माता-पिता किसी के भी हों वो अपने बच्चों को अच्छी लाइफ़ देने के लिए अपनी पूरी जी जान लगा देते हैं. ख़ुद भले ही भूखे सो जाएं, लेकिन वो हमेशा इस बात का ख़्याल रखते हैं कि उनका बच्चा भूखा न रहे. उनकी यही तमन्ना रहती है कि उन्होंने अपने जीवन में जितनी भी तकलीफें सही हैं, उनकी परछाई भी उन पर न पड़े. आज हम आपको ऐसे ही एक पिता की कहानी बताने जा रहें हैं, जो एक वॉचमैन की नौकरी करते हैं, लेकिन अपने बच्चों का भविष्य संवारने में लगे हैं.

बात हो रही है मुंबई में एक चौकीदार की नौकरी करने वाले शख़्स की. ये बिहार के रहने वाल हैं और उनके पिता एक किसान थे. ये जब 18 साल के थे तब उनके गांव की झील सूख गई थी और पूरा इलाका में सूखे की चपेट में आ गया था.

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तब उनके परिवार के सामने खाने के लाले पड़ गए थे. खाने की तलाश उन्हें मुंबई ले आई. यहां इन्होंने एक पोस्ट ऑफ़िस में काम करना शुरू कर दिया और हर महीने कुछ पैसे बचा कर अपने घर भेजने लगे. कुछ साल पहले वो पोस्ट ऑफ़िस से रिटार हो गए.

अब वो एक चौकीदार की नौकरी कर रहे हैं, ताकी अपने बच्चों को पढ़ा सकें. उनके दिल में यही डर बना रहता है कि अगर इनके बच्चे पढ़ न पाए तो क्या होगा.

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इसलिए ये आराम करने की उम्र में भी नौकरी कर रहे हैं. इनकी इसी मेहनत का फल भी अब मिलने लगा है. इनका बड़ा बेटा पढ़ने में होशियार है. इस साल साइंस और मैथ्स में उसे 100 में से 100 नंबर मिले हैं.

बेटे के कॉलेज में हाल ही में इन्हें स्टेज पर बुलाकर बधाई भी दी गई थी. तब वो बहुत ही गर्व महसूस कर रहे थे और उनकी आंख से आंसू भी छलक गए. वो कहते हैं उनके बेटे ने जो हासिल किया है उस पर गर्व है, फिर भी वो अपने बच्चों के लिए और अधिक करना चाहते हैं.

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वो चाहते हैं कि न सिर्फ़ उनके बच्चों की पढ़ाई, बल्कि वो उन्हें हर वो ख़ुशी दें जो बाकी के माता-पिता अपने बच्चों को देते हैं. जैसे किसी रेस्टोरेंट में खाना खिलाना, जो वो अफोर्ड नहीं कर सकते.

ये खु़द को अभागा समझ रहे थे क्योंकि इनके बच्चे के दोस्तों के पैरेंट्स कॉलेज के समारोह के बाद डिनर पर ले गए थे, लेकिन वो ऐसा नहीं कर सके. तब वो बहुत ही शर्मिंदा महसूस कर रहे थे, क्योंकि उनके पाई-पाई खाने और बच्चों के लिए किताबों के इंतज़ाम करने में ही निकल जाती है.

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लेकिन फिर वो अपने पिता होने का रोल निभाते आ रहे हैं और उसके लिए कड़ी मेहनत करते हैं. वो कहते हैं कि रात में हमारा परिवार साधारण भोजन करता है. तब मुझे एहसास हुआ कि मेरा बेटा मेरी फ़ीलिंग्स समझता है. इसलिए वो रात में डिनर के बाद आया और मुझे गले लगाते हुए थैंक्स बाबा कहा.

उस पल मेरी सारी परेशानियां जैसे काफूर हो गई थीं. तब मुझे लगा कि हां मैं अपने बच्चों के लिए कुछ कर रहा हूं.

इस चौकीदार ने ह्यूमन्स ऑफ़ बाम्बे को अपनी ये पूरी कहानी सुनाई है. इसमें उनका नाम नहीं बताया गया है लेकिन इनकी स्टोरी यही साबित करती है कि हमारे पैरेंट्स ने हमारे लिए जो किया है, उसे मापने का कोई तरीका नहीं है. हम बस उनके आभारी हो सकते हैं.