समाज ने हर चीज़ को महिला और पुरुष के हिसाब से बांट कर रखा हुआ है. कई बार इंसान बहुत से काम करना चाहता है, मगर इन Stereotypes के चलते एक तरफ़ महिलाऐं अपनी एक जंग लड़ रही हैं वहीं पुरुषों को भी कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ जाता है.कुछ ऐसी ही तक़लीफ़ 25 साल के श्रवण तेलू की भी रही.
भारत जैसे देश में एक पुरुष बेली डांसर होना आसान नहीं है. विजयवाड़ा में मेरे बचपन के दौरान, मुझे तंग किया जाता था क्योंकि मैं नम्र और ‘स्त्री जैसा’ था. मुझे बोला जाता था कि ‘मैं लड़कियों जैसा हंसता हूं’. मेरे दोस्त, रिश्तेदार और यहां तक की मेरी टीचर्स भी मुझे लगातार मेरे बैठने, बोलने और काम करने के तरीके के लिए टोकते रहते थे. वो लोग मुझे लड़की बुलाते थे और मुझे मर्द बनने के लिए कहते थे. मैं अधिकतर सोचता था कि क्या मैं कुछ गलत कर रहा हूं.
मैं अनजान और भोला भी था. मुझे बाहरी दुनिया के बारे में कुछ भी नहीं पता था. मैं अपनी मां से बात करने से डरता था कि कैसे सभी मेरे साथ व्यवहार करते हैं. मगर इनमें से किसी भी चीज़ ने मुझे मेरे सपनों को पाने से नहीं रोका. मैंने हमेशा कड़ी मेहनत की और अपनी फ़ीस और पुस्तकों के लिए स्कॉलरशिप और स्पॉन्सरशिप प्राप्त करने में कामयाब रहा. तो जब कॉलेज में मुझे लोग महिला क़िरदार करने के लिए ताने मारते थे या सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी के लिए कहते तो मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता. मैंने नृत्य और थिएटर करना जारी रखा और विभिन्न युवा उत्सवों में सक्रिय रूप से भाग लिया.
मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी अपने फ़ैसलों के लिए रूढ़िवादी मानसिकता का सामना किया है. लोगों ने मुझे ग़ुलाबी रंग और चॉकलेट पसंद होने के लिए भी ताना मारा है. चॉकलेट्स के लिए भी!! वहीं दूसरी तरफ़ थिएटर वाले लोग, चित्रकार और डांस गुरुओं ने मेरा हमेशा साथ और सम्मान दिया है. मैंने अपनी कला का इस्तेमाल LGBTQIA समुदाय को समर्थन दिखाने के लिए किया है और उनके लिए कई शो भी किए हैं.
इन सब चीज़ों में सबसे ज़्यादा मुश्किल था श्रवण का अपने माता-पिता द्वारा अपनाए जाना.
मैं अब कई सालों से एक बेली डांसर हूं. अपनी मां को बेली डांस करने की मेरी पसंद के बारे में बताना आसान न था मगर धीरे-धीरे उन्होंने अपनाया. यहां तक की हमने साथ में बैठ कर मेरी डांस वीडियोज़ भी देखी हैं. एक समय वो लोक नर्तक थीं और हमेशा मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा और सहारा रहेंगी.
श्रवण का जीवन बाक़ी लोगों के लिए एक प्रेरणा है.