अभी देशभर में CAA-NRC के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन चल रहा है. इसके पहले अलग-अलग विश्वविद्यालयों में फ़ीस वृद्धी के ख़िलाफ़ छात्र प्रदर्शन कर रहे थे. इन दोनों प्रदर्शनों और इनके पहले के प्रदर्शनों में भी एक नारा सुनने को मिलता है… ‘हम देखेंगे’.

कुछ प्ले-बोर्ड्स पर आगे की लाइनें भी लिखी होती हैं….
हम देखेंगे

ये एक पूरी नज़्म है, इसे मशहूर पाकिस्तानी शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने लिखा था. फ़ैज़ ने ये नज़्म पहली बार 1979 में अमेरिका में आयोजित कार्यक्रम के सुनाई थी. यह नज़्म उनकी सातवीं किताब ‘दिल मेरा मुसाफ़िर’ में 1981 में प्रकाशित हुई थी.
उन्होंने इसे अपनी ही सरकार द्वारा पूर्वी पाकिस्तान(बांग्लादेश) में हो रहे दमन के ख़िलाफ़ लिखा था. तत्कालीन राष्ट्र अध्यक्ष जनरल जिया उल हक़ और उनकी जनता विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ लिखी ये नज़्म लोगों की बीच ख़ूब चर्चित हुई थी.
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का जन्म साल 1911 में अविभाजित भारत के पंजाब राज्य में हुआ था. विभाजन के बाद फ़ैज कई बार जेल गए, उन्होंने अक्सर अलग-अलग सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और उसका नतीजा भुगता है.
फ़ैज़ ने कई क्रांतिकारी नज़्में और गज़लें लिखी हैं, लेकिन उनकी लेखनी इतनेभर में भी सिमट कर नहीं रह गई. उनकी गिनती आज के दौर के सबसे बड़े प्रगितिशील शायरों में होती है. ज़्यादा नहीं तो भी आपने उनकी ‘गुलों में रंग भरे’ गज़ल ज़रूर अलग-अलग गायकों की आवाज़ में सुनी होगी.
हम देखेंगे
हम देखेंगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
कहते हैं कि सार्वजनिक स्थलों पर इस नज़्म को गाने की पाबंदी थी और इसे गाने वालों को हिरासत में ले लिया जाता था. 1985 में फ़ैज़ की पहली बरसी के मौक़े पर आयोजित एक कार्यक्रम में मशहूर गायिका इक़बाल बानो ने इस गाने को गा कर सबको चौंका दिया था.