आज सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह की जयंती है. ‘वाहेगुरु जी दा खालसा वाहेगुरु जी दी फतेह’, “सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं, तबै गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं.” जैसे प्रसिद्ध नारे उनकी ही रचना है. नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, आज जन्मतिथि है. इसलिए आज उनकी जयंती मनाई जा रही है.
गुरु गोविंद सिंह जी ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी. उन्होंने अकाल उस्तत, जाप साहिब, बिचित्र नाटक, चंडी चरित्र, शास्त्र नाम माला जैसे ग्रंथों की रचना की थी. जीवन को बेहतर बनाने के लिए दिए गए उनके उपदेश आज भी दिए जाते हैं.
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गुरु गोविंद सिंह का जब जन्म हुआ था, तब उनके पिता गुरु तेग बहादुर सिंह असम की यात्रा पर थे. वो मां गुजरी और गुरु तेग बहादुर जी के एक मात्र पुत्र थे. उनके जन्म की ख़बर पिता को बहुत दिनों बाद मिली थी. माता ने ही उन्हें बाल गोविंद राय नाम दिया था. गुरु गोविंद सिंह जी 6 साल की उम्र तक पटना साहिब में ही रहे थे.
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उन्होंने ही गुरुग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित किया था. उन्होंने जीवन जीने के 5 सिद्धांत दिए, जिन्हें पंच ककार कहा जाता है. सिख धर्म में इन पांच चीज़ों को अनिवार्य माना जाता है. ये हैं- कृपाण, केश, कड़ा, कंघा और कच्छा.
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गुरु गोविंद सिंह की जयंती को सिख धर्म में बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है. इस दौरान देश-विदेश के हर गुरुद्वारे में लंगर, नगर-कीर्तन आदि भी आयोजित किए जाते हैं. इस मौके पर पटना साहिब पर काफ़ी रौनक देखने को मिलती है. वहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है.
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ये वही गुरुद्वारा है जहां पर गुरु जी से संबंधित कई चीज़ों को संजो कर रखा गया है. यहां पर उनकी कृपाण, खड़ाऊ और कंघा रखा हुआ है, जिसका इस्तेमाल गुरु गोविंद जी किया करते थे. इस गुरुद्वारे में वो कुआं भी मौजूद है, जिसके पानी का इस्तेमाल गुरु मां किया करती थीं. इसलिए उनकी जयंती पर इस पटना साहिब में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है.
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उनके उपदेश हमें जीवन में हर तरह के अत्याचार और दमन के ख़िलाफ उठ खड़े होने की प्रेरणा देते हैं.
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