‘श्रृंग ब्रिंग सर्वलिंग, भूत भविष्य वर्तमान बदलिंग’ क्या हुआ, कुछ याद आया? यदि आप भी मेरी तरह 90 के दशक के बच्चे हैं तो ये लाइन पढ़ते ही तुरंत आपके चेहरे पर एक मुस्कान आयी होगी. क्या दिन थे वो भी! ख़ूब सारी शरारत और मासूमियत से भरे. 

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जब टॉम एंड जेरी, ऑस्वल्ड, मिक्की माउस जैसे कार्टून मुझे बहुत हसांते थे. रिची रिच को तो मैं उस समय दुनिया का सबसे अमीर इंसान समझती थी. Takeshi’s castle के लिए तो मैं देर तक उठा करती थी. M.A.D. ऐसा शो हुआ करता था जिसे देख मुझे लगता था कि कभी मैं भी ऐसे ही टीवी पर आउंगी और अच्छी-अच्छी रचनात्मक चीज़ें बनाउंगी. 

मुझे ध्यान है कैसे हम सारे दोस्त स्कूल में नोटबुक के पीछे FLAMES में अपने क्रश का नाम मैच किया करते थे. मैं हर साल स्कूल में अपने दोस्तों से स्लैम बुक भरवाया करती थी और सबसे मुश्किल होता था उसे घर वालों से छिपा कर रखना. उस समय ये स्लैम बुक के अंदर की बातें हमारे लिए किसी टॉप सीक्रेट से कम नहीं होती थीं. क्यों सही कहा ना? 

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मैं स्कूल से घर आती थी तो सबसे पहले तो सोने को मिलता था. सो कर उठते ही मैं घर के बाहर की ओर भागती थी मोहल्ले के दोस्तों के साथ खेलने के लिए. वापिस आती और मम्मी कहती कि होमवर्क नहीं करेगी, तो टीवी नहीं देखने दूंगी. भले ही मेरा दिन कैसा भी गया हो मगर वो आधा घंटे टीवी देखना मुझे असीम ख़ुशी दे जाता था.  

मुझे यक़ीन है कि गर्मी की छुट्टियां सबसे बेहतरीन होती थीं. पूरी छुट्टियां मारिओ और कॉण्ट्रा जैसे गेम्स खेलने में निकल जाती थी. मेरे लिए छुट्टियों का एक और मतलब होता था नानी का घर. सारे भाई-बहन एक साथ इकठ्ठा होकर ख़ूब धमाल मचाते थे. 

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 वो भी क्या दिन थे जीवन कितना सरल और अच्छा हुआ करता था. 

और अब आज देखो, न तो वो पुराने जैसे कार्टून हैं और न ही शरारत. टीवी की जगह फ़ोन ने ले ली है. दिन भर नेटफ़्लिक्स या हॉटस्टार. अब कोई किसी के साथ बाहर खेलने नहीं जाता. अगर दोस्त मिलते भी हैं तो भी पास रह कर फ़ोन में लगे होते हैं. अब कोई गर्मियों की छुट्टियों में नानी घर जाना पसंद ही नहीं करता. भाई-बहनों के साथ बैठकर बात करने की जगह अब क्लब जाना पसंद है. आज तो बच्चे वक़्त से पहले ही बड़े हो रहे हैं. मैं अपने आस-पास बच्चों को देखती हूं लगता है कि इन्होंने शायद से फ़ोन के अलावा कुछ और जाना ही नहीं. इन्हें नहीं पता कि कार्टून में ब्रेक के बीच जल्दी से भाग कर बाथरूम से वापिस आना क्या होता है. इन्हें नहीं पता कि बचपन जीना क्या होता है…!