हमारे देश को आस्थावान लोगों का देश कहा जाता है. हम हर चीज़ के प्रति अपनी आस्था कुछ समय बाद बना ही लेते हैं. इस देश में हर एक चीज़ को ईश्वर का रूप मान कर पूजा जाता है. अकसर लोग उन्हीं पौराणिक किरदारों में अपनी श्रद्धा दिखाते हैं, जिनकी छवि को श्रेष्ठता की नज़र से देखा जाता रहा है. पर हमारे महान देश में हर मत और विचार को समर्थन देने वाले लोग मिल ही जाते हैं.
आपने दुर्गा मन्दिर, शिव मन्दिर, राम मन्दिर और हनुमान मन्दिर के बारे में तो बहुत सुना होगा लेकिन अपनी ज़िन्दगी में क्या आपने महाभारत के सबसे बदनाम किरदारों में से एक दुर्योधन के मन्दिर और दानवीर कर्ण के मन्दिर के बारे में सुना है?
आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि उत्तराखण्ड राज्य, जिसे देवभूमि भी कहा जाता है, में दुर्योधन और कर्ण दोनों के मन्दिर स्थित है और यहां इनकी पूजा भी की जाती है. यह दोनों मन्दिर उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है.
उत्तरकाशी के जखोली गांव में दुर्योधन का मन्दिर हुआ करता था, जिसे कुछ समय पहले ही एक शिव मन्दिर के रूप में बदल दिया गया है. लेकिन आज भी इस गांव में सोने की परत चढ़ी एक कुल्हाड़ी है, जिसे लोग दुर्योधन का प्रतीक मानते हैं.
इसी मन्दिर से लगभग 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित एक दूसरे गांव में दानवीर कर्ण का मन्दिर बना हुआ है. यहां इस दानवीर को मानने वाले भक्तों ने तो कर्ण की अच्छी आदतों को भी अपने जीवन में अपना लिया है. गांव के लगभग सभी व्यक्ति दान-पुण्य के कामों में काफ़ी रूचि लेते हैं. गांव के लोग इन्हें अपना इष्ट मानते हैं. इसके साथ ही अब गांव वालों ने दहेज प्रथा को भी अपने गांव में बंद कर दिया है. धार्मिक अनुष्ठानों में किसी भी जानवर की बलि नहीं दी जाती है.
हर चीज़ के दो पहलू होते हैं. यह आपको तय करना होता है कि आप किसका समर्थन करना चाहते हैं. हर विचार की अपनी स्वायत्तता है. जहां लोग राम को पूजते हैं, तो आपको देश में रावण के भी मन्दिर और समर्थक मिल ही जायेंगे. उसी तरह दुर्योधन और कर्ण के मन्दिर होना, हमारे देश की वैचारिक समर्द्धता को दर्शाता है.