कुछ घटनाएं हमारे पूरे जीवन पर एक गहरी छाप छोड़ जाती हैं. ऐसा लगता है मानो पूरी ज़िंदगी ख़त्म, कोई उम्मीद नहीं रह जाती है. मगर ऐसे समय में ज़रूरी ये होता है कि हम कितनी हिम्मत से खड़े रहते हैं. 

एक ऐसी ही घटना ने शेखर का पूरा जीवन बदल कर रख दिया. 

मेरा जीवन उस वक्त पूरी तरह से बदल गया, जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था और मेरे साथ कुछ बहुत बुरा हुआ. मैं एक इलेक्ट्रिक ट्रांसफॉर्मर के बग़ल में बैठ कर अपने दोस्त से बात कर रहा था. तभी उसने मुझे मज़ाक में धक्का दिया और मैं दीवार के उस पार जा गिरा. सहारे के लिए मैंने कुछ तार पकड़ लिए, जिसकी वजह से उनका करंट मेरे हाथ और पैर में चला गया. कुछ ही पलों के भीतर मैं बेहोश हो गया. जब मैं उठा तो अपने आप को एक मुर्दाघर में अन्य मृत शरीरों के साथ पाया. मुझे कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा था, लेकिन मुझे अपनी मांसपेशियां रबर की तरह लग रही थीं. मैं जैसे-तैसे उठा और कमरे से बाहर निकल कर डॉक्टर को देखने लगा. जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ रहा था, मैं अपने पीछे फर्श को पूरा खून से लथ-पथ छोड़ता जा रहा था. मैंने बिना कुछ खाए-पिए एक दिन बिताया था और मुझे भूख लगी थी. अस्पताल का कोई आदमी मेरी मदद नहीं कर रहा था. मुझे आख़िरकार एक वार्ड बॉय मिला जिसने मुझे 50 रुपये के बदले में कुछ रोटी और दूध दी. उसने मेरे माता पिता को भी सूचित किया और उसके बाद हालात तेज़ी से बदले.  मुझे एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करवाया गया. दुर्घटना के तुरंत बाद मेरा इलाज़ नहीं हुआ था, इसलिए डॉक्टरों ने कहा कि मेरे सामान्य होने या जीवित रहने की संभावना कम थी. उन्होंने देखा कि मेरी बाहों में संक्रमण फैल रहा था, इसलिए उन्होंने चार बार ऑपरेशन किया और मेरा हाथ काट दिया. मेरे पैर और पैर की उंगलियों के साथ भी ऐसा ही हुआ, मुझे उन्हें भी खोना पड़ा. मैं कई हफ़्तों बाद घर लौटा. मेरे घर पर बहुत सारे लोग मुझसे मिलने पहुंचे हुए थे. कुछ लोगों ने सहानुभूति जताई, कुछ लोगों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया. 
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Training session for Elbrus

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शेखर तेलंगाना राज्य के नलगोंडा डिस्ट्रिक्ट के एक छोटे से गांव में रहते थे. शेखर और उनका परिवार दोनों ही बेहद बुरे वक़्त से गुजर रहा था. भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक रूप से गुज़र रहे परिवार के लिए बेशक ये समय बहुत मुश्किल था. 

एक हाथ से काम करना मुश्किल था और मैं केवल बाएं हाथ का उपयोग करने की आदत डाल रहा था. मेरे पास जो कुछ भी बचा हुआ था उसके साथ मैंने जीवन जीना शुरू कर दिया. मैंने कंप्यूटर और मोबाइल फोन में रुचि लेना शुरू किया. मुझे सीसीटीवी प्रभारी के रूप में हैदराबाद के एक आलीशान होटल में नौकरी मिली. लेकिन मैं सिर्फ नौकरी नहीं करना चाहता था. अपने आत्मविश्वास को पाने के लिए, मैंने स्पोर्ट्स में भाग लेना शुरू किया. इसकी शुरुआत एयरटेल हैदराबाद मैराथन में दौड़ने से हुई. इसके बाद, दक्षिन पुनर्वास केंद्र ने मेरे प्रोस्थेटिक से लेकर रनिंग ब्लेड का भी ख़र्चा उठाया. 

धीरे-धीरे शेखर का खोया हुआ आत्म-विश्वास लौटा. शेखर अभी तक एक दर्ज़न से ज़्यादा मैराथन में हिस्सा ले चुके हैं. उन्होंने रॉक क्लाइम्बिंग, केव वॉकिंग, तैराकी और बैडमिंटन की भी कोशिश की. 

कुछ साल पहले, मैंने लेह से खारदुंगला तक -2 डिग्री सेल्सियस पर 18,000 फीट की ऊंचाई पर 25 अक्टूबर को एक रिपब्लिक राइड की थी. ये सब कुछ आसान नहीं था और ये निश्चित रूप से मेरे प्रोस्थेटिक्स के साथ अधिक कठिन था. मैं चाहता था कि मेरी उपलब्धियां मेरी पहचान हों, न कि दुर्घटना. मैं अब और दर्द में नहीं रहना चाहता हूं. मैं उठकर समाज में अपनी पहचान बनाना चाहता हूं. मुझे जीने का दूसरा मौका मिला था और मैं कुछ बड़ा करना चाहता हूं. मैं वो हर चीज़ कर सकता हूं जो एक सामान्य व्यक्ति कर सकता है और मुझे इस बात पर गर्व है. आज हर कोई जो मुझे जानता है मुझे मेरे हाथ और पैरों से हट कर देखता है. ऐसा इसलिए क्योंकि मैं अपने शरीर से कई ज़्यादा हूं.   

आज शेखर वो हर चीज़ कर रहे हैं जो उनका मन हैं.