अब वो ज़माना बीत गया, जब बच्चे Exams के टाइम पर लाइब्रेरी के चक्कर काटते और ट्यूशन खोजते नज़र आते थे. साथ ही उस समय जिस विषय में बच्चे कमज़ोर होते थे, उस विषय के टीचर्स की ख़ास चाकरी करनी पड़ती थी, पर अब ऐसा नहीं है. चूंकि डिजिटल वर्ल्ड में कई चीज़ें बदली हैं, तो इसी दौर में बदल गया है पढ़ाई का तरीका भी. अब न तो बच्चे किताबों और नोट्स के लिए भागते दिखते हैं और न ही टीचर्स से पास करने की गुहार लगाते हुए. अब बच्चे ऑनलाइन टेस्ट के ज़रिये खुद अपनी क्षमता माप लेते हैं और बेहतर सुधार करते रहते हैं.

जहां पहले जिन बच्चों का बोर्ड Exam होता था, उन्हें मोबाइल छूने तक नहीं दिया जाता था, आज वहीं उन्हें स्मार्टफ़ोन के साथ-साथ अनलिमिटेड इंटरनेट भी मिल रहा है, ताकि वो ऑनलाइन पढ़ सकें. स्वध्ययन के लिए पहले किताबें और पुराने साल के प्रश्न-पत्र खंगाले जाते थे, आज बच्चे आर्काइव में सेव किये गये क्वेश्चन पेपर आसानी से पा लेते हैं. इंटरनेट और टेबलेट्स की पढ़ाई ने वाकई Revision का भी कॉन्सेप्ट बदल कर रख दिया है.

कई Websites ऐसी हैं, जो किसी शुल्क के साथ बच्चों को ऑनलाइन टेस्ट Series में जुड़ने का मौका देती हैं, उनका स्कोर बताती हैं और तैयारी की सही सलाह भी देती हैं. कुछ Websites मुफ़्त में ऐसे टेस्ट Organize करती हैं और कई साल पुराने क्वेश्चन पेपर्स भी मुहैया करवाती हैं. कई ऐसे एप्लीकेशन्स भी इन्टरनेट पर आपको मिल जायेंगे, जो बच्चों को नोट्स, Q&A Corner और हेल्पलाइन की सुविधा देते हों. इसके अलावा कई Apps पर आपको Lectures, eBooks और Assessments भी आसानी से मिल जायेंगे. ऐसे ही एक App Gradeup के CEO शोभित भटनागर के अनुसार, Mock Tests छात्रों को तैयारी में एक सही दिशा प्रदान करने का काम करते हैं. ये अब तक आपकी पढ़ी हुई चीज़ों को Recall करने का ज़रिया होते हैं. इन टेस्ट्स से बच्चों को उनकी कमज़ोरी और ताक़त का पता चलता है.

ऐसा ही एक और App है Toppr, जिस पर अभी तक 1.2 लाख से ज़्यादा Users जुड़ चुके हैं. ये भी छात्रों को लेक्चर वीडियो के साथ Multiple चॉइस टेस्ट और Question Bank मुहैया करवाता है. इस वेबसाइट पर लोगों द्वारा बिताया गया औसतन समय 80-100 मिनट होता है. इस App के फाउंडर और CEO ज़ीशान हयात का कहना है कि हर दिन इस App में Users की इंगेजमेंट बढ़ती जा रही है. लोगों को Apps की क्वालिटी और Access पसंद आ रही है. अगर किसी को लगता है कि इसका चलन बस मेट्रो Cities में ही है, तो उनको बता दें कि Toppr के 55 प्रतिशत Users छोटे शहरों से हैं.

सही बात है कि इन Apps और Websites के आने के बाद ट्यूशन और कोचिंग वालों की दुकानें बंद होती दिख रही हैं. अगर बच्चा खुद घर बैठे अपने आपको तैयार कर सकता है, तो बस स्टेटस के नाम पर महंगे ट्यूशन लगवाकर हज़ारों रुपये बहाने का क्या फ़ायदा? बदलते ज़माने की तक़दीर वाकई डिजिटली लिखी जा रही है.