आज से एक साल पहले में अपने शहर कानपुर में थी. जीवन में एक नए सफ़र की शुरआत के लिए बड़ी ही उत्साहित थी. 

मैं घर से पहली बार दूसरे शहर जा रही थी. जीवन की पहली नौकरी, नए दोस्त, नए लोग, नई चुनौतियां. इस बड़े से महानगर, दिल्ली के लिए मैं हर मायने से तैयार थी. मगर सच बोलूं तो इस शहर ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है. कई मायनों में जीवन को देखने का एक नया नज़रिया भी दिया है. इस बीते एक साल ने मुझे कई मायनों में बदला है. 

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1. जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं रहता- 

बाक़ी सब की तरह मैं भी अपने जीवन में कई मामलों में स्थायित्व चाहती थी. मुझे लगता था कि शहर बदलने से मेरे दोस्त वही रहेंगें, हमारे बीच कभी कुछ नहीं बदलेगा. मगर मैं ग़लत थी. वक़्त के साथ दोस्त बदल गए. मेरी सोच बदली. कई बार बहुत दिनों तक काम में कुछ सही नहीं चलता था तब भी लगता था कि ये भाव ऐसे ही मेरे अंदर रहेगा. मगर वो भी गया. आखिर जीवन का एक ही तो सच है, ‘बदलाव’. 

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2. उन लोगों के साथ रहना सीखा जो मुझे बढ़ावा देने में यक़ीन रखते हैं- 

बहुत लम्बे वक़्त तक मैं ऐसे लोगों के साथ थी जिनको मेरी तरक्की अच्छी नहीं लगती थी. इस बात को मैं हमेशा अनदेखा कर देती थी. पर यहां आकर पता चला कि कि ऐसे लोगों को पीछे छोड़ना ही बेहतर है, जो मेरी ख़ुशी में ख़ुश न हों. 

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3. ग़लतियां करना ठीक है- 

मैं हमेशा ग़लती करने से डरती थी. जाहिर सी बात है यही हम सब को बचपन से सिखाया जाता है कि ग़लती करने से बचो. मगर मैंने जाना ग़लती किए बिना तो इंसान कभी कुछ सीख ही नहीं सकता. हां ग़लती ज़रूर की मैंने लेकिन उसे स्वीकारने का भी साहस रखा मैंने. 

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4. मैं जैसी हूं वैसी अच्छी हूं- 

जब तक मैं अपने घर कानपुर में थी मुझे अपने अंदर कोई न कोई ख़ामि हमेशा नज़र आती थी. और ये सोच- सोच कर मैं मायूस भी हुआ करती थी. मगर मैंने जाना है कि मैं जैसी हूं एकदम अच्छी हूं. और खामियां हम सब का हिस्सा होती हैं जिन्हें हमें अपनाने की जरूरत है. 

5. ‘आज’ में जीना सीखा- 

मैं हमेशा से एक ऐसी लड़की रही हूं जो आज में जीने की बजाय हमेशा कल के बारे में परेशान रहती थी. बीते एक साल में मैंने सीखा है कि कल के बारे में चिंता करना एक दम बेवकूफ़ी है. जो वास्तव में मेरे पास है वो ‘आज’ है. और मैंने अब सीख लिया है अपने आज को खुल कर जीने का.   

ख़ैर, ये तो कुछ ही बात हैं अभी तो ये सीख जीवन भर चलनी है.