छुप-छुप के डेस्क के नीचे लंच का डिब्बा निपटाना… होमवर्क न करने पर टीचर से नज़रें चुराना… मैथ्स के पेपर में ज्योमेट्री बॉक्स भूल जाना… 

ये जो हट कर फील है न, सिर्फ़ स्कूल के वो दिन ही दे पाते हैं.

जितनी तगड़ी स्कूल की यादें होती हैं, उतने ही अल्टीमेट होते हैं स्कूल के कुछ कैरक्टर्स, जो सालों बाद दोस्तों की महफ़िलों में ठहाकों को रौशन करते हैं. चलिए आज एक बार फिर स्कूल का गेट खोलते हैं और मिलते हैं उन किरदारों से जिन्होंने स्कूल टाइम को ज़िन्दगी का बेस्ट टाइम बना दिया.

1. ‘मुझे Sir बोलो’ ऑर्डर देने वाला स्टाफ़ वर्कर

ये वो भाईसाहब होते हैं, जिनका काम क्लेरिकल होता है, जैसे बच्चों की प्रैक्टिकल फ़ाइल्स लेकर लैब में ले जाना . इनका पढ़ाई से कोई मतलब नहीं होता, फिर भी इनके अंदर का टीचर ज़िंदा होता है, जो ‘भैया’ जैसे शब्द सुनने पर चौकन्ना हो जाता है और कहता है, ‘मुझे सर बोलो’. 11वीं में स्कूल की केमिस्ट्री लैब में बच्चों की मदद करने वाला ऐसा ही एक सर हमें चीटिंग करने दिया करता था.

2. ‘समोसे का डीलर’ कैंटीन वाला

स्कूल की कैंटीन में यूं तो ज़्यादा कुछ नहीं मिलता था, लेकिन जो भी थोड़ी बहुत चीज़ें मिलती थी, वो इतनी Tasty लगती थी कि बच्चे टिफ़िन छोड़ उसी को खा लिया करते थे. हमारा कैंटीन वाला इतने ज़बस्दस्त समोसे बनाता था कि बच्चे दिन में दो-चार समोसे तो खा ही जाते थेले, किन उसकी एक खतरनाक आदत थी… उसे उधारी याद रहती थी. वो शकल देखते ही बोल देता था, ’20 रुपये रह गए हैं’. उसे बच्चों के चेहरों पर अपना हिसाब लिखा हुआ दिखाई देता था, शायद इसीलिए उसने कभी बहीखाते का रजिस्टर नहीं बनाया. उधारी निपटाने के बाद ही वो समोसे देता था.

3. मैक मोहन, बस ड्राइवर

ये वो बस ड्राइवर है, जिसने सबसे पहले मुझे खौफ़ का मंज़र दिखाया था. हमारी स्कूल बस का हर दूसरे हफ़्ते चालान होता था, क्योंकि मैक मोहन’ कभी किसी ठेले को ठोकता था, तो कभी किसी की गाड़ी तोड़ के आता था. उसका नाम मैक मोहन इसलिए पड़ा था क्योंकि उसने महरून रंग के बाल रंग लिए थे और गोल्ड के नुकीले पत्थरों वाली शर्ट पहनता था. वो एक मिनट से ज़्यादा किसी भी स्टॉप पर बच्चों का वेट नहीं करता था, चाहे कुछ भी हो जाए. गाड़ी इतनी तेज़ चलाता था कि बच्चे स्कूल पहुंचने के 10 मिनट तक झूमते रहते थे.

4. ‘फ़िल्मी मां’ आया आंटी

स्कूल में कुछ बच्चे ऐसे थे जो क्लास फ़र्स्ट से यहां पढ़ रहे थे. इन सभी बच्चों के ध्यान जिन आंटी ने रखा था, वो पूरी फ़िल्मी मां थीं, Farewell के दिन जैसे ही बच्चे उन्हें बाय बोलने जाते, उनका रोना निकल जाता. ‘मैंने बचपन से तुम्हारी पॉटी साफ़ की, आज तुम इतने बड़े हो गए’… उनको हर बच्चे की बचपन की आदतें पता थीं. एक तरह से वो बहुत क्यूट थीं.

5. स्पोर्ट्स वाले ‘सर’

स्पोर्ट्स में ज़्यादा बच्चों की Interest हो न हो, स्कूल में स्पोर्ट्स का पीरियड सबको पसंद हुआ करता था. दरअसल हमारी स्पोर्ट्स टीचर एक मैम थीं. वो बस नाम की मैम थी, बच्चों को मारने और कूटने में उनके जैसा कोई नहीं था. उनको सबसे ज़्यादा खुन्नस उन लड़कियों से रहती थी, जो स्पोर्ट्स पीरियड में गॉसिप करने बैठ जाती थीं. वो उनको उठा-उठा कर ग्राउंड के चक्कर लगवाती थी.

6. प्लास्टिक का कीड़ा, वॉर्डन

नहीं ये गाली मैं नहीं दे रही, बल्कि ये हमारे स्कूल के Boys Hostel का वॉर्डन बच्चों को देता था. इस आदमी के पास Unique गलियों का कलेक्शन था. इसलिए हमें ये गालियां बहुत Funny लगती थीं. जैसे वो कहता था, अगर किसी ने ज़्यादा बात की तो उस पर प्लास्टिक के कीड़े पड़ेंगे या फिर मार-मार के ब्रेड पकोड़ा बना दूंगा.

7. लाइब्रेरियन

लाइब्रेरी में जो मैम होती हैं, उनकी छवि हमेशा से ही शांतिप्रिय और कोमल स्वभाव की महिला के तौर पर होती है, लेकिन हमारे केस में ऐसा नहीं था. हमारी वाली के पास एक मोटा डंडा रहता था, और वो तब पड़ता था जब आप इसके लिए तैयार नहीं रहते थे. उसे दूसरे सब्जेक्ट का काम लाइब्रेरी में करने वाले बच्चों से सख़्त नफ़रत थी. अगर आपकी कोई नोटबुक उसने पकड़ ली, तो उसके पन्ने फाड़ कर आपकी लाइब्रेरी की मेम्बरशिप भी कैंसिल कर देती थी. उफ़… खौफ़नाक थी वो.

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स्कूल की यादों में जितनी हिस्सेदारी दोस्तों और टीचर्स की होती है, उतनी ही जगह इन मज़ेदार कैरक्टर्स की भी है. अगर आपके स्कूल टाइम को भी किसी ऐसे ही मज़ेदार व्यक्तित्व ने यादगार बनाया हो, तो इस पोस्ट पर Comment कर ज़रूर करें.