जिम कॉर्बेट का नाम सुना है, नेशनल पार्क नहीं, वो जिनके नाम पर इस वन्य जीव अभयारण्य का नामकरण किया गया है. ये थे तो एक शिकारी, लेकिन फिर भी इनके नाम पर हमारे देश के सबसे पुराने नेशनल पार्क का नाम रखा गया था. हो गए न कन्फ़्यूज़! चलिए आपको बताते हैं इसके पीछे की कहानी.

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दरअसल, जिम कॉर्बेट एक शिकारी तो थे, लेकिन वो सिर्फ़ उन्हीं बाघों का शिकार करते थे, जो आदमखोर हो जाते थे. इसके साथ ही वो वन्यजीवों के बहुत बड़े पैरोकार भी थे. इन्होंने अपने जीवन में करीब 40 आदमखोर बाघों को मार गिराया था. 1907 में एक बाघ जिसने तकरीबन 400 लोगों को नेपाल और भारत में अपना शिकार बनाया था, उसे जिम कॉर्बेट ने ही मौत की नींद सुलाया था. यही नहीं इन्होंने कई ग्रामीणों की बाघ के हमले से जान भी बचाई थी.

उन्होंने 1907 से 1938 के बीच उन 33 आदमखोरों का शिकार किया और उनको मार गिराया, जिन्होंने ने करीब 1200 लोगों को मार डाला था. जिम कॉर्बेट के बारे में लोग कहते हैं कि जिम हमेशा अकेले ही शिकार करने जाते थे उनको ये पसंद था. पर उनके साथ उनका पालतू कुत्ता रॉबिन रहता था.

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बाघ के बारे में इनकी जानकारी भी अद्भुत थी. इसकी गवाह हैं इनके द्वारा बाघ पर लिखी गईं दो किताबें, Man-Eaters of Kumaon और Jungle Lore, जो अपने दौर की बेस्ट सेलर थीं. आदमखोर बाघों के बारे में जिम साहब का कहना था कि- ‘एक आदमखोर बाघ वो बाघ होता है, जिसे परिस्थितियोंवश ऐसा आहार अपनाना पड़ा, जो उसकी प्रकृति से अलग है. 10 में से 9 मामलों में ये परिस्थिति घावों के कारण होती हैं और बाकी में उम्र के कारण.’

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जिम कॉर्बेट को प्रकृति से बहुत प्यार था और उन्होंने हमेशा इसके संरक्षण की वकालत की. जिम कॉर्बेट ने ही भारत में बाघों को संरक्षित करने की सलाह दी थी. क्योंकि उनके अनुसार, ‘बाघ एक बड़े-दिलवाली प्रजाति है, जो बहुत साहसी होती है, और अगर ये प्रजाति खत्म हो गई, तो भारत अपने वन्यजीवन के सबसे शानदार हिस्से को खोकर और गरीब हो जाएगा.’

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भारत के आज़ाद हो जाने के बाद वो अपनी बड़ी बहन के साथ केन्या चले गए थे. यहीं उन्होंने अपनी किताबें लिखी थीं. जिम ने कभी शादी नहीं की. 19 अप्रैल 1955 को इन्होंने आखिरी सांस केन्या में ही ली. बंगाल टाइगर के संरक्षण में उनके अतुलनीय योगदान के लिए आज भी इन्हें इंडिया में याद किया जाता है. 

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उत्तराखंड में जिस घर में जिम ने अपना जीवन बिताया था, उसे भारत सरकार ने जिम कॉर्बेट म्यूजियम में तबदील कर दिया है. जिम ने अपनी जान को ख़तरे में डालकर कई लोगों की जान बचाई, इसी लिए लोग इन्हें ‘गोरा ब्राह्मण’ के नाम से भी जानते हैं.