काला बागाई! 

शायद ही आपने ये नाम पहले कभी सुना हो, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने अमेरिकी लोगों के बीच रहकर रंगभेद के ख़िलाफ़ ऐसी जंग लड़ी कि गोरे भी उनके नाम की सड़क बनाने को मजबूर हो गए.

अमेरिका के बार्कले सिटी काउंसिल ने इसी साल सितंबर माह में एक सड़क को ‘Shattuck Avenue Kala Bagai’ नाम दिया है. बार्कले में ये किसी भी दक्षिण एशियाई महिला के नाम पर पहली सड़क है. बता दें कि बार्कले की कुल आबादी का 20 प्रतिशत हिस्सा एशियाई मूल का है. 

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आख़िर कौन थी काला बगाई? 

बात सन 1915 की है. ‘गदर पार्टी’ के सदस्य वैष्णोदास बगाई पिता की मृत्यु के बाद अपना सब कुछ बेचकर 25 हज़ार डॉलर लेकर अमेरिका रवाना हो गए. इस दौरान वैष्णोदास अपने साथ पत्नी काला बगाई और अपने 3 बच्चों को भी लेकर गए. इस दौरान वैष्णोदास ने अपनी जमा पूंजी से बार्कले में एक घर ख़रीदा, लेकिन इस दौरान उनके साथ जो हुआ वो बेहद पीड़ादायक था. 

दरअसल, उस टाइम अमेरिकन्स के मन में था कि अश्वेत लोगों की इतनी हिम्मत कि वो बार्कले में घर ख़रीदकर हमारे बीच रहने लगेंगे. बार्कले में अमेरिकी लोगों ने अन्य एशियाई लोगों की तरह काला बगाई के परिवार को भी रंगभेद का शिकार बनाया. इस बीच जब अमेरिकन को अपने पड़ोस में भारतीय परिवार बर्दाश्त नहीं हुआ तो उन्होंने काला बागाई के घर पर ताला जड़ दिया.

इस दौरान वैष्णोदास बगाई ने सोचा था कि ताला तोड़कर घर में घुस जाएंगे, लेकिन कड़ी निगरानी के चलते काला और वैष्णोदास को अपने तीनों बच्चों के साथ कई दिनों तक अपने ही घर के बाहर रहना पड़ा. घर से बेघर करने के बावजूद काला बगाई के परिवार को गोरों के ताने सुनने को मिलते रहे. 

इसके बाद साल 1921 में वैष्णो ने सैन फ्रांसिस्को के फ़िल्मोर स्ट्रीट में एक दुकान खोली और जिसका नाम रखा ‘बगाई बाज़ार’. इस दौरान वैष्णो ने अमेरिकी नागरिता के लिए आवेदन किया और उनका आवेदन मंजूर भी कर लिया गया, लेकिन किस्मत को उनका सुख मंजूर न था. साल 1923 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया कि, भारतीय नागरिक कभी अमेरिकी नागरिकता प्राप्त नहीं कर सकेंगे, क्योंकि वे श्वेत नहीं हैं.

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रंगभेद के इस ज़हर ने कला और वैष्णो के सपनों को खाक़ में मिला दिया. इस दौरान वैष्णो समेत 64 लोगों से अमेरिकी नागरिकता छीन ली गई. नागरिकता जाने पर घर और दुकान भी गंवानी पड़ी. इसके बाद वैष्णो सब कुछ बेचकर सेनहोस चले आए. व्यवसाय के लिए एक घर किराए पर लिया, लेकिन यहां भी उनके साथ धोखा हुआ. मानसिक रूप से टूट चुके वैष्णो ने ज़हरीली गैस से घर में आत्महत्या कर ली. 

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रंगभेद के इस ज़हर ने कला और वैष्णो के सपनों को खाक़ में मिला दिया. इस दौरान वैष्णो समेत 64 लोगों से अमेरिकी नागरिकता छीन ली गई. नागरिकता जाने पर घर और दुकान भी गंवानी पड़ी. इसके बाद वैष्णो सब कुछ बेचकर सेनहोस चले आए. व्यवसाय के लिए एक घर किराए पर लिया, लेकिन यहां भी उनके साथ धोखा हुआ. मानसिक रूप से टूट चुके वैष्णो ने ज़हरीली गैस से घर में आत्महत्या कर ली. 

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वैष्णो के जाने के बाद काला अकेली पड़ गईं. इस दौरान वो समझ चुकी थीं कि रंगभेद के इस ज़हर में उनके बच्चे कभी चैन से नहीं रह पाएंगे. इसलिए मजबूरन उन्होंने दूसरी शादी कर ली और दक्षिण कैलिफोर्निया चली आईं. कानून बदलने के बाद साल 1950 में अमेरिका की नागरिकता मिली, इसके बाद उन्होंने अपने तीनों बच्चों को इंसान बनाने के लिए जो संघर्ष किया, उसी ने काला बगाई को बार्कले की ‘मदर इंडिया’ बनाया.

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इस बीच काला बगाई अमेरिका के कई ‘अश्वेत आंदोलनों’ का हिस्सा भी रहीं, साल 1983 में काला इस दुनिया को छोड़कर चली गईं. काला बगाई पहली महिला हैं जिनके नाम से किसी सड़क का नामकरण हुआ है.

काला बगाई की पोती रानी बगाई ने कहा, बार्कले के एसीओ कम्युनिटी का ये समर्थन पाकर हम बेहद ख़ुश हैं. एक वक़्त था जब इसी बार्कले के लोगों ने काला बागाई को उनके ख़ुद के घर से निकाल दिया था. आज ये सम्मान पाकर ऐसा लगा मानो ये मेरी दादी की ‘घर वापसी’ है.