इतिहास अपने अतीत से बाहर निकल-निकल कर हमें चौंकाने के लिए हमारे सामने आता रहता है. प्राचीन मानव सभ्यताओं ने इस पृथ्वी पर अपने अस्त्तित्व के पनपने और मिटने के दौरान इस धरती को अनेक रंगों में रंगा. इतिहास को हमारे सामने लाने में सबसे बड़ा हाथ ऐतिहासिक लेखों और पुरातन संरचनाओं का है. इतिहास की यादों को ताज़ा करती ऐसी ही संरचनाओं में से एक है, मध्यप्रदेश की रायसेन की दीवार.
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इस दीवार को चीन की दीवार के बाद दुनिया की सबसे बड़ी दीवार बताया जा रहा है. इसकी लम्बाई 80 से 90 किलोमीटर है. इसके साथ ही यह 15 से 20 फ़ीट की चौड़ाई भी लिए हुए है, इस वजह से इस पर एक साथ अनेक लोग पंक्तिबद्ध हो कर चल सकते हैं. रही बात इसकी ऊंचाई की, तो समय के साथ-साथ जीर्ण-शीर्ण होने की वजह से वो अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग अनुपात में स्थित है.
एक एनजीओ ने खोज़ा था इस दीवार को
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इस दीवार को सबसे पहले रायसेन जिले के एक स्थानीय एनजीओ इतिहास संकल समिति ने खोजा था. आर्थिक तंगी की वजह से कुछ समय तक इस पर काम करने के बाद उन्होंने इस कार्य में पुरातत्त्व विभाग की मदद ली. यह प्राचीन दीवार भोपाल से 100 किलोमीटर दूर बेदी के चौकीगढ़ किले से शुरू होती है, जो रायसेन और नरसिंहपुर जिले की सीमा पर स्थित गोरखपुर गांव तक फ़ैली है.
वास्तु और उत्कृष्ट शिल्पकला का नमूना है ये दीवार
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इतिहास के जानकारों का कहना है कि इस क्षेत्र में प्राचीनकाल में परमार वंश के राजाओं का शासन हुआ करता था. दीवार की बनावट को देख कर लगता है, परमार राजाओं ने इसे अपने राज्य की सुरक्षा की दृष्टि से बनवाया था. इसके साथ यह भी हो सकता है कि इसे राज्य के सीमांकन के लिए बनाया गया हो.
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इस दीवार में बड़े-बड़े पत्थरों को जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का उपयोग किया जा रहा है. बीच-बीच में कहीं-कहीं पर मिट्टी और पत्थरों के मलबे का इस्तेमाल भी इसे जोड़ने के लिए किया गया है. परमार राज्य के दक्षिणी भाग में कलचुरी वंश के राजाओं का शासन था. परमार और कलचुरियों में लगातार युद्ध हुआ करते थे, ऐसे में इस दीवार का सामरिक महत्त्व भी काफ़ी ज़्यादा बताया जाता है.
सही तरीके से संरक्षण किये जाने पर बन सकती है पर्यटन का आकर्षण
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यह दीवार सैंकड़ों गांवों से हो कर गुजरती है. जागरुकता के अभाव में गांव वाले दीवार के पत्थरों को अपने व्यक्तिगत कामों के लिए उखाड़-उखाड़ कर ले गये हैं. ऐसे में अगर दीवार के संरक्षण पर सरकार की तरफ़ से ध्यान नहीं दिया गया, तो यह महज़ एक इतिहास बन कर रह जाएगी. इस दीवार की लम्बाई और विशालता की वजह से इसके दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार होने के गौरव को देश के पर्यटन के क्षेत्र में भुनाया जा सकता है.
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भारतवर्ष का इतिहास काफ़ी गौरवमयी रहा है. हमारे पूर्वजों ने इस महान धरती को अपने खून-पसीने से सींच कर हमें एक अद्भुत वर्तमान तक पहुंचाया है. हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम उनके द्वारा छोड़ी गई, यादों को सहेज कर रखें.