किसी की भी ज़िंदगी आसान नहीं होती है. हम सब के हिस्से में अपने सुख और दुःख आते हैं. 

जहां एक तरफ़ कुछ लोग अपनी परेशानियों को बहाना बना लेते हैं, वहीं वेंनापूसा नरायणम्मा जैसे लोग इन्हीं मुसीबतों से लड़ कर अपनी एक अलग पहचान बनाते हैं. 

वेंनापूसा की शादी बेहद ही काम उम्र में हो गई थी और इसके साथ ही उनकी पढ़ाई भी छूट गई थी, मगर जो नहीं छूटा वो था वेंनापूसा का हौसला. 

मैं 13 साल की थी, जब मेरे रिश्तेदार से मेरी शादी हो गई. मुझे पता भी नहीं था की शादी क्या होती है, लेकिन जब मुझसे शादी के लिए पूछा गया मैंने हां कर दिया. एक साल बाद मैंने अपने पहले बच्चे, एक बेटी को जन्म दिया था. मेरी मां ने मुझे माहवारी के बाद से कभी स्कूल नहीं भेजा. मगर में पढ़ना चाहती थी. बहुत ज़ल्द ही मैंने तय कर लिया था की मेरे बच्चे पढ़ेंगे, जितना भी वो चाहें और मैं हर तरह से उनको सहारा दूंगी. मेरे पति हमेशा से ही अच्छे और मेरे सहायक रहे हैं. लेकिन वो हम चारों के लायक़ कमाई नहीं कर पा रहे थे.तो जब हम हैदराबाद शिफ़्ट हुए तो मैंने उनका काम कम करने के लिए एक सब्जियों की दुकान लगानी शुरू कर दी. बदक़िस्मती से हमें बहुत नुक़सान हुआ. मगर मैंने हार नहीं मानी. मगर इस बार मैंने वो काम चुना जो मुझे करना बेहद अच्छा लगता है- ड्राइविंग. मैंने एक ऑटो ख़रीदा और पुरे शहर में घूमना शुरू किया. शुरुआत में ये बहुत चुनौती भरा था क्योंकि मुझे यहां के रास्ते नहीं पता थे. लेकिन समय के साथ में एक्सपर्ट बन गई.
telanganatoday

वेंनापूसा इस काम बेहद अच्छे से ढल गईं थी. वे पूरे हैदराबाद में बेधड़क ऑटो चलाने लगीं. महिलाऐं वेंनापूसा के ऑटो में बैठ कर ख़ुद को बेहद सुरक्षित महसूस करती थीं. 

लोग थोड़े चौंक ज़रूर जाते थे, लेकिन मेरे गांव में सब जानते थे कि मैं कितनी अच्छी ड्राइवर हूं. बचपन में, मैं अपने मेहमानों की बाइक चोरी-चुपके चलाने ले जाती थी. मेरा पति और मैं हम दोनों ही एक परिवार में पले- बड़े हैं, तो उन्हें मेरी ड्राइविंग स्किल्स के बारे में पता था. जब मैंने उनको बताया कि मैं ड्राइविंग को अपना प्रोफ़ेशन बनाना चाहती हूं तो वो मेरा साथ देने के लिए बेहद ख़ुश हुए थे.
indiatoday
ज़ल्द ही मेरे कुछ नियमित महिलाऐं कस्टमर बन गईं, जो चाहती थीं कि मैं उन्हें रोज़ पिक और ड्राप करूं. उन्हें मेरे ऑटो में सुरक्षित महसूस होता था और ये मेरे लिए एक अद्भुत भावना थी. आज मैं पूरे शहर में न केवल ऑटो में बल्कि गाड़ी में भी जाती हूं. मैं एक बुलेट भी चला सकती हूं. अगर मेरे पास पर्याप्त शिक्षा और आय की सुविधा होती तो मैं एक पायलट भी बन सकती थी. मगर मैं नहीं चाहती मेरे बच्चे ऐसा महसूस करें. मैं उन्हें कभी ऐसा महसूस होने ही नहीं दूंगी. मैं गाड़ी चलाऊंगी और अंत तक पैसा कमाऊंगा ताकि अपने परिवार और ख़ुद को ख़ुश रख सकूं.