अहमदाबाद की सड़कों पर दौड़ते ऑटो, लोडिंग बस और कैब में अगर महिला ड्राइवर दिखे, तो चौंकना नहीं. क्योंकि यहां की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का ज़िम्मा यहां की एक दूसरी महिला कीर्ति जोशी ने लिया है, जो ‘ड्राईवर बेन: एक नई पहचान’ के तहत महिलाओं को ड्राइविंग सिखाने का काम कर रही हैं. इस प्रोजेक्ट की शुरूआत जनविकास संगठन और आज़ाद फ़ाउंडेशन के तहत की गई है.

साल 2016 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य गरीब लड़कियों और महिलाओं को ड्राइविंग सिखाकर एक बेहतर भविष्य देना है. प्रोजेक्ट की हेड कीर्ति का कहना है,

ड्राइविंग के अलावा बहुत से प्रोफ़ेशन है, जो पुरूष प्रधान हैं. इसलिए यहां महिलाएं अपने पर्सनल कामों के लिए ड्राइविगं कर सकती हैं, लेकिन उसको पेशा बनाने की बात पर सब की आंखें बड़ी हो जाती है. इसलिए हमारा उद्देश्य महिलाओं को इस पेशे के लिए तैयार करके समाज में एक बदलाव लाना है.

इस प्रोजेक्ट के तहत 6 महीने के कोर्स में महिलाओं को ड्राइविंग के साथ-साथ सेल्फ़-डिफ़ेन्स की ट्रेनिंग भी दी जाती है. इसके अलावा उन्हें ‘सेक्स एंड जेंडर’ के लिए भी क्लासेज़ दी जाती है, ताकि उन्हें अपने अधिकार पता हों.

हमारे यहां से कई महिलाओं की ड्राइवर के तौर पर नौकरी लगी है. उनमें से एक महिला ड्राइवर जिग्नीषा हैं, जिन्होंने एक घर में निजी ड्राइवर के तौर पर जॉइन किया था, लेकिन वहां पर उनसे घर के बाकी काम करने के लिए भी कहा जाना लगेगा. मगर हम ट्रेनिंग के दौरान ही बता देते हैं कि आपका काम सिर्फड ड्राइविंग का है, बाकि काम आपको नहीं करने हैं. इसलिए उन्होंने घर के काम करने से साफ़ मना कर दिया और वो नौकरी छोड़ दी.

इससे जुड़ी एक और महिला भारती कहती है, 

मेरे घर की परिस्थितियों के चलते मेरा आत्मविश्वास पूरी तरह से ख़त्म हो गया था. फिर एक दिन इस प्रोजेक्ट से जुड़े नौसर से मुझे ड्राइविंग बेन के बारे में पता चला और मैं यहां आ गईं, जबसे मैं यहां आई हूं तब से मुझमें एक नई ऊर्जा जागी है. 

तो वहीं इससे जुड़ी जूही बताती है,

जब मेरी शादी हुई थी तब मैं पढ़ाई कर रही थी. इसके बाद मेरे पति ने मुझे सिर्फ़ पढ़ाई के लिए ही नहीं, बल्कि यहां आने के लिए भी प्रेरित किया. मेरे पति चाहते हैं कि मैं अपनी दोनों बेटियों के लिए एक मिसाल बनूं.

आपको बता दें, इस प्रोजेक्ट की शुरूआत 10-15 महिलाओं के साथ हुई थी, आज ये संख्या सैकड़ों में पहुंच चुकी हैं. अबतक 130 महिलाओं को ड्राइविंग सिखाई जा चुकी है, जिनमें से 100 महिलाओं की नौकरी लग चुकी है.

कीर्ति ने इस प्रोजेक्ट की सफ़लता की ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए बहुत गर्व से बताया,

मुझे बहुत गर्व और ख़ुशी है कि जिस प्रोजेक्ट के लिए हमने बहुत मेहनत की है आज वो मेहनत रंग लाई है. आज हमारे बैच में 100 से ज़्यादा महिलाएं जुड़ चुकी हैं. हमारे यहां से प्रशिक्षित महिलएं अच्छी जगह नौकरी कर रही हैं. हमारी एक महिला ड्राइवर रेखा स्कूल बस चलाती हैं तो चंदा बेन, लोडिंग व्हीकल चला रही हैं.

कीर्ति अपनी सफ़लताओं का श्रेय नौसर जहां और ड्राइविंग ट्रेनर आरिफ़ को भी देती हैं. उनका कहना है कि आज इन लोगों की मेहनत के वजह से ही ड्राइविंग बेन को ये ऊंचाइयां मिली हैं. कि आज यहां पर महिलाएं सीखने आना चाहती हैं.  

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