आज से तकरीबन 20-25 साल पहले हमें अपनी बात और विचारों को दूसरों तक पहुंचाने के लिए चिट्ठी और टेलीफ़ोन का इस्तेमाल करना पड़ता था. किसी से बातचीत करने के बस यही गिने-चुने माध्यम हुआ करते थे. उस दौर में कम्यूनिकेशन के साधन नाम मात्र के थे, सौ में से एक घर में लैंडलाइन फ़ोन हुआ करता था. अगर किसी को अपने परिजनों से बात करनी होती थी तो लोग मोहल्ले के उस घर में एकत्र हो जाया करते थे जिनके पास टेलीफ़ोन हुआ करता था, घंटों इंतज़ार के बाद परिजनों से बातचीत हो पाती थी. वो वक़्त भी क्या वक़्त था, उस दौर में न तो हमें किसी स्मार्टफ़ोन के अपडेटेड वर्जन आने की चिंता सताती थी, ना ही किसी नये सोशल मीडिया App की. सच कहूं तो इंसान आज के मुक़ाबले पहले ज़्यादा ख़ुश था.

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लेकिन आज इंसान के पास सब कुछ है बावजूद इसके वो ख़ुश नहीं है. इंसान आज हाईटेक हो चुका है, खाने से लेकर पहनने तक की चीजें उसको घर बैठे फ़ोन के एक क्लिक से मिल जाती हैं. तमाम सुख-सुविधाओं ने इंसान को आलसी बना दिया है. यही हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरी भी बनती जा रही है. शहर तो शहर गांव भी इस चकाचौंध भरी दुनिया से रू-ब-रू हो चुके हैं. एक तरह से ये अच्छा भी है. आज इंटरनेट और सोशल मीडिया ने इंसान के माइंड को इस कदर जकड़ लिया है कि वो चाहकर भी इससे बाहर नहीं निकल पा रहा है. एक ही घर में रहने वाले लोग एक- दूसरे से बात करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं. स्मार्टफ़ोन, इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस दौर में टेक्नोलॉजी लगातार तरक्की कर रही है आये दिन हमें कुछ ना कुछ नया सुनने को मिलता है.

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हाल ही एक ख़बर आयी है कि 2050 तक इंसान एक-दूसरे से बातचीत करना बंद कर देंगे, केवल सोशल मीडिया के जरिये एक-दूसरे तक अपने विचारों का आदान- प्रदान करेंगे. भविष्य में टेक्नोलॉजी इंसान पर इतनी हावी हो जाएगी कि इंसान चाहकर भी इससे दूर नहीं हो पाएगा. कहा जाता है कि साइंस और टेक्नोलॉजी इंसान की तरक्की का पैमाना होता है लेकिन यही साइंस और टेक्नोलॉजी इंसान की तबाही का कारण भी बन रही है. पर ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा कि ये हमारे भविष्य को कितना सुरक्षित करेगी. हां मगर इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता है कि यही साइंस आज हमारी निज़ी ज़िंदगी को तबाही की ओर ले जा रही है. आज के दौर में सोशल मीडिया अपने विचारों को रखने और दूसरों को जानने का सबसे आसान माध्यम है. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सप्प ने हमें जितना लोगों के करीब लाया है उतना ही अपनों से दूर भी कर दिया है.

साल 2015 में फ़ेसबुक सीईओ, मार्क जुकरबर्ग ने कहा था कि हमने एक ऐसा हार्डवेयर और टेक्नोलॉजी डिवाइस बनाने का प्रयास किया है, जो इंसान के दिमाग़ को पढ़कर उसके विचारों को दूसरों तक आसानी से भेज देगा.

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जबकि The UAE Government and Dubai Future Foundation ने भविष्य में इंसान की पहचान को ‘हाइब्रिड इंटेलिजेंस बायोमैट्रिक अवतार (HIBA)’ का नाम दिया है. इसके अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क, उसकी सोच, हाव-भाव की जानकारियां इकट्ठी की जाएंगी, उसके बाद टेक्नोलॉजी के माध्यम से इंसान के दिमाग़ को रीड किया जाएगा और जिससे भी वो बात करना चाहता है उसके विचारों को उस व्यक्ति तक ऑटोमैटिकली भेज दिया जाएगा.

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2050 के इस विज़न को ध्यान में रखते हुए हमें अपने वर्तमान को भी याद रखना होगा, क्योंकि आज के सोशल मीडिया युग में हम अपने बचपन को मिस करते हैं. हम जब बच्चे हुआ करते थे तब हमें दिनभर बाहर खेलने के अलावा किसी और चीज़ के लिए फ़ुर्सत ही नहीं मिलती थी. मां-बाप को हमारी फ़िक्र तक नहीं होती थी कि हम कहां खेल रहे हैं? लेकिन 21वीं सदी के बच्चों का बचपन मां-बाप और दादा-दादी की गोद में नहीं, बल्कि इंटरनेट सर्फि़ंग और स्मार्टफ़ोन के App के बीच ही बीत रहा है.

इसलिए ये कहना ग़लत नहीं होगा कि भविष्य में इंसान इसी उलझन में रहेगा कि वो अपनी निज़ी ज़िंदगी को बचाए या फिर लेटेस्ट टेक्नोलॉजी को अपनाये.