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गांव कनेक्शन से बातचीत में पंकज ने बताया,
आंगनबाड़ी एक प्ले स्कूल की तरह होता है. मेरी बेटी बहुत छोटी है, तो उसका दाखिला कराया है. जब मैंने देखा कि आंगनबाड़ी केंद्र की सहायिका में आत्मविश्वास है, तो मैं भी अपनी बेटी को वहां भेजने लगा. मेरी बेटी भी ख़ुश है.
-पंकज जैन
पंकज ने गांव कनेक्शन को ये भी बताया कि जिस आंगनबाड़ी में वे अपनी बेटी को भेजते हैं, उसके आस-पास के 4-5 आंगनबाड़ियों की स्थिति में सुधार आया है.
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ज़िलाधिकारी के इस निर्णय की मध्य प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने भी सराहना की. उन्होंने पत्र लिखकर पंकज को पहल के लिए शाबाशी दी.
आंगनबाड़ी की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है. हम अपील करते हैं कि अन्य लोग भी आंगनबाड़ी में अपने बच्चों को भेजें, लेकिन जब तक हम आंगनबाड़ी को उस हिसाब का नहीं बनाएंगे लोग नहीं भेजेंगे. सिर्फ़ अपील से काम नहीं बनेगा.
-पंकज जैन
जब हम सबमें आत्मविश्वास जगा पाएंगे, तभी लोगों से उनके बच्चों को भेजने की अपील भी कर सकते हैं और लोग भेजेंगे भी. क्योंकि कोई भी अभिभावक जब अपने बच्चे को भेजता है तो बाकी सब छोड़कर बच्चे के लिए बेस्ट देखता है. सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम स्कूल में काम करने वाले लोगों को मोटिवेट करें, यह हम लोग कर रहे हैं.
-पंकज जैन
ऐसा करने वाले पंकज पहले आईएएस अधिकारी नहीं हैं. उत्तराखंड के चमोली की ज़िलाधिकारी स्वाति भदोरिया ने अपने 2 साले के बेटे का दाखिला आंगनबाड़ी केन्द्र में करवाया था. गोपेश्वर के ज़िलाधिकारी का बेटा अभ्युदय भी दूसरे बच्चों के साथ ही पढ़ता था.
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छत्तीसगढ़ के आईएएस अधिकारी, अवनीश शरण ने अपनी बेटी वेदिका का दाखिला बलरामपुर के सरकारी स्कूल में करवाया था.