मेरे जागने से पहले, हाय रे मेरी किस्मत सो जाती है…

मैं देर करता नहीं… देर हो जाती है…

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दोस्तों ये गाना शायद आपने सुना होगा और अगर नहीं सुना तो बता देते हैं कि ये हिना फ़िल्म का गाना है. हम इस गाने की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हम जाते हैं कि हर वो व्यक्ति रोज़ किसी न किसी कारण अपने ऑफ़िस पहुंचने, दोस्तों से मिलने या पार्टी में जाने के लिए लेट होता है, वो इससे इत्तेफ़ाक़ ज़रूर रखेगा. अगर मैं कहूं कि मैं भी उनमें से एक हूं तो कुछ ग़लत नहीं है.

मेरे लेट पहुंचने के एक नहीं कई कारण हैं. सबसे बड़ा कारण तो है नींद… नींद सबको प्यारी होती है और सुबह 7 बजे का अलार्म बजने के बाद जो 5 मिनट की नींद लेने का मज़ा है, वो आठ घंटे की नींद में भी नहीं. जब घड़ी देखकर 5 मिनट की नींद लेने का मन करता है, हालांकि, वो 5 मिनट कब 1 घंटे में बदल जाते हैं पता ही नहीं चलता. पर ये वो लोग कहां समझेंगे जो टाइममशीन बन गए हैं.

ख़ैर, जब लेट उठो, तो लाज़मी है कि ऑफ़िस भी लेट ही पहुंचेंगे और डांट भी खानी ही पड़ेगी या बॉस के गुस्से का शिकार होना ही पड़ेगा. सच तो ये है कि मैं लेट होना नहीं चाहती, पर लेट हो ही जाती हूं. चलो ऑफ़िस की और बॉस की बात तो अलग है, वहां सबकी अपनी-अपनी रिस्पॉन्सिबिलिटीज़ होती हैं.

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लेकिन उन दोस्तों का क्या, जो मेरे लेट होने को मेरी आदत समझते हैं… अब भला उनको कौन समझाए कि उनसे मिलने आने के लिए मैं कितना एक्साइटेड होती हूं. हर बात का ध्यान रखती हूं फिर वो चाहे मेरे कपड़े, जूते-चप्पल हों या फिर मैचिंग इयररिंग और चूड़ियां. अब एक दिन की बात है दोस्तों से मिलना था सब कुछ तैयारी कर ली और मैं रेडी हो गई, पर जैसे ही घर से बाहर निकली देखा कि मेरी चप्पल मैच नहीं कर रही है, फिर चप्पल बदली, अब सब कुछ ठीक था पर रिक्शा नहीं मिला. यहां मैं पैदल चलकर जल्दी पहुंचने की कोशिश कर रही थी, उधर दोस्तों के लगातार फ़ोन आ रहे थे, कहां है तू, हमेशा तेरी वजह से लेट होता, कभी भी टाइम पर नहीं आ सकती तू… अब लो भला इसमें मेरी क्या ग़लती अगर रिक्शा नहीं मिला तो… बस दोस्तों को समझाए कौन…?

और दोस्तों की बात भी छोड़ दी जाए तो घर वाले बाप रे बाप! घर वालों के साथ कहीं बाहर जाना हो, खाने के लिए या फिर किसी शादी में… कार्ड पर लिखे टाइम से 3 घंटे पहले ही अलार्म बजने लगता है, तैयार हो जाओ वरना जयमाल हो जायेगी तब पहुंचोगी. अब भाई शादी में जाना है तो अच्छे से ही जाना होगा ना फ़ोटो भी तो खिंचवानी होती है. शादी में जाने के लिए अगर हैवी कपड़े तो पहन लिए पर मैचिंग का ध्यान नहीं रखा, पार्लर में जाकर हेयरस्टाइल नहीं बनवाई तो क्या फ़ायदा शादी में जाने का. और अगर टिप-टॉप होकर जाना है, तो टाइम तो लगेगा ही न तैयार होने में.

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अगर आप दिल्ली में रहते हैं और मेट्रो, बस या फिर खुद कार से ट्रैवल करते हैं, तो आपको दिल्ली के ट्रैफ़िक के बारे में बताने की ज़रूरत नहीं है. दिल्ली का ट्रैफ़िक मानों बिन मौसम बरसात है, जब आपके पास बारिश से बचने के लिए छाता भी नहीं होता है. ठीक वैसे ही एक बार अगर आप ट्रैफ़िक में फंस गए तो फिर फंस ही गए. अब इन मैं बेचारी इतनी मुश्किलों का सामना करके अपने गंतव्य तक पहुंचती हूं, और लोगों को लगता है कि मैं जानकर लेट होती हूं.

मेरा दावा है कि सिर्फ़ मैं ही अकेली ऐसी नहीं हूं, जो हर जगह लेट पहुंचती हूं, मेरे जैसे कई लोग होंगे जिनके अपने दोस्तों, ऑफ़िस बॉस और यहां तक कि घर वालों से भी लेट-लतीफ़ होने के ताने सुनने को मिलते होंगे.

आखिर में मैं केवल इतना ही कहूंगी कि मैं लेट होती नहीं, परिस्थितियां और ये सारी कायनात मुझे लेट करवाती है.