एक रेल कोच यानी कि बोगी की मियाद 25-30 साल की होती है. इसके बाद वो इस्तेमाल करने लायक नहीं रहते. जानते हैं कि इसके बाद इनका क्या होता है? नहीं, चलिए हम आपको बता देते हैं. पुराने कोच को रेलवे वर्कशॉप में भेज दिया जाता है. यहां इन्हें ज़रूरत के हिसाब से Modify किया जाता है.
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इनकी सीट्स निकालकर इन्हें किचन या फिर बेडरूम में तब्दील कर दिया जाता है. फिर इन बोगियों को रेलवे ट्रैक्स की मेंटेनेंस में लगे कर्मचारियों को दे दिया जाता है. ऐसे कोच को Camp Coaches कहा जाता है. ये कर्मचारी इंडियन रेलवे इंजीनियरिंग विभाग के तहत काम करते हैं.
इन्हें रेल लाइन की मरम्मत के लिए काफ़ी लंबी दूरी तय करनी होती है. इसलिए रेलवे उनके रहने और खाने का इंतजाम इन्हीं कोचेज़ में करती है. आज हम आपको Camp Coaches कि कुछ तस्वीरें दिखाने जा रहे हैं. इन्हें देख कर आपको इनमें रहने वाले रेलवे कर्मचारियों की कठिन ज़िंदगी को करीब से देखने का मौका मिलेगा.
एक कर्मचारी कैम्प कोच के बेडरूम में आराम फ़रमाता हुआ.
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शाम 6 बजे से ही कर्मचारी अपने लिए खाना बनाने लगते हैं.
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इनका काम रात को 10 बजे से लेकर सुबह के 6 बजे तक चलता है.
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घर से दूर रहने के कारण इनके रहने का इंतजाम इन्हीं कोच में किया जाता है.
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इन बोगियों में कूलर, टीवी, फ़्रिज आदि भी लगाए जाते हैं. बड़े अधिकारियों के रूम में एसी भी लगा होता है.
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काम पर जाने से पहले ब्रेक चेक करता एक वर्कर.
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इनके काम में काफ़ी धूल उड़ती है. इसलिए काम के वक़्त सभी कर्मचारी मुंह ढंके रहते हैं.
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मेंटेनेंस के दौरान Visibility बहुत कम हो जाती है.
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इनकी मदद के लिए कई बार स्थानीय रेल कर्मचारी भी मदद करते हैं.
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मेंटिनेंस के दौरान दूसरे ट्रैक पर गाड़ियां आती-जाती रहती हैं, जो उनसे कुछ फ़ीट की दूरी पर होता है.
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कैम्प कोच का किचन.
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इसमें स्नान करने के लिए बाथरूम भी है.
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कैम्प कोच में बना एक मंदिर.
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वो बेल्ट जो पत्थरों को साफ़ करती है.
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हैं न इनकी लाइफ़ कितनी मुश्किल!