एक बहुत पुरानी कहावत है कि ‘जब ओखली में सिर दे ही दिया, तो डर काहे का?’ पर शायद इस कहावत को लिखने वाले ने शायद खुद कभी अपना सिर किसी ओखली में नहीं दिया होगा, वरना उसे भी मालूम होता कि इससे कितनी तकलीफ होती है.
अब इन दो बकरियों को ही देखिये, जिसे इनकी बेवकूफी कहिये या गलती कि दोनों ने अपना सिर एक ही मर्तबान में डाल दिया.