इन दिनों देशभर में रंगों के त्योहार होली की धूम मची हुई है. ऐसे में आप सभी ने मथुरा और वृंदावन की होली के बारे में तो सुना ही होगा. मथुरा की लट्ठमार होली हो या फिर फूलों की होली, इसमें शामिल होने के लिए हर साल लाखों लोग हर साल पहुंचते हैं. मथुरा की लठमार होली तो विश्व प्रसिद्ध है. 

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आज हम आपको एक ऐसी होली के बारे में बताने जा रहे हैं जो उत्तराखंड में खेली जाती है. इस होली का नाम है ‘महिला होली’ या ‘बैठकी होली’. इसके नाम से आप समझ ही चुके होंगे कि ये होली सिर्फ़ महिलाओं द्वारा ही खेली जाती है. इसमें पुरुषों की एंट्री नहीं होती है. 

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उत्तराखंड हमेशा से ही अपनी अनोखी होली के लिए जाना जाता है. होली से 10 पहले से ही यहां तरह-तरह की होली खेली जाती हैं. लेकिन ‘महिला होली’ की बात ही निराली है. ये होली मुख्य रूप से उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर और पिथौरागढ़ ज़िलों में खेली जाती है.   

क्या ख़ास बात है ‘महिला होली’ की? 

‘महिला होली’ की ख़ास बात ये है कि ये 10 पहले से ही महिलाएं घर-घर जाकर होली खेलने लगती हैं. ये होली खासतौर पर अपने गीत-संगीत और नाच-गान के लिए ही जानी जाती है. इस दौरान आस पड़ोस की महिलाएं बारी-बारी से एक दूसरे के घर जाकर 2 से 3 घंटे के लिए होली के गीत गाती हैं. पहाड़ी गीत संगीत पर डांस किया जाता है. होली खेलने वाली महिलाओं को ‘महिला होल्यार’ कहा जाता है. 

इस दौरान जिस घर में होली खेली जाती है वहां मेहमानों के लिए तरह तरह के पकवान भी बनाए जाते हैं. ये होली सिर्फ़ गुलाल के साथ ही खेली जाती है, इस दौरान रंगों का बेहद कम ही इस्तेमाल किया जाता है. इस होली में 10 साल से छोटे बच्चे (लड़के) तो भाग ले सकती हैं लेकिन बड़ों को इसमें इजाज़त नहीं दी जाती हैं. 

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‘महिला होली’ को ‘बैठकी होली’ भी कहा जाता है 

इस दौरान महिलाएं उत्तराखंड की परंपरा के तहत कुमाऊनी भाषा के गानों पर हंसी-ठिठोली से भरे स्वांग भी करती हुई नज़र आती हैं. चूंकि इस दौरान पुरुषों की एंट्री नहीं होती है इसलिए महिलाएं पूर्ण स्वतंत्रता के साथ देवर-भाभी के मजाक से जुड़े हुए अनेकों हास्य डांस भी करती हैं. 

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हालांकि, इस बार ‘कोरोना वाइरस’ के चलते लोगों ने घर-घर जाकर ‘बैठकी होली’ न करने का निर्णय लिया है. इस दौरान पढ़ी लिखी महिलाएं इस वायरस को लेकर अन्य महिलाओं को जागरूक करने का काम कर रही हैं.