महाराष्ट्र के औरंगाबाद की 34 एलौरा की गुफ़ाओं में से सबसे अदभुत है कैलाश मंदिर. इस मंदिर का वास्तु पूरे संसार में सबसे भिन्न है. इसे राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण ने 7वीं सदी में बनवाया था. Archaeologists(पुरातत्वविद) इस बात को लेकर आश्चर्यचकित हैं कि उस जमाने में इस तरह का आर्किटेक्ट बनाया कैसे गया. जबकि उस समय ऐसी तकनीक आई ही नहीं थी.

मॉर्डन इंजीनियर्स का कहना है कि आज के ज़माने में वास्तुकला के इस तरह के अदभुत मंदिर को बनाने में साल नहीं, सदियां लग जाएंगी. जबकी प्राचीन काल में इसे बनाने में सिर्फ़ 18 साल लगे थे. इसके पीछे वो तर्क देते हैं कि इस तरह की तकनीक का कोई सिरा भारत में कही भी उपलब्ध ही नहीं है.

भगवान शिव को समर्पित ये मंदिर एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है. कहते हैं कि इसे हिमालय के कैलाश का रूप देने का भरपूर प्रयास किया गया है. इसीलिए इसे कैलाश मंदिर भी कहा जाता है.

इस मंदिर को करीब 40 हज़ार टन वज़नी चट्टान को काटकर 90 फुट ऊंचा मंदिर बनाया गया. इस मंदिर में सामने नंदी विराजमान है और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी और स्तंभ खड़े हैं. कैलाश मंदिर में विशाल और भव्‍य नक्काशी की गई है.

औरंगाबाद से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ये मंदिर. इसकी ख़ासियत ये है कि इसे ऊपर से नीचे की ओर बनाया गया, जबकि आजकल इमारतों का निर्माण नीचे से ऊपर की ओर किया जाता है.

साथ ही इसमें ईंट और पत्थरों को बिना सिर्फ़ एक चट्टान को काटकर बनाया गया है. दुनियाभर के वैज्ञानिक इस मंदिर के रहस्य को सुलझा नहीं पाए हैं. इसे देख कर हमें ये एहसास होता कि हमारे पूर्वज वास्तुकला के कितने बड़े जानकार थे.