बड़े ख़ुशनसीब होते हैं वो बच्चे, जिनका बचपना उनके दादा-दादी और नाना-नानी के आंचल की छाव में गुज़रा है. चलिए आज एक बार फिर से बचपन की सुनहरी यादें ताज़ा करते हैं और जानते हैं कि आखिर कैसे ग्रैंड पैरेंट्स हमारी ज़िंदगी में अहम रोल अदा करते हैं. साथ ही इनकी मौजूदगी और गैर-मौजूदगी हमारे लिए क्या महत्व रखती है.

1. दादा-दादी और नाना-नानी की क्लास

कहते हैं कि किसी भी बच्चे की सबसे पहली पाठशाला उसका घर होता है और उसके अध्यापक घर के बुज़ुर्ग. खेल-खेल में हम अपने ग्रैंड पैरेंट्स से इतना कुछ सीख लेते हैं, जिसका अहसास हमें बड़े होने पर होता है. जैसे कि किसी के ग्रैंड पैरेंट्स ने उन्हें गणित की टेबल याद करना सिखाया, तो किसी ने घर के बुज़ुर्गों से न्यूज़ पेपर पढ़ना सीखा. इसके अलावा कई लोग ऐसे भी हैं, जिनको बुक रीडिंग की आदत अपने दादा-दादी और नाना-नानी से तोहफ़े के रूप में मिली. वहीं कई लोगों के ग्रैंड पैरेंट्स ने न सिर्फ़ रोड क्रॉस करना सिखाया, बल्कि घड़ी में वक़्त कैसे देखा जाता है ये भी बताया.

2. कुकिंग

सच में दुनिया जहां की डिशेज़ खा लो, लेकिन दादी और नानी के हाथों से बने खाने में जो स्वाद है, वो कहीं और नहीं मिलेगा. कई लोगों को कुकिंग की कला भी अपनी दादी और नानी से सीखने को मिलती है. वहीं कई लोगों का ये भी कहना है कि उनकी दादी तो अच्छा खाना बनाती हैं, बल्कि उनके दादा भी बहुत अच्छे कुक हैं. अब जिस घर के बुज़ुर्ग इतना स्वादिष्ट खाना बनाते होंगे, तो ज़ाहिर सी बात उस घर के बच्चों में ये हुनर आना लाज़मी है.

3. संस्कार

अपने से छोटों को प्यार और बड़ों का आदर-सम्मान, ये हमें ग्रैंड पैरेंट्स से ही तो सीखने को मिलता है. कई बार हम अपने बोलने के लहज़े से लोगों का दिल का जीत लेते हैं, फिर चाहे वो शख़्स हमसे बड़ा हो या छोटा. साथ ही हमें ये भी सुनने को मिलता है कि ये लड़का या लड़की बड़ा संस्कारी है. अब जिसके ग्रैंड पैरेंट्स इतने प्यारे होंगे, जो हम में ये ख़ूबी आना वाजिब है न!

4. आज़ादी

वो टाइम जब हम दादा-दादी और नाना-नानी के घर पर बिना मम्मी-पापा की रोक-टोक के सब कुछ अपने मन-मुताबिक करते थे. सोफ़े पर कूदना, सारा दिन जंक फ़ूड खाना, पार्क में झूले-झूलना. इस मस्ती का मज़ा तब और भी दोगुना हो जाता था, जब हमारी इन बेहूदा हरकतों में ग्रैंड पैरेंट्स भी हमारे साथ बच्चा बन कर खेलने-कूदने लग जाते थे. ये सब कर दिल को ख़ुशी तो होती थी, साथ ही ऐसा लगता है कि हमसे बड़ा नवाब दुनिया में और कोई है ही नहीं. सच में ग्रैंड पैरेंट्स से ज़्यादा हमारे नख़रे कोई और नहीं उठा सकता.

 5. एकता

पढ़ाई, मस्ती, कुकिंग के अलावा हमें अपने ग्रैंड पैरेंट्स के साथ रह कर हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है, पर जो सबसे बड़ी सीख मिलती है वो ये है कि ‘एकता में ही शक्ति है’. पापा-ताऊ का झगड़ा हो, या फिर मम्मी या मासी का. दादी-दादी और नाना-नानी को किसी के बीच की लड़ाई को बड़े ही प्यार और समझदारी के साथ सुलझाते हुए देखा है. कई बार वो हमें भी मिल-जुल कर रहने की सलाह देते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि अगर घर के लोगों में एकता नहीं होगी, तो इसका फ़ायदा बाहर वालों को ही होगा.

6. वो रातें और दिल की बातें

हम से कई लोग ऐसे होते हैं, जिनका उनके ग्रैंड पैरेंट्स के साथ दोस्त वाला रिश्ता होता है. सच में कई लोग दिल की बातें अपनी मम्मी-पापा से शेयर न करें, लेकिन अपने ग्रैंड पैरेंट्स से ज़रूर साझा करते हैं. इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि हमें भरोसा होता है कि वो हमारी प्रॉब्लम तो सॉल्व करेंगे ही, साथ ही हमें डांट भी नहीं पड़ेगी.

सच में ये रिश्ता बहुत अनमोल होता है, इतना अनमोल कि इन्हें चंद शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता. अगर आपके ग्रैंड पैरेंट्स अभी भी आपके साथ हैं, तो आप दुनिया के चंद लकी लोगों में से एक हैं. अगर ग्रैंड पैरेंट्स के साथ आपकी भी कुछ सुनहरी यादें जुड़ी हुई हैं, तो आप हमसे शेयर कर सकते हैं.