पानी बरसता है, फूल खिलते हैं, बर्फ़ गिरती है, छोटे से पौधे से पेड़ बन जाते हैं… पर कभी सोचा है कि इनके पीछे कौन सी शक्ति है? नहीं न, इन सभी के पीछे जो शक्ति है, वो प्रकृति द्वारा उपहार स्वरुप इंसान को दिए गए प्राकृतिक संसाधन है. सूरज की रोशनी, पानी, मिट्टी और हवा ये सब प्राकृतिक संसाधन ही हैं. जिनको पाने किए लिए इंसान, जीव-जंतु, पेड़-पौधों को किसी भी तरह की मशक्क्त नहीं करनी पड़ती है क्योंकि ये स्वाभाविक रूप से उत्पादित होते रहते हैं. और क्योंकि इनके लिए हमको किसी तरह न ही मेहनत करनी पड़ती है और न ही कोई पैसा ख़र्च करना पड़ता है इसलिए हमको इन संसाधनों की कद्र नहीं है. फ़्री में मिल रहा है, ले लो, दुरुपयोग करो., खूब नुक्सान पहुंचाओ इनको, क्यों सही कहा न?

वैसे तो पृथ्वी सीमित है. पर ऐसा लगता है मानों इस पर बसने वाले जीव-जंतुओं की या यूं कह लो कि धरती की सभयता की भूख अनंत है. इसको जितना मिले उतना कम है.

रिसर्चर्स के अनुसार, आने वाले समय में धरती के प्राकृतिक संसाधन ख़त्म हो जाएंगे और स्थिति भयावह हो जायेगी. दुनिया के वैज्ञानिक इस बात की आशंका आज से नहीं, बल्कि 1969 से जता रहे हैं और दुनिया को इस आने वाले खतरे के प्रति जागरूक करने के लिए 1970 से हर साल 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने की शुरुआत अमेरिका के गेलार्ड नेल्सन और जॉन मैककोनल ने की, जिन्होंने सबसे पहले अमेरिका में औद्योगिक विकास के कारण बढ़ रहे प्रदूषण और उसके दुष्परिणामों की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था.

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ख़ैर, जिस तरह से हम इन प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग कर रहे हैं, उसको देखते हुए The Global Footprint Network (GFN) ने इस बात का आंकलन किया है कि साफ़ हवा से लेकर पीने लायक पानी तक, हर साल हम धरती के इन संसाधनों का कितना उपयोग करते हैं. इसके साथ ही GFN ने ये भी बताया है कि कैसे हम और विभिन्न प्रजातियां साल दर साल पृथ्वी की संसाधनों को पुनर्जीवित करने की क्षमता को ख़त्म करती जा रही हैं.

GFN के अनुसार, हम इंसानों आज से नहीं, बल्कि 1970 की शुरुआत में प्रकृति के संसाधनों के सालाना बजट का ज़रूरत से ज़्यादा हनन करते आ रहे हैं. इतना ही नहीं हर साल इस Overshot की तारीख बढ़ती जा रही है और 2018 में ये तारीख़ 1 अगस्त है. इसका सीधा-सीधा मतलब ये है कि इस पूरे साल में हमको जितने संसाधनों का उपयोग करना था, वो हम ख़त्म कर चुके हैं और अभी 2018 ख़त्म होने में पूरे 5 महीने बचे हैं.

GFN की रिपोर्ट के अनुसार, हर दिन प्रकृति के संसाधनों का इतनी तीव्रता के साथ खत्म होना, बिलकुल वैसा है, जैसे ब्याज पर जीना, और मूलधन को ख़त्म करना. अब वो समय आ गया है जब प्रकृति के लिए एक साल भी प्रयाप्त नहीं है मानवता की संसाधनों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए.

इस तारीख की गणना करने के लिए, GFN धरती की जैव क्षमता (प्रत्येक वर्ष उत्पन्न होने वाले पारिस्थितिक संसाधन) को उन संसाधनों पर इंसान की कुल मांग से विभाजित करता है. इसके लिए GFN 1961 में प्रत्येक देश के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा एकत्र किए गए 15,000 डेटा पॉइंट्स, जिनको चार मुख्य कारकों में वर्गीकृत किया जा सकता है, का उपयोग करता है. ये चार कारक हैं: हम कितना उपभोग करते हैं; हम कितनी कुशलता से सामान बनाते; हमारी आबादी; और प्रकृति की उत्पादकता.

इसकी पूरी जानकारी आप यहां पढ़ सकते हैं.

2018 में मानव सभ्यता को सपोर्ट करने के लिए हम पृथ्वी के इन संसाधनों का 1.7 के बराबर हिस्सा खर्च करेंगे. वर्तमान आंकड़ों को देखते हुए, प्राकृतिक संसाधनों की मांग को बनाये रखने के लिए इंसान को 2030 तक दो पृथ्वी की आवश्यकता होगी.

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प्राकृतिक संसाधनों में लगातार हो रही गिरावट का परिणाम ही है कि धरती पर जंगलों की कटाई, मत्स्यपालन में कमी आना, सूखा और ग्रीन हाउस-गैस उत्सर्जन, जिससे बड़े पैमाने पर विस्थापन, आर्थिक क्षति होना और धरती से कई प्रजातियों के विलुप्त होना हुआ है.

GFN का अनुमान है कि पूरी दुनिया में 86% देश ऐसे हैं जो वर्तमान में अपने साधनों से परे रह रहे हैं, जो इसे ‘पारिस्थितिक घाटे’ कहते हैं. कुछ देशों की स्थिति तो दूसरों की तुलना में कहीं बदतर है. यदि पूरी दुनिया अमेरिकियों की दर से संसाधनों का उपभोग करती है, उदाहरण के लिए जिसका संसाधनों का बजट 15 मार्च को ही ख़त्म हो गया है, तो केवल पांच देश ऐसे हैं जिनकी स्थिति अमेरिका से भी बदतर है.

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कई देशों में, आर्थिक विकास पूरी तरह से ऊर्जा पर निर्भर है, और अगर यही संसाधन ख़त्म हो जायेगी तो ग्रोथ भी रुक जायेगी. और मानव के लिए इन संसाधनों जैसे कार्डबोर्ड से लेकर कच्चे माल की खपत बढ़ती जा रही है. लेकिन ऐसी स्थिति में भी कुछ उम्मीद की किरणें दिखाई दे रही हैं. पिछले कुछ सालों में यूरोपीय राष्ट्र और अमेरिका कम ऊर्जा का उपयोग करते हुए आर्थिक रूप से बढ़ रहे हैं. आंशिक रूप से ये परिवर्तन उनके लिए है जो अमीर देशों में हैं. वहीं हम विनिर्माण की इस कुशलता में इनसे काफ़ी दूर हैं. देखा जाए तो, जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels) की तुलना में नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable energy) ज़्यादा सस्ती और अच्छी होती है. कई देशों की जनसंख्या स्थिर हो गई है, या फिर कम हो गई है. जबकि विकासशील दुनिया में इतिहास में दर्ज अभी तक के गरीबी के स्तर में तेजी से कमी आई है.

GFN की Amanda Diep ने एक इंटरव्यू में कहा कि, ‘प्राकृतिक संसाधन के उपयोग को कम करने का मतलब जीवन स्तर को कम करना नहीं है. इस धरती पर हर इंसान हर संसाधन का उपयोग करके अच्छी तरह से जीवन यापन कर सकता है.’

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इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जिस दौर से हम गुज़र रहे हैं, और ये हमको जिस और ले जा रहा है वो दिन दूर नहीं जब भविष्यवक्ताओं और जादूगरों के बीच एक लड़ाई होगी. हाल ही में आई एक किताब, में साइंस राइटर, Charles C. Mann ने इस बात का ज़िक्र किया है कि जादूगर वो हैं, जो मानते हैं कि हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्राकृतिक सीमा से परे अपने रास्ते का नवाचार कर सकते हैं. और भविष्यवक्ता वो हैं जिनका मानना है कि जो लोग संसाधनों की एक तय सीमा का उल्लंघन करने पर विश्वास करते हैं, वो प्राकृतिक आपदाओं (ज़लज़ला, तूफ़ान, भूकंप) को आमंत्रित करते हैं. भविष्यवक्ताओं और जादूगरों दोनों के अपने-अपने प्रबल तर्क हैं.

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लेकिन ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम एक सीमित मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके आने वाले समय में अपनी पीढ़ियों को अच्छा जीवन देना चाहते हैं, या फिर उनको इस दुनिया पर आने वाले प्रकोप का साक्षी बनाते हैं. आखिर में बस यही कहेंगे कि अपनी ज़रूरतों के लिए हम धरती से मिले अनमोल उपहार को नष्ट किये जा रहे हैं जो आने वाले समय में ख़त्म हो जाएगा. इसलिए धरती को बचाना है, तो हमको अपने स्तर पर भी प्रयास करने होंगे.

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Source: qz