आपने ‘गुलाबी गैंग’ के बारे में सुना होगा.उनके काम से प्रेरित हो कर ‘गुलाबी गैंग’ नाम से एक फ़िल्म भी बनाई गई थी. लेकिन यहां हम किसी और गैंग की बात करने वाले हैं. उत्तर प्रदेश में एक ज़िला है कन्नौज, वहां ‘ग्रीन गैंग’ नाम का एक दल है. नाम से आपको लगा होगा ये पर्यावरण से जुड़े कार्यों को अंजाम देते होंगे. ग़लत, ये न्याय की लड़ाई लड़ते हैं, कमज़ोर का सहारा बनते हैं. इस गैंग की सभी सदस्य महिलाएं हैं और ये सिर्फ़ हरे रंग की साड़ी पहनती हैं.

गैंग की लीडर हैं अंगूरी दहाड़िया. आज एक वृक्ष बन चुके ‘ग्रीन गैंग’ का बीज इन्होंने ही बोया था. . कन्नौज में ‘ग्रीन गैंग’ न्याय का प्रतीक है. कभी-कभी इनका न्याय दिलवाने का तरीका टेढ़ा भी होता है. ये अपने फ़रियादी के बीच लिंग के आधार पर फ़र्क नहीं करतीं.

इस संगठन की नीव कन्नौज ज़िले के तिर्वा कस्बे में वर्ष 2010 में हुई थी. वर्तमान में ये उत्तर प्रदेश के 13 ज़िलों में सक्रिय है और इनके संगठन से 14 हज़ार 252 महिलाएं जुड़ी हुई हैं.

‘ग्रीन गैंग’ की कहानी शुरू होती है इसकी लीडर अंगूरी की कहानी से. घर को चलाने के लिए अंगूरी जूते, शीशे रखने वाले डिब्बे बनाती थी. इससे बच्चों की पढ़ाई हो रही थी, बीमार पति का इलाज चल रहा था. उन्हीं पैसों से किश्तों में ज़मीन भी ख़रीदी. जब सभी किश्त भर दिए गई, तब बेचने वाले ने बेइमानी कर दी.

इंसाफ़ के लिए अंगूरी दर-दर भटकती रही, लेकिन किसी ने आगे आ कर उसकी मदद नहीं की. एक बार के लिए अंगूरी के दिमाग़ में ये बात आई कि वो फुलन देवी की तरह बंदूक उठा लें. लेकिन बच्चों के भविष्य के ख़्याल ने उसे ऐसा नहीं करने दिया.

तभी उसने महिलाओं के लिए एक संगठन बनाया. इतने से कुछ नहीं हुआ, संगठन से जुड़ने के लिए कोई राज़ी नहीं हो रहा था. अंगूरी इसके लिए गांव-गांव जा कर न्याय-अन्याय की बातें सबको समझाने लगी. धीरे-धीरे लोग अंगूरी की बातों को समझने लगें. जिनके साथ कभी ज़ोर-जबरदस्ती हुई, वो ‘ग्रीन गैंग’ की सदस्य बनने लगीं. हर एक नए सदस्य के जुड़ने से ‘ग्रीन गैंग’ का परिवार बढ़ता गया. गैंग में हरे रंग की साड़ी सामान्य कार्यकर्ता के लिए होती है और लाल पट्टी वाली साड़ी पदाधिकारी के लिए होती है.

असहायों की लड़ाई लड़ने के लिए इनके सदस्यों को कई बार जेल भी जाना पड़ा, लाठियां भी चलानी पड़ीं, ख़ुद अंगूरी भी पांच बार जेल जा चुकी हैं. लेकिन कभी भी उन्हें जेल में तीन दिन से ज़्यादा नहीं रुकना पड़ा है.

संगठन काफ़ी बड़ा हो चुका है. इसे आगे बढ़ाने में आर्थिक दिक्कतें आ रही हैं. इससे निपटने के लिए ‘ग्रीन गैंग’ को राजनैतिक पार्टी की शक्ल देने के बारे में सोचा जा रहा है. इससे वो बड़े स्तर पर लोगों की मदद कर सकेंगी और संगठन को ज़िंदा रखा जा सकेगा.

गो ग्रीन!