18 नवंबर 1962 का वो ऐतिहासिक दिन जब देश के वीर सपूत मेजर शैतान सिंह भाटी शहीद हुए थे. शैतान सिंह वही जांबाज़ थे जिनके नेतृत्व में 120 भारतीय जवानों ने 1300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था.
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आज से 57 साल पहले कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंह ने रेजांगला के युद्ध न केवल लद्दाख को बचाया बल्कि चीन को मात देकर अपना नाम हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों पर अमर कर दिया.
दरअसल, लद्दाख के ‘चुशूल घाटी’ की ज़िम्मेदारी 13 कुमाऊं की एक टुकड़ी के पास थी. 124 जवानों वाली इस टुकड़ी का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे. शैतान सिंह के पास सैनिकों की कमी थी लेकिन हौसले की नहीं.
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18 नवंबर 1962 का वो ऐतिहासिक दिन. लद्दाख की ‘चुशुल घाटी’ पर बर्फ़ की चादर विछी हुई थी. हर तरफ़ खामोशी छाई थी. भारतीय जवान मज़बूती से घाटी की रक्षा में जुटे हुए थे. तभी तड़के सुबह 4 बजे के करीब ‘चुशुल घाटी’ का माहौल गोलियों और तोपों की आवाज से दहल उठा.
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दरअसल, चीन की ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ के लगभग 5,000 से 6,000 जवानों ने घाटी पर हमला कर दिया था. इस दौरान शैतान सिंह ने सूझबूझ का परिचय दिखाते हुए अपनी टुकड़ी को अलर्ट कर दिया. सैनिक कम थे पर फिर भी शैतान सिंह ने जान की परवाह किए बिना ही जंग शुरू कर दी थी. चीन की तरफ़ से ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार होती रही, लेकिन भारतीय सैनिकों ने हिम्मत नहीं हारी.
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चीन की तरफ़ से हो रही लगातार गोलियों की बौछार के बीच भी शैतान सिंह एक प्लाटून से दूसरी प्लाटून में जाकर अपनी टीम को प्रोत्साहित कर रहे थे. इस बीच शैतान सिंह ने दिमाग से काम लेते हुए अपने सभी जवानों को चीनी सैनिकों को हल्की-फुल्की गोलाबारी से उलझाए रखने और उनका गोला-बारूद ख़त्म होने का इंतज़ार करने के आदेश दिए. 3 कुमाऊं बटालियन के जवानों ने भी ऐसा ही किया.
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जब चीनी सैनिकों के पास गोला-बारूद बेहद कम रह गया तो शैतान सिंह की टुकड़ी ने चीनी सैनिकों पर धावा बोल दिया. इस जांबाज़ टुकड़ी ने साहस का परिचय देते हुए चीन के 1300 चीनी जवानों को मार गिराया. लेकिन इस दौरान 3 कुमाऊं बटालियन के 114 जवान भी शहीद हो गए. दुर्भाग्य से शैतान सिंह भी 114 शहीद जवानों में से एक थे.
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इस दौरान भारतीय सैनिकों के सामने सिर्फ़ चीन की भारी भरकम सेना ही नहीं बल्कि, विपरीत भौगोलिक परिस्थितियां और बर्फ़ीला मौसम भी एक बड़ी चुनौती थी. बावजूद इसके भारतीय सैनिकों ने चीन की सेना का डटकर मुक़ाबला करते हुए उन्हें करारी शिकस्त दी. 18 हजार फ़ुट ऊंची इस पोस्ट पर हुए युद्ध में भारतीय सैनिकों की वीरता के सामने चीनी सेना कांप उठी थी.
इस तरह से मात्र 124 भारतीय सैनिकों ने साहस का परिचय देते हुए चीन के लद्दाख छीनने के सपने को तार-तार कर दिया.
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लद्दाख को बचाने के लिए ‘रेजांगला पोस्ट’ पर दिखाई गयी वीरता के लिए भारत सरकार ने कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया. इसी बटालियन के 8 अन्य जवानों को भी ‘वीर चक्र’, जबकि 4 जवानों को ‘सेना मेडल’ व 1 जवान को ‘मैंशन इन डिस्पेच’ से सम्मानित किया. इसके अलावा 13 कुमायूं के कमांडिंग ऑफ़िसर (सीओ) को एवीएसएम से अलंकृत किया गया.