 वर्षीय Ramulu को HIV है. जैसे ही इस बीमारी का उसके घरवालों को पता चला, उन्होंने उसे घर से निकाल दिया. शायद उन्होंने समाज के डर से ये निष्ठुर फ़ैसला लिया होगा. लेकिन आज Ramulu आत्मनिर्भर है और बकरियां पाल कर इज्ज़त से अपना जीवन चला रहा है. Good Samaritans India नाम के शेल्टर होम ने इस काम के लिए Ramulu को लोन दिया था और उसे रहने की जगह भी दी.

कैसे शुरू हुई ये संस्था:

जॉर्ज राकेश बाबू ‘Zion Children Home’ नाम के एक NGO के साथ काम करते थे, जो 40 अनाथ बच्चों की देखभाल करता था. इसके संस्थापक गणेश प्रभु को ख़राब स्वास्थ्य की वजह से अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था. अस्पताल का बिल 1.65 लाख आया था. राकेश ने उस वक्त अपने दोस्तों और रिश्तेदारों की सहायता लेकर पैसे जुटाए थे. 23 दिनों तक उन्होंने ही अनाथालय के बच्चों की देखभाल की. जब गणेश की हालत और बिगड़ने लगी, तो राकेश ने बच्चों को दूसरे NGO में भर्ती करवा दिया.

एक दिन गणेश को और उनकी देखभाल कर रहे दो बच्चों को भी घर से निकलने को कह दिया गया, क्योंकि वो घर का किराया नहीं दे पा रहे थे. कुछ दिनों बाद राकेश को पता चला कि गणेश की मौत हो गयी है और जब वो वहां पहुंचे, तो पाया कि 20 बच्चे उनका अंतिम-संस्कार करने का इंतज़ार कर रहे थे. उन्हें किसी दूसरे गांव में दफ़नाना पड़ा था.

इस घटना से राकेश बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उस दिन प्रतिज्ञा की कि वो किसी भी ज़रूरतमंद को अकेला नहीं छोड़ेंगे. इसके बाद ही 2008 में उन्होंने ‘Good Samaritans India’ शुरू किया. तब से ये संस्था उन लोगों की मदद कर रहे हैं जो बीमार और ज़रूरतमंद हैं.

बेघरों को देते हैं शरण:

ये संस्था ऐसे लोगों को रहने की जगह देती है और उनके खाने और दवाइयों का ख़्याल रखती है. इस वक़्त ऐसे 117 लोगों को इस संस्था ने शरण दी हुई है. हैदराबाद और Warangal में लोगों की मदद कर रही ये संस्था लोगों के ठीक होने तक उनका ख़्याल रखती है. इसके बाद कुछ अपने परिवारों के पास वापस लौट जाते हैं और कुछ यहीं रह कर इस संस्था को चलाने में मदद करने लगते हैं. कोई मरीज़ों की ड्रेसिंग आदि में मदद करता है, तो कोई खाना बनाने में.

इतना ही नहीं, जो लोग अपनी नयी ज़िन्दगी शुरू करने के इच्छुक होते हैं, ये संस्था उन्हें लोन लेने में मदद करती है. Ramulu की सफ़लता देखने के बाद और भी कई लोगों ने इस ओर कदम उठाया है.

आसान नहीं है नेकी की राह:

नेकी की इस राह पर चल रही संस्था को आए दिन परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है. उन्हें आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ भीखारियों के माफ़िया और सोसाइटी से धमकियों से भी निपटना पड़ता है. उनके पड़ोसी भी उन पर जगह खाली कर देने का दबाव बनाते रहते हैं.

इन परेशानियों से भी राकेश का साहस कम नहीं हुआ है, वो इसे और आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं और भारत के अन्य हिस्सों में भी इस संस्था की शाखाएं खोलने के लिए प्रयास कर रहे हैं.