ज़िंदगी को रफ़्तार से आगे बढ़ता देख, मन में बार-बार एक ही ख़्याल आता है कि काश कोई मुझे मेरा बचपन वापस लौटा देता. एक दौर वो भी था, जब हम हाईस्कूल से निकल कर कॉलेज जाने के हंसीन सपने देखा करते थे, लेकिन तब कहां पता था कि इसके बाद लाइफ़ कॉलेज के हॉस्टल की चार दीवारों में बंध कर रह जाएगी. इतना ही नहीं, कॉलेज आने के बाद ही मम्मी-पापा और स्कूल के दोस्तों की असली कद्र पता चली.

हाईस्कूल बेस्ट था ये कहने के लिए ये 9 वजहें काफ़ी हैं:

1. फ़्री खाना

कॉलेज में पहला कदम रखने के बाद मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मम्मी-पापा का प्यार अनमोल होता है. स्कूल से घर आने के बाद मम्मी से जो बोलो, वो खाने के लिए बना देती थी. घर पर रहकर न पैसों की चिंता थी, न ही खाना खाने से पहले किचन के डिब्बों और फ़्रिज में झांकर ये देखने कि आज खाने में क्या बना सकते हैं. साथ ही हमें कुछ स्पेशल खाने के लिए कॉलेज कैंटीन के बाहर इंतज़ार भी नहीं करना पड़ता था.

2. कम टेंशन

हाईस्कूल के मुकाबले कॉलेज में क्लासवर्क, पेपर टेस्ट और प्रोजेक्ट्स का अधिक भार होता है. आपको वो समय याद है, जब साल में कुछ पन्नों की पढ़ाई कर और 20 सवालों का जवाब देकर हम पास हुआ जाया करते थे. मुझे याद है कि उस समय मैं ख़ुद को कितना तनाव मुक़्त महसूस करती थी. वहीं कॉलेज की मोटी-मोटी किताबें और कॉम्पटीशन देखकर मन घबरा सा जाता है.

3. समाज के लिए ज़्यादा समय था

बचपन में न तो हमारे ऊपर ज़्यादा सामाजिक ज़िम्मेदारियां होती हैं, न ही इतना अधिक पढ़ाई का दबाव होता है. शायद यही कारण है कि ऐसे में हमारा सबसे अधिक समय दोस्तों के साथ हंसी-मज़ाक और खूल-कूद में व्यतीत होता है. किसी ने सच ही कहा कि जितनी कम टेंशन, उतना ज़्यादा फ़न.

4. कम ज़िम्मेदारियां

सच में उन दिनों के बारे में सोच कर दिल ख़ुश हो जाता है, जब पूरी तरह से ख़ुद को ज़िम्मेदारियों से मुक्त महसूस करते थे. खाने-पीने से लेकर स्कूल और ट्यूशन फ़ीस भरने तक सबके लिए मम्मी-पापा हैं न सब संभालेंगे, यही सोचकर आराम से ज़िंदगी गुज़र रही थी. वहीं कॉलेज आने के बाद सबसे पहली चिंता डिग्री की सताने लगती है.

5. खेल के लिए अधिक समय था

हाई स्कूल तक हम खेल को सिर्फ़ खेल की तरह लेते थे. किसी भी टीम में शामिल होकर दोस्त बनना और उनके साथ मस्ती करके हमें ख़ुशी मिलती थी. पर वहीं कॉलेज में अगर आप कोई स्पोर्ट्स टीम जॉइन करते हैं, तो आपको खेल कम और उससे मिलने वाली स्कॉलरशिप की चिंता ज़्यादा होती है. सुबह जल्दी उठकर वर्कआउट करना और ख़ुद को फ़िट रखने का चैलेंज भी होता है. इसीलिए खेल के मामले में भी मेरा हाईस्कूल बेस्ट था.

6. स्टाइल फ़्री रहते थे

स्कूलों के दिनों में मम्मी जो पहनने के लिए दे देती थी चुपचाप पहन लेते थे, लेकिन कॉलेज आने के बाद हर रोज़ ख़ुद से यही सवाल करना पड़ता है कि आज क्या पहन कर जाऊं, पता नहीं ये मुझ पर अच्छा लगेगा या नहीं, दोस्त क्या सोचेंगे. हमें हर दिन ऐसे तमाम सवालों से जूझना पड़ता है, पर बचपन में ऐसा नहीं था कपड़ा कोई भी पहना हो, दोस्तों के सामने टशन हमारा ही चलता था.

7. आंसू पोछने के लिए घरवाले थे

स्कूल के दिनों में टीचर से डांट पड़ी हो या दोस्तों से झगड़ा हुआ हो, आंसू आने पर मम्मी-पापा समझा-बुझा कर दिल बहला देते थे. ख़ुशी हो या ग़म घरवाले हर मौके पर साथ रहते थे. वहीं कॉलेज आने के बाद लाइफ़ बिल्कुल चेंज हो जाती है. दुखी होने पर आंखों से निकले हुए आंसू खु़द ही पोछने पड़ते हैं.

8. गिले-शिकवे की कोई जगह नहीं थी

स्कूल की सबसे अच्छी बात ये थी कि यहां दोस्तों के बीच कितने ही झगड़े क्यों न हो जाए, लेकिन एक चॉकलेट या कैंडी खिला कर हम फिर से एक हो जाते थे. वहीं कॉलेज में कई बार लोग छोटी बात को रंजिश समझ कर ज़िंदगी भर के लिए आपको अपना दुश्मन बना बैठते हैं.

9. मिलकर मनाते थे त्योहार

स्कूल के समय हर त्योहार पर हमें छुट्टी मिलती थी, इसीलिए किसी भी मौके पर दोस्तों के साथ मिलकर ख़ूब मस्ती करते थे. वहीं कॉलेज में छुट्टी तो मिलती है, लेकिन सारा वक़्त पेंडिग वर्क पूरा करने में चला जाता है.

क्यों आपको भी याद आ गये न बीते हुए वो सुनहरे लम्हे!

Source : theodysseyonline

Feature Image Source : christguna