‘अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी, तो आगे तुम्हारे साथ जो होगा उसका ज़िम्मेदार मैं नहीं होऊंगा.’ 

ये शब्द थे आज से कई साल पहले मेरा हर जगह पीछा करने वाले एक लड़के के, जिसको मुझसे ‘प्यार’ था. 

मैं ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ती थी. मेरे घर में कुछ नए किराएदार रहने आए थे. उनमें से एक मेरी उम्र का लड़का भी था. मैं कई बार सामान लेने दुकान जाती थी तो मेरा उनसे आमना-सामना हो जाता था. 

एक दिन मैं हर रोज़ की तरह साइकिल से कोचिंग जा रही थी. अचानक मैंने महसूस किया कि मेरे बगल एक साइकिल चल रही है और उस व्यक्ति ने मुझे पुकारा है. मैंने देखा कि ये तो वही बंदा है. मैं थोड़ी हैरान थी कि वह यहां क्या कर रहा है. मेरे पूछने पर उसने बताया कि वो भी अपनी कोचिंग ही जा रहा है. ख़ैर, जल्द ही हम दोनों के रास्ते अलग हो गए, मैं अपनी कोचिंग की तरफ मुड़ गई और वो आगे चला गया. 

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फिर अगले दिन जब कोचिंग जाने का समय आया तो वो फिर मेरे साथ चल दिया. और ये सिलसिला कई दिन तक ऐसे ही चलता रहा. ऐसे ही कुछ दिन साथ में कोचिंग जाते हुए बीत गए. एक दिन अचानक उसने मुझसे कहा कि मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो, मेरी गर्लफ़्रेंड बन जाओ. जिस पर मेरा जवाब सीधा और साफ़ था ‘नहीं’. 

मुझे लगा कि ये मामला यहीं ख़त्म, क्योंकि उसको मैंने अपना जवाब दे दिया था. मगर शायद उसे नहीं का मतलब समझ नहीं आया. 

कई दिन तक फिर न तो वो मिला और ना ही कोचिंग जाने वाले रास्ते पर दिखा. मगर तक़रीबन एक हफ़्ते बाद जब मैं कोचिंग के लिए घर से निकली, वो मेरे पीछे-पीछे आने लगा. क्योंकि हम दोनों का एक ही रास्ता था इसलिए मैंने कुछ नहीं बोला. लेकिन तभी वो अपनी साइकिल मेरी साइकिल के बगल लेकर आया और बोला कि एक बार फिर से सोच लो मैं अभी भी तुमको अपनाने के लिए तैयार हूं. इस पर मैं थोड़ा हैरान रह गई. मैंने उससे बोला, “नहीं मुझे तुममे कोई दिलचस्पी नहीं है. मैंने उसी दिन तुमको मना कर तो दिया था”. जिस पर उसने कहा कि तुमने सिर्फ़ नहीं कहा था, मैं उससे क्या समझूं. 

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उसकी ये बात सुनकर मुझे बेहद ग़ुस्सा आया. मैंने तुरंत अपनी साइकिल रोकी और उसे चिल्ला कर बोला कि तुम्हें नहीं का मतलब नहीं पता क्या, भाई मुझे तुममें इतनी सी भी दिलचस्पी नहीं है. मेरा पीछा छोड़ दो. 

ख़ैर, उस वक़्त तो चुप-चाप वो चला गया. मगर अगले दिन उसने फिर मेरा पीछा करना शुरू कर दिया. इस बार मैंने इग्नोर करने का सोचा. यही सिलसिला एक-दो हफ़्ते तक चला. फिर एक दिन उसने मुझे रास्ते में बोला, ‘अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी, तो आगे जो तुम्हारे साथ होगा उसका ज़िम्मेदार मैं नहीं होऊंगा.’ 

ये बात सुनते ही मेरे अंदर एक डर सा बैठ गया. मैं तुरंत घर की ओर भागी. मैं घर पहुंची और कोचिंग बंद होने का झूठा बहाना बना दिया. घर में ये भी बोल दिया कि अगले दो-तीन दिन तक बंद रहेगी. 

सच बोलूं तो मैं मम्मी-पापा को बताना चाहती थी, मगर मन में डर था कि कहीं इस वजह से मेरा घर से निकलना न बंद हो जाए.   

अगले ही दिन पापा मेरे पास आए और उन्होंने मुझसे पूछा कि सब ठीक तो है न, कोई बात है तो तुम मुझे बता सकती हो, मैं देख रहा हूं कि तुम बहुत परेशान हो कल से, क्या बात है. ये बात सुन कर ही मैं रो पड़ी और पापा को सब कुछ बता दिया. मैं डरी थी कि पता नहीं वो समझेंगे या नहीं. मगर उन्होंने समझा भी और सामने घर पर जाकर उस लड़के के परिवार वालो से भी बात की. पता नहीं क्या हुआ, मगर उस परिवार ने एक हफ्ते के अंदर ही घर छोड़ दिया था. 

बाद में मम्मी ने मुझे बताया कि उस लड़के ने ग़लती से पापा के नंबर पर मेरे लिए मैसेज कर दिया था कि ‘अगर तुमने हां नहीं बोला तो देखना मैं क्या करूंगा, तुम्हारी कोचिंग के बाहर तुम्हारा इंतज़ार करूंगा.’

मैं जानती हूं कि टीन एज में हम लोगों को प्रेम के बारे में कुछ भी समझ नहीं होती है. और हम अक्सर इस तरह की बातें सुनकर और फ़िल्में देखकर बड़े होते हैं कि ‘उसकी ना में ही हां है’. लेकिन ये बात हमारे जीवन के सबसे ज़रूरी सबक़ में शामिल होनी चाहिए कि हम किसी को पसंद करते हों तो उनकी ना का सम्मान कर सकें. काश कि उस लड़के के जीवन में उसको ये बात बताने वाला कोई इंसान होता.