अभी लोग क्या पहनते हैं, वो आप जानते हैं. आज से से 70 साल पहले क्या पहनते थे, वो आप जानते होंगे. लेकिन क्या आज से 7 हज़ार साल पहले भारत के लोग क्या पहनते थे, इसकी जानकारी है आपको? 5000 BC, पाषाण काल के समय तब के भारतीयों (वैसे तब भारत नहीं हुआ करता था) का पहनावा कैसा था?

पुरुषों की धोती

तब पुरुष सूत की धोती पहना करते थे, जो उनकी कमर से लिपटी होती थी और उसे पीछे की ओर से बांधा जाता था. भारत में ही कपास की खोज हुई थी. कुछ लोग माथे में पगड़ी भी बांधा करते थे. तब पुरुष अपनी दाढ़ी बहुत छोटी या नहीं रखा करते थे. पुरुषों का ऐसा पहनावा हज़ारों साल तक रहा.

औरतों का पहनावा

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महिलाएं सॉर्ट स्कर्टनुमा कुछ पहनती थी, जिसकी लंबाई घुटनों के ऊपर रहती थी. कुछ महिलाएं धूप से बचने के लिए सिर पर कपड़ा बांधती थी. हार और कड़ा पहनने का चलन भी था, बदलते वक़्त के साथ इसकी धातुओं में बदलाव होता रहा.

वैदिक काल

इस काल के दौरान महिलाओं का शरीर कपड़े से लिपटा होता था, जैसे ईरान या ग्रीस की महिलाएं कपड़े पहनती थी. कुछ औरतें स्कर्टनुमा अंदाज़ में कमर से कपड़े को लपेटती थी और किसी अन्य कपड़े से आगे की ओर से उसे बांध लेती थी. मुख्य कपड़े के नीचे कसा हुआ शर्ट जैसा कुछ भी पहना जाता था.

साड़ी की शुरुआत

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500 AD के आस-पास, गुप्त काल में साड़ी पहनने की शुरुआत हो चुकी थी. साड़ी शब्द की उत्पत्ती वेदों से हुई, संस्कृत में इसका एक अर्थ कपड़ा भी होता है. वेदों में 600 BC में भी साड़ी का ज़़िक्र था. धनवान औरतें चीन के सिल्क से बने साड़ी पहनती थी और साधारण घर की औरतें सूती साड़ी पहना करती थी.

सूई-धागा

कपड़े सीने की तकनीक चीन से भारत आ चुकी थी, इसलिए सिले हुए कपड़े पहनने की शुरुआत भी हो चुकी थी. जो उनेक शरीर से चिपकी हुई रहती थी और उनपर ढेर सारा कढ़ाई का काम भी होता था लेकिन अभी भी ये रईस लोगों के शौक़ थे.

चूड़ीदार और सलवार कमीज़

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ईरान की ये इस्लामिक ख़ोज 1000 AD में हुई. महिला और पुरुष दोनों इसे पहनने लगे. इसे चूड़ीदार और सलवार कमीज़ कहा गया. भारत में भी इसका प्रचलन ख़ुब बढ़ा, ख़ास कर उत्तर भारत में, लेकिन अब भी यह धोती-साड़ी के बाद ही लोगों की पसंद होती थी. ये महंगी भी हुआ करती थी इसलिए आम जन की पहुंच से दूर थी. जो महिलाएं इसे पहनती थी, साथ में ढेर-सारे गहने भी पहनती थी.

बच्चों का पहनावा

मुख्यत: छोटे बच्चे कुछ पहना ही नहीं करते थे, अगर पहनते भी थे तो कपड़े के नाम पर उनके कमर के इर्द-गिर्द एक कपड़ा लपेट दिया जाता था. बड़े बच्चे को कुर्तानुमा कपड़ा पहनाया जाता था, जो उनके घुटने तक आता था. बड़े बच्चे अपने माता-पिता की तरह कपड़े पहनते थे. लड़कियां मुख्यत: व्यस्क होने के बाद ही साड़ी पहना करती थी.

Source: quatr

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