मेवाड़ के शूरवीर महाराणा प्रताप को आज भी उनके युद्ध और शौर्य कौशल के तौर याद किया जाता है. महाराणा प्रताप को लेकर कहा जाता है कि युद्ध के दौरान वो 208 किलो के शसित्र लेकर दुश्मनों का सामना किया करते थे. उनका भाला 81 किलो का जबकि तलवार 72 किलो की हुआ करता था.
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महाराणा प्रताप 208 किलो के हथियार लेकर लड़ते थे
कहा जाता है कि महाराणा प्रताप इतने बलशाली थे कि वो युद्ध के दौरान अपने सीने पर लोहे, पीतल और तांबे से बना 72 किलो का कवच पहनते थे. इसके अलावा वो 81 किलो के भले के साथ ही कमर में दो तलवारें भी बंधी रहती थीं. इस तरह युद्ध के दौरान वो कुल 208 किलो वजन के हथियारों को लेकर लड़ते थे.
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आप इसी से अंदाज़ा लगा कि महाराणा प्रताप कितने बड़े शूरवीर थे. वो इसलिए भी शूरवीर माने जाते हैं क्योंकि उन्होंने मुगल सम्राट अकबर जैसे योद्धाओं से जंग लड़ी थी.
एक दौर था जब मुगल सम्राट अकबर को राजपूत शूरवीर महाराणा प्रताप से बादशाहत को बचाने के लिए ‘हल्दीघाटी’ का युद्ध लड़ना पड़ा था. मुग़ल बादशाह अक़बर और महाराणा प्रताप के बीच हमेशा से बादशाहत और स्वाभिमान की लड़ाई रही. इन दोनों योद्धाओं के बीच हुए ‘हल्दीघाटी के युद्ध’ को महाभारत के बाद दूसरा सबसे विनाशकारी युद्ध कहा जाता है.
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नहीं माना मुगलों का कोई फ़रमान
कहा जाता है कि जब मुग़ल बादशाह अक़बर ने मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप को मुग़लों की अधीनता स्वीकार करने का फ़रमान भेजा तो उन्होंने अक़बर के इस फ़रमान को अपने और राजपूतों के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाला बताकर खारिज कर दिया. इसके बाद इन दोनों ने सन 1576 में उदयपुर के समीप हल्दीघाटी के मैदान पर युद्ध का ऐलान कर दिया.
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‘हल्दीघाटी का युद्ध’ महाभारत के बाद सबसे विनाशकारी युद्ध
युद्ध की घोषणा के बावजूद को अकबर ने युद्ध टालने और अधीनता स्वीकार कराने के लिए महाराणा प्रताप के पास 6 बार अपने दूत भेजे, लेकिन महाराणा प्रताप ने इसे मानने से इनकार कर दिया. महाराणा प्रताप ने युद्ध कौशल और अपने चहेते घोड़े चेतक के दम पर मुग़लों को घुटने टेकने पर मज़बूर कर दिया था.
हालांकि, महाराणा प्रताप ने अपने जीते जी तो मुग़लों को मेवाड़ पर कब्ज़ा करने का मौका नहीं दिया, लेकिन उनके बड़े बेटे के सिंहासन पर बैठते ही मुग़ल बादशाह अक़बर ने मेवाड़ को अपने अधीन कर लिया.
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महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को मेवाड़ राजघराने में हुआ था. वो मेवाड़ के राजा उदय सिंह के सबसे बड़े पुत्र थे. उदय सिंह अपने 9वें नंबर के बेटे जगमाल सिंह से बेहद प्रेम करते थे इसलिए उन्होंने मरने से पहले जगमाल को अपना उत्तराधिकारी बनाया था.