दिवाली की शॉपिंग में दिये और मिठाई के बाद पटाखों का नंबर आता है. बच्चों में पटाखों को लेकर काफ़ी उत्साह होता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस साल दिवाली पर पटाखों पर बैन न लगाते हुए सिर्फ़ दो घंटे तक आतिशबाज़ी करने की छूट दी है. वैसे तो दीपावली रौशनी का त्योहार है, लेकिन कई वर्षों से इस दिन पटाखे जलाने का चलन रहा है. इसका इतिहास क्या है और भारत में पटाखे कब आए, इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं.
इसिलए आज हम आपके लिए पटाखों की पूरी हिस्ट्री लेकर आए हैं.
पटाखा उत्पादन में भारत का स्थान दूसरा है, पहला नंबर है चीन का. भारतीय पटाखों का बाज़ार तकरीबन 2600 करोड़ रुपयों का है और इसका गढ़ है तमिलनाडु का शिवकाशी. भारत में पटाखों का अागमन 1400 इस्वी में हुआ.
पहले पटाखे थे गनपाउडर
तब ये गन पाउडर के रूप में युद्ध में इस्तेमाल किया जाता था. इतिहासकार P K Gode की किताब History of Fireworks In India Between 1400 And 1900 में इसका ज़िक्र किया गया है. गनपाउडर की खोज चीनी रसायन शास्त्रियों ने 11वीं सदी में की थी. ऐसा कहा जाता है कि वहां से अरब इसे भारत और यूरोप में लेकर आए. तब इसका इस्तेमाल किसी उत्सव के दौरान किया जाता था.
पहली बार कब की गई थी आतिशबाज़ी?
पहली आतिशबाज़ी का आयोजन 1443 में महाराजा देवराज द्वितीय की अदालत में किया गया था. तब Timurid के सुल्तान शाहरुख के राजदूत अब्दूर रज्जा़क ने ये आतिशबाज़ी महानवमी के उत्सव के दौरान की थी.
इसके बाद से ही भारतीय राजाओं और सुल्तानों द्वारा किसी भी उत्सव और शादी में आतिशबाज़ी करना आम बात हो गई. 1609 AD में बीजापुर के सुल्तान इब्राहिम आदिल शाह ने अपने जरनल की बेटी की शादी में जमकर आतिशबाज़ी की गई थी.
रुकमणी और कृष्ण की शादी में आतिशबाज़ी की गई थी
पौराणिक कथाओं की बात करें, तो संत एकनाथ की कविता ‘रुकमणी स्वयंवर’ में भी रुकमणी और कृष्ण की शादी के दौरान आतिशबाज़ी करने की बात कही गई है. 18वीं शताब्दी के आते-आते पटाखों का इस्तेमाल आम जनता भी दिवाली, उत्सव और शादियों में करने लगी.
कोटा के राजा महादजी सिंधिया अपनी रियासत में दिवाली सेलिब्रेशन चार दिनों तक मनाते थे. इसमें लंका दहन को दिखाने के लिए बड़ी मात्रा में पटाखों का इस्तेमाल होता था. 1790 मराठी इतिहासकार Rai Bahadur D.B. Parasnis ने बताया है कि अंग्रेज़ी पटाखे कैसे भारत आए. दरअसल, ओध के नवाब, असफ़-उद-दौला को ख़ुश करने के लिए उन्होंने अंग्रेज़ी पटाखों से आतिशबाज़ी की थी.
पटाखों की पहली फ़ैक्टरी
इस तरह पेशवा काल, मुगलों के अंत और ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में राज करने तक अतिशबाजी का ज्ञान लोगों को हो चुका था. अग्रेज़ों ने गन पाउडर से बने डायनामाइट का इस्तेमाल बाद में युद्ध में भी करना शुरू कर दिया. चलते-चलते आपको ये भी बता दें कि भारत में पहली पटाखा फ़ैक्टरी 1900 में कोलकाता में लगाई गई थी. इसके बाद तमिलनाडु के शिवकाशी में पटाखों के कारखाने स्थापित किए गए, जो आज देश का सबसे बड़ा पटाखा उत्पादक क्षेत्र बन गया है.
पटाखों से जुड़े इस इतिहास के बारे में जानते थे आप?