जयललिता उन भारतीय महिलाओं में से एक थीं, जो भारतीय राजनीति में अपनी अच्छी पैठ रखती थीं. दक्षिण भारत की राजनीति में उनकी पैठ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजनीति में तमाम तरह की उथल-पुथल के बावजूद वो 5 बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं. जयललिता की निजी और राजनीतिक ज़िंदगी में काफ़ी उतार-चढ़ाव आये. इसके बावजूद जयललिता ने हिम्मत नहीं छोड़ी और दोबारा नया सफ़र शुरू किया. आज हम जयललिता की ज़िंदगी के सफ़र से जुड़े कुछ किस्से ले कर आये हैं, जिनके बारे में शायद ही पहले किसी ने ज़िक्र छेड़ा हो.

13 साल की उम्र में रखा था फ़िल्मों में कदम

1948 में मैसूर के एक छोटे से तमिल ब्राह्मण परिवार में पैदा हुई जयललिता ने 1961 में 13 साल की उम्र में चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में कन्नड़ फ़िल्म ‘Sri Shaila Mahathme’ से अपने करियर की शुरुआत की. मुख्य किरदार के रूप में उन्होंने अपनी फ़िल्मी पारी की शुरुआत 15 साल की उम्र में कन्नड़ फ़िल्म से की. इसके बाद उन्होंने कई हिंदी और इंग्लिश फ़िल्में कीं.

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15 साल की उम्र में किया तमिल फ़िल्मों में आगाज़

उनके करियर को उड़ान तमिल फ़िल्मों ने दी, जिसमें उन्होंने तमिल सुपरस्टार एम.जी. रामचंद्रन के साथ पहली तमिल फ़िल्म ‘Vennira Aadai’ की. लोगों और डायरेक्टर्स को ये जोड़ी इतनी पसन्द आई कि रामचंद्रन और जया का साथ 30 फिल्मों तक रहा.

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1972 में बनी राजनैतिक पार्टी AIADMK

1972 वो साल था, जब तमिल सुपरस्टार एम.जी. रामचंद्रन ने राजनीति में कदम रखा. 1977 में एम.जी. रामचंद्रन का फैसला उस समय सही साबित हुआ, जब वो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बन कर सामने आये. उनके मुख्यमंत्री बनने के साथ ही जयललिता का भी राजनीति में आने का रास्ता साफ़ हो गया.

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1980 में कहा फिल्मों को अलविदा

300 फ़िल्में करने के बाद आख़िरकार जयललिता ने फ़िल्मों को अलविदा कहा. 1980 में आई उनकी फ़िल्म ‘Nadhiyai Thedi Vandha Kadal’ आखिरी तमिल फ़िल्म थी. 1982 में रामचन्द्रन ने जयललिता को मुख्य ज़िम्मेदारी सौंपी और उन्हें पार्टी का प्रोपेगैंडा सेक्रेटरी नियुक्त किया.

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वर्ष 1984 बेहद ख़ास था

1984 का साल भारतीय राजनीति के साथ-साथ तमिलनाडु की राजनीति के लिए भी हलचलों भरा था. इसी साल पार्टी की तरफ से जयललिता को राज्यसभा के लिए भेजा गया. जबकि रामचन्द्रन को बीमारी के चलते इलाज के लिए अमेरिका भेजा गया.

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1984-87 में पार्टी के साथ अनबन

1984 में जब MGR गंभीर रूप से बीमार पड़ गए, तब जयललिता ने तत्कालीन केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री राजीव गांधी से सम्पर्क किया और उन्हें तमिलनाडु का मुख्यमंत्री मनोनीत करने के लिए कहा. जब यह बात सामने आई, तो पार्टी दो धुरों में बंट गई. पार्टी का एक धुर रामचन्द्रन की पत्नी जानकी रामचंद्रन को मुख्यमंत्री बनाने के समर्थन में था, जबकि एक धुर जयललिता के पक्ष में था.

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1988 में जीत के साथ लौटी AIADMK

1988 में AIADMK को जीत मिली और जानकी रामचन्द्रन को तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बनाया गया, पर 21 दिनों में ही सरकार गिर गई. जानकी के इस्तीफे के बाद जयललिता का रास्ता साफ़ हो गया.

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1989 में DMK के साथ गतिरोध

1989 में DMK प्रमुख और प्रदेश के मुख्यमंत्री एम. करूणानिधि और जयललिता के बीच जुबानी जंग इतनी बढ़ गई कि इसका असर पार्टी के दूसरे MLA पर देखने को मिला. नौबत यहां तक आ गई कि ये जुबानी जंग गाली-गलौज पर आ गई. इस हादसे ने तमिलनाडु का इतिहास बदला और जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में उभरीं.

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1991 का वो ऐतिहासिक पल

प्रदेश में चुनावों का माहौल था, हर तरफ पार्टियां और विश्लेषक अपने राजनैतिक समीकरण लगा रहे थे. पर सभी राजनैतिक समीकरणों को धराशाई करते हुए जयललिता ने 234 विधानसभा सीटों वाले प्रदेश में 225 सीटें जीतीं और DMK को सदन से बाहर का रास्ता दिखाया. ये वो पल था, जब जयललिता के समर्थकों ने उन्हें नया नाम ‘अम्मा’ दिया. हालांकि बाद में उन पर करप्शन और मनी लॉन्ड्रिंग के गंभीर आरोप भी लगे.

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1996 की हार और जेल

उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और शशिकला के साथ बढ़ी उनकी नजदीकियों ने 1996 के विधानसभा चुनावों ने उन्हें हार का मुंह दिखाया. इसके साथ ही उन पर जांच के भी आदेश दे दिए गए, जिसके बाद उन्हें सलाखों के पीछे भेज दिया गया. इन आरोपों की लड़ाई भले ही बहुत लंबी चली, पर आख़िरकार 2001 में उन्हें बेगुनाह साबित कर दिया गया.

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2001 में फिर से की ज़बरदस्त वापसी

2001 विधानसभा चुनावों में अम्मा ने फिर से राजनीति में वापसी की और अपने प्रशंसकों और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच उत्साह भरा. इसका असर पार्टी की जीत के रूप में दिखाई दिया, लेकिन उन पर चल रहे आरोपों की वजह से वो मुख्यमंत्री नहीं बन पाईं. इसके बाद उनके सहयोगी O.P. Panneerselvam को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया.

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2003 में फिर बनीं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री

2003 में मद्रास हाई कोर्ट ने उन्हें सभी मामलों से बरी कर दिया, जिसके बाद AIADMK के एक MLA ने उनके लिए सीट छोड़ी, जिस पर उन्हें जीत मिली. इसके बाद वो फिर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं.

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2006 में फिर किया हार का सामना

2006 में हुए विधानसभा चुनावों में DMK के ख़िलाफ़ उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा.

  • 2011 में फिर दिखा अम्मा का प्रभाव

2011 में अम्मा ने एक बार फिर जीत के साथ ही तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति के मामले में उन्हें कोर्ट से 4 साल कारावास के साथ ही 100 करोड़ रुपये का दंड लगाया गया. कुछ महीने जेल में रहने के बाद अम्मा बाहर आईं और 2015 में फिर बरी हो गईं.

  • 2016 के चुनावों में जयललिता ने रचा इतिहास

2016 वो साल था, जब जयललिता ने अपनी जीत के साथ ही प्रदेश का इतिहास बदल डाला और एक बार फिर प्रदेश की मुख्यमंत्री के पद पर काबिज हुईं.

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सितम्बर 2016 में हुईं बीमार

बुखार और डिहाइड्रेशन की शिकायत के बाद उन्हें 22 सितम्बर को चेन्नई के अपोलो हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया.

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22 सितम्बर से ही उड़ने लगी थीं अफ़वाहें

22 सितम्बर से लेकर 3 दिसम्बर के बीच कई बार ऐसी अफ़वाहें उड़ीं कि जयललिता नहीं रहीं. जिसे नकारते हुए हॉस्पिटल और पार्टी प्रवक्ता लगातार उनकी सेहत के बारे में लोगों को बता रहे थे.

5 दिसम्बर को ली अम्मा ने आखिरी सांस

रविवार, 4 दिसंबर को आये हार्ट अटैक के बाद आख़िरकार 5 दिसम्बर को रात 11.30 बजे अम्मा ने आखिरी सांस ली और दुनिया को अलविदा कह दिया.

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Feature Image Source: zee